15.11.11

मध्यम वर्गीय चरित्र



पिछले सप्ताह वाराणसी में पुस्तक मेला लगा था। मैं उस दिन गया जब वहाँ ढेर सारे उल्लू जमा थे। मेरा मतलब उस दिन उलूक महोत्सव भी था। कार्तिक मास में बनारस में यह घटना भी होती है । दूर-दूर के बड़े-बड़े हास्य-व्यंग्य के कवि उल्लू कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। धूम धाम से उलूक महोत्सव मनाया जाता है। मंच पर वही कवि श्रेष्ठ माना जाता है जो अपने उल्लूपने से, शेष जमा हुए उल्लुओं को ठहाका लगाने पर मजबूर कर दे। मैने पुस्तकें भी खरीदी और कविताओं का आनंद भी लिया। कविताएँ उल्लुओं की जमात में बैठकर सुनते वक्त तो अच्छी लगी होंगी तभी मैं भी हंस रहा था लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं थीं कि अब तक याद रहें और टेप कर के आपको सुनायीं जायं। ऐसी कविताएं उल्लुओं की जमात में बैठकर सामूहिक रूप से सुनते वक्त ही अच्छी लगती हैं। आप हड़बड़ी में सरसरी तौर पर नज़र डालेंगे तो वाहियात लगेंगी सो मैने न तो टेप किया न उसे यहां लिखकर आपका कीमती वक्त जाया करना चाहता हूँ। यहाँ तो उस पुस्तक मेला से लाई हरिशंकर परसाई के एक व्यंग्य संग्रह प्रेमचंद्र के फटे जूते से एक छोटी सी व्यंग्य कथा पढ़ाना चाहता हूँ जिसे पढ़कर मैं सोचता हूँ कि परसाई जी जो लिख कर चले गये उसके सामने हम आज भी कितने बौने हैं ! न पढ़ी हो तो पढ़ ही लीजिए परसाई जी की यह छोटी सी व्यंग्य कथा जिसका शीर्षक है...एक मध्यम वर्गीय कुत्ता।

मध्यम वर्गीय कुत्ता

मेरे मित्र की कार बँगले में घुसी तो उतरते हुए मैने पूछा, इनके यहाँ कुत्ता तो नहीं है?”

मित्र ने कहा, तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!”

मैने कहा, आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हूँ। पर सच्चे कुत्तों से बहुत डरता हूँ।

कुत्तेवाले घर मुझे अच्छे नहीं लगते। वहाँ जाओ तो मेजबान के पहले कुत्ता भौंककर स्वागत करता है। अपने स्नेही से नमस्ते हुई ही नहीं कि कुत्ते ने गाली दे दी-क्यों आया बे ? तेरे बाप का घर है ? भाग यहाँ से !”

फिर कुत्ते के काटने का डर नहीं लगता-चार बार काट ले। डर लगता है उन चौदह बड़े-बड़े इंजेक्शनों का जो डाक्टर पेट में घुसेड़ता है। यूँ कुछ आदमी कुत्ते से अधिक जहरीले होते हैं। एक परिचित को कुत्ते ने काट लिया था। मैने कहा, इन्हें कुछ नहीं होगा। हालचाल उस कुत्ते के देखो और इंजेक्शन उसे लगाओ।

एक नये परिचित ने मुझे घर पर चाय के लिए बुलाया। मैं उनके बंगले पर पहुँचा तो फाटक पर एक तख्ती टँगी दिखी-कुत्ते से सावधान!’ मैं फौरन लौट गया। कुछ दिनो बाद वे मिले तो शिकायत की, आप उस दिन चाय पीने नहीं आये!” मैने कहा, माफ करें। मैं बंगले तक गया था। वहाँ तख्ती लटकी थी-कुत्ते से सावधान। मेरा खयाल था, उस बंगले में आदमी रहते हैं। पर नेमप्लेट कुत्ते की टँगी दीखी।

यूँ कोई-कोई आदमी कुत्ते से बदतर होता है। मार्क ट्वेन ने लिखा है-यदि आप भूखे मरते कुत्ते को रोटी खिला दें, तो वह आपको नहीं काटेगा। कुत्ते में और आदमी में यही मूल अंतर है।

