उड़ गए पंछी, सो गए हम
हमको है लुटने का गम
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
जब उजले पंछी आए थे
हम उनसे टकराए थे
थे ताकतवर, नरभक्षी थे
पर हमने दूर भगाए थे
जान लड़ाने वाले वे दिवाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
गैरों से तो जीते हम
अपनो से ही हारे हम
कैसे-कैसे सपने देखे
नींद खुली आँखें थीं नम
बजुके पूछ रहे खेतों के दाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
भुना रहे हैं एक रूपैय्या
जाने कैसे तीन अठन्नी
पैर पकड़ कर हाथ मांगते
अब भी अपनी एक चवन्नी
मुठ्ठी वाले हाथ सभी ना जाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
तुलसी के पौधे बोए थे
दोहे कबीर के गाए थे
सत्य अहिंसा के परचम
जग में हमने फहराये थे
नैतिकता के वे ऊँचे पैमाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
..................................................................
bhtrin rchnaa ker liyen badhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआभार महोदय ||
बहुत सशक्त रचना।
ReplyDeleteदाने अगर खेत में जाते तो और दाने पैदा होते, दाने अगर देश में ही रहते तो देश की उन्नति में काम आते पर दाने तो स्विस बैंकों मे चले गये अब बताईये क्या किया जाये?
ReplyDeleteरामराम.
वाह..........सुभानाल्लाह........एक और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई आपको..........हैट्स ऑफ
ReplyDeleteबापू को बतला दो
ReplyDeleteसड़ गए सारे दाने,
जलते हुए दियों को
बुझा गए परवाने !
बापू को क्यों रुला रहे हो भाई ?
तुलसी के पौधे बोए थे
ReplyDeleteदोहे कबीर के गाए थे
सत्य अहिंसा के परचम
जग में हमने फहराये थे
नैतिकता के वे ऊँचे पैमाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
Bahut,bahut sashakt rachana!
बेहतरीन।
ReplyDeleteभावभरी और सशक्त रचना।
जाल बिछाने वाले दाने,
ReplyDeleteनहीं पता, हैं किसको खाने।
आज बापू होते तो वो भी कुछ नहीं कर पाते ... सार्थक चिंतन ...
ReplyDeleteगैरों से तो जीते हम
ReplyDeleteअपनो से ही हारे हम
कैसे-कैसे सपने देखे
नींद खुली आँखें थीं नम
सत्य कथन ।
सुन्दर भावपूर्ण रचना ।
गैरों से तो जीते हम
ReplyDeleteअपनो से ही हारे हम
कैसे-कैसे सपने देखे
नींद खुली आँखें थीं नम
बजुके पूछ रहे खेतों के दाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
सच कहा आपने गांधी जयंती के उपलक्ष पर सटीक एवं सुंदर अभिवक्ती
समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteकिसके दाने, किसे थे खाने
ReplyDeleteकौन ले गया उन्हें भुनाने ?
सच !तभी तो कोई एक अकेला शहर में कोई आबो दाना ढूंढता है और अब मिलता नहीं !
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....
ReplyDeleteमौजूदा दौर की कुव्यवस्था का चित्रण।
आज गांधी जी होते तो शायद वो भी रो देते....
बाज़ारवाद और वैश्वीकरण ने लील लिया है।
ReplyDeleteकविता के बिम्ब और प्रतीकों के प्रयोग ने कविता में एक नई चेतना प्रस्तुत की है। आभार इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि के लिए।
गैरों से तो जीते हम
ReplyDeleteअपनो से ही हारे हम
कैसे-कैसे सपने देखे
नींद खुली आँखें थीं नम
hbut acha.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteसार्थक चिंतन है.
बापू के सिद्धांतों को नमन.
आशीष
--
लाईफ़?!?
वाह...बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteक्या बात है ,, ढूंढ़ना तो होगा ही....... शुक्रिया जी
ReplyDeleteनैतिकता के वे ऊँचे पैमाने कहाँ गये !
ReplyDeleteक्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
सशक्त रचना ...
तुलसी के पौधे बोए थे
ReplyDeleteदोहे कबीर के गाए थे
सत्य अहिंसा के परचम
जग में हमने फहराये थे
नैतिकता के वे ऊँचे पैमाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति. आभार.
दाने या खजाने मालिक के सोने पर लुट ही जाते है.
ReplyDeleteतुलसी के पौधे बोए थे
ReplyDeleteदोहे कबीर के गाए थे
सत्य अहिंसा के परचम
जग में हमने फहराये थे
नैतिकता के वे ऊँचे पैमाने कहाँ गये !
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गये !
बहुत सशक्त प्रस्तुति।
लाजवाब....आपकी लेखनी को नमन...
बापू को शत शत नमन...आपकी कविता को भी सलाम
ReplyDeleteकितनी सुन्दर कविता.... वाह...
ReplyDeleteबापू और शास्त्री जी को सादर नमन...
सशक्त और बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|....बापू और शास्त्री जी को सादर नमन...
ReplyDelete'मुट्ठी वाले हाथ सभी न जाने कहाँ गए '
ReplyDeleteबहुत ही प्रासंगिक, मार्मिक एवं भावपूर्ण गीत ....पाण्डेय जी !
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बापू जी को मेरा शत शत नमन! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वाह
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