मैं बनारस में पैदा हुआ, असंख्य बार संकट
मोचन मंदिर गया लेकिन कभी मंगला आरती नहीं देखी। मंगला आरती सुबह साढ़े चार बजे
होती है। समय इतना कठिन है कि सुबह उठकर स्नान ध्यान के पश्चात सारनाथ से संकट
मोचन ( लगभग 15 किमी दूर ) जाना कभी संभव न लगा। विगत दो माह से बच्चों की पढ़ाई
के चक्कर में लंका में ही किराये का कमरा लेकर रह रहा हूँ। कल जब श्री कैलाश
तिवारी ने हमेशा की तरह कहा कि तू कब्बो मंगला आरती में संकट मोचन नाहीं गइला
अउर हमें देखा तs हम तोहरे से भी 10 किमी दूर रहिला लेकिन आज 25 साल से ऐसन एक्को मंगल ना
भयल कि हमार आरती छूट गयल हो ! हम उनका चेहरा देखते रह गये। सेवा निवृत्त होने के पश्चात भी मास्टर
साहब इतनी दूर मोटर साइकिल चला कर हर मंगलवार सुबह 4 बजे संकट मोचन मंदिर पहुंच
जाते हैं और मैं इनके बार-बार ताव दिलाने के बाद भी एक दिन नहीं जा सका ! लेकिन अगले ही पल खयाल
आया अब क्या है, अब तो हम भी जा सकते हैं ! अब तो मैं संकट
मोचन से मात्र आधे किमी दूर रह रहा हूँ। उनसे कह दिया..तोहू का याद करबा......काल
मंगलवार हौ...हम आवत हई। बहुत तारीफ कइला...हमहूँ देखि कैसन होला मंगला आरती
! मैने उन्हें नहीं बताया कि मैं अब
सारनाथ में नहीं संकट मोचन के पास ही रह रहा हूँ। उन्हें मेरी बात पर यकीन नहीं
हुआ। तू का अइबा...10 साल तs हमे कहत भयल हो गयल।
कहा तs हम तोहरे घरे आ जाई सबेर तीन बजे...सारनाथ। मैने घबड़ाकर कहा..नाहीं तिवारी जी, आप हमरे घरे मत आवा हम काल जरूर
आइब। खाली हमें फोन करके जगा दिया । तिवारी जी बोले.....ठीक हौ तs हम फोन करब। उन्होने सख्त चेतावनी दी....अ
काल ना अइला तs एकर पेनाल्टी भुगते के तैयार रहे।बात
आई गई हो गई। काम की व्यस्तता में मैं अपना वादा भूल
चुका था। सोने में काफी देर हो चुकी थी। कई बार फोन की घंटी बजी तो नींद में ही
उठा कर देखा...कौन इतनी रात में फोन कर रहा है ! कैलाश
तिवारी...नाम पढ़कर चौंक गया। नींद जाती रही। समय देखा सुबह के चार बज रहे थे। अपना वादा याद आया। फोन उठाकर
बोला...हाँ तिवारी जी ! आवत हई...। तिवारी जी हंसने लगे.... जग गइला...तू कहले न होता तs न जगाइत...जा सुत जा...तू का अइबा...हम पहुंचत हई संकट मोचन...एक घंटा से
फोन करत हई और तू अब जाके उठला...। इतना कहकर उन्होने
फोन काट दिया। मैं हड़बड़ी में ताव खा कर बाथरूम में घुसा। अब नहीं गये तो कब
जायेंगे..!
