पंचगंगा घाट से शुरू हुआ देव दीपावली का मेला आज बनारस की शान बन चुका है। अब कोई घाट इससे अछूते नहीं रहे। एक समय था जब केवल पंचगंगा घाट में ही देव दीपावली मनाई जाती थी और बगल के दुर्गाघाट में दुर्गाघाटी मुक्की। इधर दीप जलते उधर मुक्के बाजी शुरू। इसका विस्तार से वर्णन मैने आनंद की यादें में किया है। आज इस बालक को देखकर उसी नन्हे आनंद की याद हो आई जो कभी दुर्गाघाट की सीढ़ियों पर इसी तनमयता से कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप जलाता था।
लख्खा मेला में परिवर्तित हो चुके इस देव दीपावली महोत्सव को देखने की शुरूवात आज मैने अस्सी घाट से की। घाट पर पहुंचा तो इतनी भीड़ थी कि पैदल एक घाट से दूसरे घाट का नजारा लेना संभव ही न था। अस्सी घाट का नजारा देखिए....
मेरे साथ शुक्ला जी थे। श्रीमती जी और बच्चों ने तो पहले ही भीड़ से घबड़ा कर जाने से साफ इंकार कर दिया था। हमारा देखा हुआ है आप घूम आइये..हमें कौन ब्लॉगरी करनी है..! अब ससुरा जो करते हैं लगता है ब्लॉगरिये के लिए कर रहे हैं ! हमारा तो कुछ मन होता ही नहीं है !! हद हो गई। खैर छोड़िए, शुक्ला जी को पकड़ा और पहुंच ही गये घाट पर। डा0 अरविंद मिश्र जी ने तो पहले ही अपने काम के चलते जाने में असमर्थता बताई थी। अस्सी घाट की भीड़ देखकर तो हम भी घबड़ा गये। शुक्ला जी ने कहा कि ऐसे तो हम इसी घाट में सिमट कर रह जायेंगे। चलिए एक नौका कर लेते हैं। नाव वाले मानों इसी दिन के इंतजार में रहते हैं। 1000 रूपये से मोल भाव शुरू हुआ। इतने में दो छात्र भी मिल गये। काफी मान मनौव्वल के बाद नाव वाला 800रू में हम सब को पंचगंगा घाट तक घुमाने को तैयार हो गया। जमकर घूमे... खूब फोटू हींची। ऐसा लगा मानो खजाना हाथ लग गया। लेकिन हाय री किस्मत ! एक तो अपना कैमरा बिलो क्वालिटी का ऊपर से हिलती नाव, अधिकांश फोटू नैय्या के हिलते रहने के कारण खराब ही आई। कुछ ठीक ठाक हैं जो लगा रहा हूँ।
दशाश्वमेध घाट आने ही वाला है...
नीचे सिंधिया घाट के बगल में काशी करवट.. जहाँ नीले झालर लगे हैं। बगल में मणिकर्णिका घाट है।
नीचे घाटों का एक विंहगम दृष्य ..दूर-दूर के सजे घाट दिखाई दे रहे हैं। आतिशबाजी भी हो रही है।
नीचे दशाश्वमेध घाट के सामने नावों द्वारा गंगा जाम का दृष्य....
देखिए..कितने नावों में कितने लोग !
जैन घाट
घाटों पर और नावों पर लोगों की अपार भीड़
कई घाट घूम कर जब वापस तुलसी घाट आये तो पता चला यहाँ कृष्ण लीला जारी है। यहीं नाव से उतर गये। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कंस का वध होता है। यह लीला देव दीपावली के बहुत पहले से मनाई जा रही है। आपको मैने नाग नथैय्या मेले के बारे में बताया था। यह उसी के आगे की कड़ी है। नीचे के चित्र में ध्यान से देखेंगे तो कंस का पुतला दिखाई देगा। चाँद तो मेरे कैमरे में पानी की बूंद का छिट्टा पड़ जाने से बन गया होगा।
यह तो कंस का सैनिक है। मैने कहा आओ आर..फोटू खिंचा लें....
कृष्ण लीला का हाथी
घाटों पर ही नहीं, घाटों के मंदिरों पर भी खूब सजावट थी और दिये जले थे।
ऐसा नहीं है कि इतने ही घाट अच्छे सजे हैं। यहाँ तश्वीरें उन्हीं की हैं जो मेरे कैमरे में कुछ ठीक-ठाक आ गई हैं। पंचगंगा घाट तो छूट ही गया। नाव के हिचकोलों से कैमरा इतना हिल गया कि तश्वीरें खराब हो गईं। अब आप ही बताइये है काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह उत्सव है न बेजोड़ ?