बँगले मे हमारे स्नेही थे। हमें वहाँ तीन चार दिन ठहरना था। मेरे मित्र ने घंटी बजायी तो जाली के अंदर से वही भौं-भौं की आवाज आयी।  मैं दो कदम पीछे हट गया। हमारे मेजबान आये। कुत्तों को डाँटा-टाइगर, टाइगर ! उनका मतलब था-शेर, ये लोग कोई चोर डाकू नहीं हैं। तू इतना वफादार मत बन।

कुत्ता जंजीर से बंधा था। उसने देख भी लिया था कि हमें उसके मालिक खुद भीतर ले जा रहे हैं पर वह भौंके जा रहा था। मैं उससे काफी दूर से लगभग दौड़ता हुआ भीतर गया।

मैं समझा, यह उच्चवर्गीय कुत्ता है। लगता ऐसा ही है। मैं उच्चवर्गीय का बड़ा अदब करता हूँ। चाहे वह कुत्ता ही क्यों न हो। उस बंगले में मेरी अजब स्थिति थी। मैं हीन भावना से ग्रस्त था-इसी अहाते में एक उच्चवर्गीय कुत्ता और इसी में मैं ! वह मुझे हीकारत की नजर से देखता।

शाम को हम लोग लॉन में बैठे थे। नौकर कुत्ते को अहाते में घुमा रहा था। मैने देखा, फाटक पर आकर दो सड़किया आवारा कुत्ते खड़े हो गये। वे आते और इस कुत्ते को बड़े गौर से देखते। फिर यहाँ-वहाँ घूमकर लौट आते और इस कुत्ते को देखते रहते। पर यह बंगलेवाला उन पर भौंकता था। वे सहम जाते और यहाँ-वहाँ हो जाते। पर फिर आकर इस कुत्ते को देखने लगते।

मेजबान ने कहा, यह हमेशा का सिलसिला है। जब भी यह अपना कुत्ता बाहर जाता है, वे दोनो कुत्ते इसे देखते रहते हैं।

मैने कहा, पर इसे इन पर भौंकना नहीं चाहिए। यह पट्टे और जंजीरवाला है। सुविधाभोगी है। वे कुत्ते भुखमरे और आवारा हैं। इसकी और उनकी बराबरी नहीं है। फिर यह क्यों चुनौती देता है!”

रात को हम बाहर ही सोये। जंजीर से बंधा कुत्ता भी पास ही अपने तखत पर सो रहा था। अब हुआ यह कि आसपास जब भी वे कुत्ते भौंकते, यह कुत्ता भी भौंकता। आखिर यह उनके साथ क्यों भौंकता है ? यह तो उन पर भौंकता है। जब वे मुहल्ले में भौंकते हैं तो यह भी उनकी आवाज में आवाज मिलाने लगता है, जैसे उन्हें आश्वासन देता हो कि मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे साथ हूँ।

मुझे इसके वर्ग पर शक होने लगा है। यह उच्चवर्गीय नहीं है। मेरे पड़ोस में ही एक साहब के पास थे दो कुत्ते। उनका रोब ही निराला ! मैने उन्हें कभी भौंकते नहीं सुना। आसपास कुत्ते भौंकते रहते, पर वे ध्यान नहीं देते थे। लोग निकलते, पर वे झपटते नहीं थे। कभी मैने उनकी एक धीमी गुर्राहट ही सुनी होगी। वे बैठे रहते या घूमते रहते। फाटक खुला होता, तो भी बाहर नहीं निकलते थे। बड़े रोबीले, अहंकारी और आत्मतुष्ट।

यह कुत्ता उन सर्वहारा कुत्तों पर भौंकता भी है और उनकी आवाज में आवाज भी मिलाता है। कहता है-मैं तुममें शामिल हूँ। उच्चवर्गीय झूठा रोब भी और संकट के आभास पर सर्वहारा के साथ भी-यह चरित्र है इस कुत्ते का। यह मध्यम वर्गीय चरित्र है। यह मध्यम वर्गीय कुत्ता है। उच्चवर्गीय होने का ढोंग भी करता है और सर्वहारा के साथ मिलकर भौंकता भी है।