नहा धो कर मंदिर पहुँचा तो साढ़े चार बजने
में कुछ मिनट बाकी थे। हनुमान जी के दर्शन से अधिक तिवारी जी के दर्शन के लिए
लालायित था। उन्हें यह दिखाना चाहता था कि मैं भी भोर में सारनाथ से संकट मोचन आ
सकता हूँ। मंदिर के सामने तिवारी जी दिखाई दिये। पूर्ण भक्ति भाव से थपड़ी बजाते
हुए। जय सियाराम जै, जै सियाराम। मैने लपक कर उनको स्पर्श किया। मुझे देख कर बोले...आ गइला...! इतनी जल्दी... !! और फिर
वे अपने भजन में लीन हो गये । मेरा अहं तुष्ट हुआ। मैं आगे जाकर जो खाली स्थान
दिखा वहीं बैठ गया।
वह एक अद्भुत दृष्य था। न देखा न महसूस
किया। संकट मोचन मंदिर में जा कर दर्शन करने में आनंद का अनुभव होता है लेकिन वह
तो परमानंद था। मेरे जैसा अहंकारी, शंकालु और छुद्र मन चित्त का प्राणी भी वहां
जाकर इतने आनंद का अनुभव कर सकता है तो निर्मल ह्रदय जमा हुए असंख्य भक्तों का
क्या हाल होगा...! सारा अहंकार पल में धुल चुका था। हनुमान जी के सामने चबूतरे पर बीच में
जो खाली जगह मिली वहीं बैठ गया। भजन चल रहा था। मंदिर का पर्दा जिसमें सिया राम
लिखा था खुलने ही वाला था। अचानक से सब खड़े हो गये ! सबकी
देखा देखी मैं भी खड़ा हो गया। पीछे मुड़कर देखा तो मेरे पीछे कोई नहीं था
! भक्त पंक्ति बद्ध हो दो कतार में खड़े हो जोर जोर से भजन गा रहे
थे। जय सियाराम जै, जै सियाराम। दरअसल हनुमान जी के मंदिर के
ठीक सामने पचास कदम की दूरी पर राम जानकी का मंदिर है। वहाँ भी मूर्तियाँ वैसे ही
पर्दे में थीं। हनुमान मंदिर से राम जानकी मंदिर तक पंक्ति बद्ध हो, दो कतार में
लोग भजन गा रहे थे। बीच का मार्ग खुला छुटा हुआ था। मैं वहीं बीच में खड़ा था
! सहसा मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ। पहली बार आने के कारण यह ज्ञान
नहीं था कि बीच में नहीं बैठना चाहिये। वह स्थान इसीलिए खाली था। जल्दी से पंक्ति
में शामिल होना चाहा तो वहां खड़े भक्तों ने पीछे जाने का इशारा किया। कुछ लोग मुझ
पर हंस भी रहे थे। जैसे तैसे जगह मिली तो मैं भी एक पंक्ति में शामिल हो गया। पहले राम जानकी मंदिर का पर्दा हटा फिर बजरंग
बली के दर्शन हुए। दोनो तरफ एक साथ आरती शुरू हो चुकी थी। अद्भुत दृश्य था। भजन
संगीत और आरती ने ऐसा समा बांधा कि वर्णन करना संभव ही नहीं। सिर्फ और सिर्फ महसूस
किया जा सकता है। आरती समाप्त होते ही राम जानकी मंदिर और हनुमान मंदिर दोनो ओर से
आरती लेकर पुजारी भक्तों के बीच वाले मार्ग से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। एक ओर से
बायीं कतार में खड़े भक्तों को तो दूसरी ओर से दायीं कतार में खड़े भक्तों को आरती
दिखाते हुए वे आगे बढ़ रहे थे। राम जानकी मंदिर के पुजारी जब हनुमान मंदिर तक तथा
हनुमान मंदिर के पुजारी राम मंदिर तक पहुँचे तो पंक्ति बदलकर दूसरी पंक्ति को आरती
दिखाने लगे। इस प्रकार दोनो पंक्तियों में खड़े श्रद्धालुओं तक दोनो मंदिरों की
आरती मिल गई। इसी तरीके से चरणामृत और प्रसाद भी वितरित हुआ। 15 मिनट के भीतर सभी
भक्तों को आरती, चरणामृत और प्रसाद वितरित कर दिया गया। प्रसाद पा कर भींड़ इधर
उधर तितर बितर हो गई। कोई मंदिर की परिक्रमा करने लगा तो कोई सुंदर कांड का पाठ
करने लगा। कहना मुश्किल था कि भक्तों की भक्ति ने भगवान को हाजिर होने के लिए
बाध्य किया था या भगवान की उपस्थिति ने भक्तों को हाजिर किया था। भक्त और भगवान का
यह प्रेम अलौकिक था। मैं तो मात्र दर्शक बन कर अवाक खड़ा देखता रह गया !
दर्शन के बाद जब होश आया तो देखा तिवारी
जी सुंदर काण्ड का पाठ करने में मगन थे। मैने लढ्ढू खरीदा और भगवान को चढ़ाकर
प्रसाद खाने लगा। संकटमोचन के लढ्ढू मुझे बचपन से ही प्रिय हैं। लढ्ढू खा कर कुएँ
का पानी पीते ही मन तृप्त हो जाता है। कोई पूछे आनंद आया तो एक बनारसी तुरत
कहेगा...तबियत प्रसन्न हो गयल। भजन, दर्शन, आरती, प्रसाद लेने और कुएँ का
पानी पीने के बाद धरती में शायद ही कोई ऐसा भक्त हो जो पूर्ण तृप्त न हो पाये। बस
मन में भगवान के प्रति थोड़ी सी श्रद्धा होनी चाहिये। इस मंदिर की एक और बड़ी
विशेषता है कि यहां आकर आप सिर्फ प्राप्त ही करते हैं। गवांने की कोई संभावना नहीं
रहती। बजरंग बली की ऐसी कृपा है कि ठग, बेइमान इसके आस पास भी नहीं फटकते। दर्शन,
प्रसाद, फूल-माला, जूता चप्पल रखने आदि किसी भी कर्म में आपके साथ ठगी नहीं हो
सकती। यहाँ कि व्यवस्था सुंदर और आइने की तरह साफ है। किसी भी प्रकार के लूट की
कोई संभावना नहीं है। यहाँ आपको सिर्फ पाना ही पाना है। कितना ? यह आपकी पात्रता पर
निर्भर करता है। यहाँ आकर पुन्य मिलता है या नहीं यह मैं नहीं जानता लेकिन इतना
दावा जरूर कर सकता हूँ कि यहाँ आकर खूब आनंद आता है।
सुंदर काण्ड के पाठ के बाद तिवारी जी सीधे आये और आश्चर्य से पूछने लगे...आज तs तू आ
ही गइला ! ई त कमाल हो गयल । मगर एक बात बतावा, इतनी जल्दी कैसे आ गइला....? अब मुझसे न रहा गया। मैने उनको हकीकत बताया तो जैसे
उनकी परेशानी कम हुई। बोले...तबै
कहत हई कि इतनी जल्दी कैसे आ गइला...! चला हम न सही आखिर बजरंग बली सही, तोहेँ
अपनी ओरी खींचे लेहलन। हमने कहा ..नहीं
तिवारी जी...यह आपका ही प्रेम था कि मैं आ गया। तिवारी जी बोले … नाहीं...हमार होत तs तू
कहिये आ गयल होता। सब बजरंग बली कs कृपा
हौ। अब हम न कहब……..देखी, अगले मंगल के का करsला!
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बनारस की इस अद्भुत व्यवस्था का जीवंत वर्णन मुला कभौ काशी विश्वनाथ बाबा क भी दरबार में मंगला आरती देखईं -जीवन धन्य होई जाए !
ReplyDeleteमनुष्य ही है जो इन अद्भुत दृश्यों और अवसरों का संयोजन कर स्वयं के लिए आनंद की सृष्टि करता है।
ReplyDeleteमंगला-आरती को जानकर कशी आने की इच्छा और प्रबल हो गई है,जल्द ही अपनी मनोकामना पूरी करने की कोशिश करेंगे !
ReplyDeleteअफ़सोस कि अब तक मंगला आरती नहीं देख पाया, मगर कभी देखूंगा जरुर.
ReplyDeleteआपके सजीव वर्णन ने सिर्फ़ उन पलों को साक्षात् कर दिया बल्कि स-शरीर वहां हो आने की अभिलाषा भी मन में जगा गया।
ReplyDeleteजहाँ मन को आनंद मिले वही ईश्वर मिल जाता है सब तरफ बस उसी की झलक है जहाँ आपको दिख जाये बस वही झुक जाना सीखना है |
ReplyDeleteलगता है अप काशी बुला के ही मानेंगे ...
ReplyDeleteरोचक वर्णन, दर्शन की इच्छा बढ़ा गया।
ReplyDeleteएक बार बनारस गए थे तो गंगा आरती तो हमने देखी थी मगर संकट मोचन की इस आरती के दर्शन नसीब नहीं हुए..... आपके द्वरा यह कमी भी कुछ हद तक पूरी हो गयी. आप और तिवारी जी दोनों को मंगल कामनाएं.
ReplyDeleteजय बजरंग बली...जय तिवारी जी! मंगल आरती में शामिल हो पाने पर आपको बधाई!