तीसरे दिन रात को हम लौटे तो देखा, कुत्ता त्रस्त पड़ा है। हमारी आहट पर वह भौंका नहीं. थोड़ा सा मरी आवाज में गुर्राया। आसपास वे आवारा कुत्ते भौंक रहे थे, पर यह उनके साथ भौंका नहीं। थोड़ा गुर्राया और फिर निढाल पड़ गया।

मैने मेजबान से कहा, आज तुम्हारा कुत्ता बहुत शान्त है।

मेजबान ने बताया, आज यह बुरी हालत में है। हुआ यह कि नौकर की गफलत के कारण यह फाटक के बाहर निकल गया। वे दोनो कुत्ते तो घात में थे ही। दोनो ने इसे घेर लिया। इसे रगेदा। दोनो इस पर चढ़ बैठे। इसे काटा। हालत खराब हो गयी। नौकर इसे बचाकर लाया। तभी से यह सुस्त पड़ा है और घाव सहला रहा है। डॉक्टर श्रीवास्तव से कल इसे इंजेक्शन दिलाउँगा।

मैने कुत्ते की तरफ देखा। दीन भाव से पड़ा था। मैने अन्दाज लगाया। हुआ यों होगा-

यह अकड़ से फाटक के बाहर निकला होगा। उन कुत्तों पर भौंका होगा। उन कुत्तों ने कहा होगा -‘अबे, अपना वर्ग नहीं पहचानता। ढोंग रचता है। यो पट्टा और जंजीर लगाये है। मुफ्त का खाता है। लॉन पर टहलता है। हमें ठसक दिखाता है। पर रात को जब किसी आसन्न संकट पर हम भौंकते हैं, तो तू भी हमारे साथ हो जाता है। संकट में हमारे साथ है, मगर यों हम पर भौंकेगा। हममें से है तो निकल बाहर। छोड़ यह पट्टा और जंजीर। छोड़ आराम। घूरे पर पड़ा अन्न खा या चुराकर रोटी खा। धूल में लोट।

यह फिर भौंका होगा। इस पर वे कुत्ते झपटे होंगे। यह कहकर – अच्छा ढोंगी, दगाबाज, अभी तेरे झूठे वर्ग का अंहकार नष्ट किये देते हैं।

इसे रगेदा, पटका, काटा और धूल खिलायी।

कुत्ता चुपचाप पड़ा अपने सही वर्ग के बारे में चिन्तन कर रहा है।

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33 comments:

  1. परसाई जी का जवाब नहीं!...आपका क्लासिकल व्यंग्य पढ़वाने के लिए आभार!! कृपया कुत्ते को चिंतन करने दें...

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  2. शानदार व्यंग्य ..आभार...

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  3. परसाई जी मेरे प्रिय लेखक हैं। एक समय उनकी सारी रचनाएं एक सिरे से पढ़ डाली थीं। आज फिर याद ताजा हो आई ।

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  4. क्या तो कहूँ....????

    सुपर्ब !!!!

    वैसे आपने भी बड़ी सही कही, कवि सम्मेलनों की..

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ... परसाई जी के व्यंग बहुत सटीक होते हैं ..

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  6. बेहतरीन व्‍यंग्‍य।

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  7. परसाई जी को व्यंग लिखने की महारत थी. देवेन्द्र पाने जी आपने उनकी ये रचना पाठकों तक अपने ब्लॉग के माध्यम से पहुंचाई धन्यवाद.

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  8. कुत्ते (कुतिया भी शामिल मन जाय) जितना लेखकों के प्रिय रहे हैं उतना ही ब्लागरों के भी !

    ये बेचारे खुद तो निशाना बनते हैं और इसका फायदा हम मानुषों को होता है !



    ब्लॉग की सफाई मुबारक !

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  9. सच्चे लोगों से भय खाना ही चाहिये, कुत्ते ही सही।

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  10. ब्लागर्स को इशारों इशारों में ही चेता गये :)

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  11. झूठे वर्ग का अहंकार ...
    कुछ साहित्यकारों ने जो लिखा वह कभी समय से परे नहीं हुआ !

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  12. बहुत खूब-बहुत खूब

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  13. बेहतरीन........कुत्ते के माध्यम से बड़ी गहरी मार कर गए परसाई जी......आपका आभार बाँटने के लिए|

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  14. बहुत सुन्दर व्यंग है,बडे लोगो के बडे चम्चो के लिए.