ReplyDeleteबजरंगबली का वरदान है |
ReplyDeleteजय बजरंग-बली ||
आज तो पाण्डे जी , भक्ति में सराबोर हो गए ।
ReplyDeleteवर्णन पढ़कर आनंद आ गया ।
बहुत आभार इस वर्णन और जानकारी के लिये.
ReplyDeleteरामराम.
मंगला-आरती देखने की इच्छा और प्रबल हो गई है...सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteBaat barson puranee hai....tab Varanasi me rahte the,aur har Mangalwaar ko sankat mochan ke mandir jate the!
ReplyDeleteबनारस में गंगा आरती तो मैंने भी देखी थी किन्तु मंगला-आरती नहीं देखी है.कभी अवसर मिला तो जरूर देखूंगी.....इस रोचक जानकारी पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार....
ReplyDeleteजय बजरंग-बली
ReplyDeleteभगवान और भक्त का अटूट और अजीब रिश्ता है, भक्ति की प्राप्ति भी तभी होती है जब भगवान की कृपा होती है।
ReplyDeleteहम भी कभी जरूर देखेंगे मंगला आरती, और धन्य होंगे।
:)
ReplyDeleteदिव्य वर्णन, काशी जैसी जगह ब्रह्माण्ड मेंकहीं नहीं।
ReplyDeleteइस आरती बनारस में इस आरती को देखना मेरा लक्ष्य है, घाट के पास वाली आरती तो देखा हूँ। सुंदर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन है.श्रद्धापूर्ण हृदय मे आनन्द की वर्षा हो जाती है,जिसे वर्णन नहीं किया जा सकता.
ReplyDeleteसंकटामाता के मन्दिर की आरती भी श्रद्धावानों के लिये बहुत उपयुक्त है,वहाँ तो गए ही होंगे ?
हम भी एक बार बनारस गए थे संकट मोचन बजरंग बली के दर्शन भी किये मगर इस आरती में शामिल नहीं हो सके ..... आपकी पोस्ट द्वारा यह इच्छा और भी प्रबल हो गयी उनकी इच्छा होगी तो हमारी भी मनोकामना पूरी हो जाएगी... आभार
ReplyDeleteरोचक वर्णन...........
ReplyDeleteजय हो प्रभू की ...
ReplyDeleteआनंद आ गया , पवित्र संस्मरण पढ़कर
काशी जाना चाहता हूँ ...बाबा के साथ साथ आप लोगों से भी मुलाकात हो जायेगी !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
सोचत बानी की आप का कईसन पता लागल हो की हमका वहां जाए का हई ,हमार एक मित्र (रितु पाण्डेय ) तिवारी जी जयसन वहां के दरबार में हमारी अर्जी लगा दी हैं ,अब सोचत बानी की जाएकेर प्रोग्राम कैसन बनवा जाई ,पर अब कोई चिंता नाही ,भगवान् जी आपन आप लई जाई ,बहुत नीक माने नीमन पोस्ट लागल बा ................हमरे सबके साथ अच्छा अच्छा लोग रहत बानी इहो समझ पाए .................सजीव चित्रण के लिए हार्दिक आभार .
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी...
ReplyDeleteबिल्कुल भी सहमत नहीं हूं की वहा जा कर मन तृप्त करने के लिए भक्ति का होना जरुरी है हम लोग "शनिच्चर" को जाते थे मुझे में तो बिल्कुल भी भक्ति भाव नहीं था पर वहा जा कर मन काफी शांत होता था वहा जाना अच्छा लगता था बस | भीड़ भाड़ शोर गुल और जय बजरंगबली के जयघोसो के बाद भी एक अजीब सी शांति सी होती थी वहा पर | बचपन में तो लड्डू बहुत पसंद थे पर बड़े होने के बाद उसका स्तर गिरता गया तो खाना छोड़ दिया लाल पेडा और घेवर हमें ज्यादा पसंद था | मंगल आरती तो कभी नहीं देखी पर शाम को कई बार आरती देखी है | और बचपन में दर्शन करने के बाद हमारा सीधा ठिकाना चप्पल स्टैंड के पास की खिलौने की वो दुकान थी जहा हम सादा खिलौने देखते रहे पर कभी ख़रीदा नहीं :)
ReplyDeleteI have read so many posts on the topic of the blogger lovers except this piece of writing is in fact a pleasant paragraph, keep it up.
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