    मगर आपने स्केनिंग किया या खुद टाईप किया ? अगर खुद टाईप किया तो बहुत मेहनत किया है आपने,धन्यवाद.

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  15. क्‍या व्‍यंग्‍य है? कितनी बाते कह दी हैं। यह भी सच है कि उच्‍च वर्ग के कुत्ते भौंकते नहीं है। मैंने अमेरिका के कुत्ते देखे, वे भौंकते ही नहीं है। अब समझ में आया कि वे उच्‍च वर्ग के हैं। इतना उच्‍च स्‍तरीय व्‍यंग्‍य पढ़वाने के लिए आपका आभार।

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  16. मज़ेदार कहानी ।

    एक बार आदमी और कुत्ते में बहस हो गई कहीं
    कुत्ता बोला --कभी मैं भी इन्सान था , मगर तेरी तरह कुत्ता नहीं ।

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  17. मैं बहुत डरते डरते कमेन्ट कर रहा हूँ -
    इसे कुत्ता पोस्ट कहूं या कुत्ती पोस्ट !
    जब कोई श्वान पोस्ट आती है मेरी घबराहट बढ़ जाती हैं ..
    और अनूप जी तुरंत मेरी घबराहट ताड़ लेते हैं ..
    इन दिनों दिख नहीं रहे कहीं ..उन्हें और गिरिजेश जी को जबरिया यह लिंक भेजिए दीजिये
    मेरी और से साभार !
    तो यह उलूक महोत्सव के उपलक्ष्य में हुयी समझिये !

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  18. मध्यम वर्गीय ही सही, कुत्ता अच्छा लगा।

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  19. पुस्तक, उल्लू से डॉक्टर और कुत्ते तक पहुंचता आलेख पसंद आया. परसाई जी का व्यंग्य तो यथार्थ है ही, इंसान व कुत्ते के बारे में मार्क ट्वेन का कथन भी प्रासंगिक है.

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  20. बहुत ही मज़ेदार लगा! शानदार और ज़बरदस्त व्यंग्य! लाजवाब प्रस्तुती!

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  21. जवाब नहीं है पारसी जी का ... आपने एक लाजवाब व्यंग पढवाया है ... बहुत शुक्रिया ...

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  22. बहुत मजेदार व अर्थपूर्ण लिखा है,बधाई !


    अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।

    औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता

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  23. पांडे जी!!
    मेले वेले की तो नहीं जानता..लेकिन परसाई जी की कुछ किताबें मैंने फ्लिप्कार्ट से मंगवाई हैं और उन्हीं में से एक पुस्तक में मिली यह रचना.. घटिया और फूहड़ व्यंग्य देखकर ऊब चुका था.. सोचा परसाई जी और शरद जोशी को पढूं.. और यकीन मानिए एक ठंडी हवा का झोंका हैं ये लोग...
    नमन है उन्हें!!

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  24. पांडे जी दन्यवाद
    अछे व्यंग को पढने का मोका मिला

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  25. परसाईं जी तो फिर परसाईं जी थे .आज होते तो कृष्ण राधा को लिविंग इन रिलेशन का सूत्रधार बतलाते .बकौल उनके हनुमान पहले स्मगलर थे .तस्कर थे पूरा पहाड़ उठा लाये जब चेक पोस्ट पर टोका कहने लगे भाई अपने लक्ष्मण भैया को शक्ति लगी है और बस सीमा पार .

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  26. उज्जैन में इसी प्रकार 'टेपा-सम्मेलन' की परंपरा है.

    पारसाई जी ने भी क्या घसीटा है उन लोगों को कुत्ते के बहाने !

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  27. ई कुत्तई भी बड़ी बेढब चीज है जो अब तक अपना जलवा कायम किये हुए है! कुत्तों के बहाने इस अनवरत विमर्श से बेचारे उन कुत्तों पर क्या बीतती होगी?

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  28. मध्य वर्ग का हूं, सो सह लेता हूं इस व्यंग को।

    मध्यवर्ग का मनई जहां वश न चले, वहां सहने के मोड में जल्दी/सहजता से आ जाता है।

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