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बहुत सुंदर चित्र,बढ़िया जगमगाती पोस्ट.आपकी मेहनत सार्थक हुई.आभार .
ReplyDeleteइन्ही दृश्यों का तो इंतज़ार करते रहे बेसब्री से और हाँ आनन्द की पंचगंगा की यादे ताजा हैं ....
ReplyDeleteआप तो घूम आये और हम रह गए इस बार ..... :(
बहुत सुंदर चित्रों के साथ यात्रा| मान गए आपको घाट घाट के फोटो लिए हैं , आभार
ReplyDeleteआज तो आपके ब्लॉग में पूर्ण पठनीयता का आनन्द आया, देव दीवाली का प्रकाश खिलकर उभरा है।
ReplyDeleteचित्र धुंधले होने के बावजूद स्वर्णिम दृश्य दिखा रहे हैं .
ReplyDeleteआभार!
चित्र और विवरण के माध्यम से इस जगमगाती शाम के दर्शन कराने का आभार! सुबहे-बनारस तो विश्व-विख्यात है, अब तो शामे-बनारस की दिव्यता भी देख ली।
ReplyDeleteत्योहार मनाना तो कोई बनारस वालों से सीखे। बहुत ही बढिया। यह जानकारी भी नवीन थी कि देव दीवाली के दिन कंस का वध हुआ था। सारी ही तस्वीरे मन को मोह गयी।
ReplyDeleteबनारस की देव-दीपावली के बारे में इधर काफी-कुछ कहा जा रहा है ,आपने विस्तार से घाटों के ठाठ कैमरे की आँख से देखा और बताया अच्छा लगा !अरविन्दजी साथ होते तो आपका आनंद दुगुना हो जाता !
ReplyDeleteइस अनुपम सचित्र प्रस्तुति के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ..हमें भी अवसर दिया आपने यह सब देखने का ... ।
ReplyDeleteदेव दीपावली पर घर बैठे बैठे कशी दर्शन हो गए ....आभार इतनी सुंदर जानकारी और जगमगाती पोस्ट के लिए....
ReplyDeleteफोटो तो बहुत सुन्दर आए है.लग रहा है कि लोग बहुत जी-जान लगाकर दीए जलाते है.
ReplyDeleteमगर येक बात सोचता हू कि पूनम की रात मे चाँदनी का मजा लेते और किसी अमावास की रात मे इस तरह दीए जलाते तो ज्यादे अछ्छा नही होता ?
पूनम की रात मे चाँदनी का कोई चाहे तो कैसे आनन्द लेगा ?
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|
ReplyDeleteसुंदर चित्रण।
ReplyDeleteआभार....
हिचकौले खाते हुए भी कुछ फोटो तो बहुत सुन्दर आए हैं ।
ReplyDeleteबड़ा मनोरम दृश्य है गंगा घाटों का ।
लगता है मेले का भरपूर आनंद लिया गया है । ]
बधाई भाई ।
अरविन्द जी तो दूर से ही देखते रह गए । :)
यह मेला क्या एक दिन ही होता है ?
ReplyDelete@ बिलों कुआलिटी कैमरा ...
ReplyDeleteइतने प्यारे आर्टिस्टिक फोटो ...आनंद आ गया यह रमणीय द्रश्य की मेरी कल्पना भी नहीं थी ! आभार आपका
और आपके इस कैमरे का...यह फोटो किसी एस एल आर से कम नहीं लग रहे हैं !
सुंदर चित्रों से सजी सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
बहुत खूब
ReplyDeleteगृह नगर और उसके दृश्यों को देख सम्मोहित हो गया
इन सभी चित्रों को देखकर मन मुग्ध हुआ से ज़्यादा मन श्रद्धा से भर गया... श्रद्धा से झुक गया गंगा मैया के सम्मान में...
ReplyDeleteआज अचानक "आनंद की यादें" का ज़िक्र देखकर याद आया कि जब आपने यह ब्लॉग शुरू किया था तब सबसे पहले जुड़ने वालों में मैं था.. पता नहीं कैसे बीच में छूट गया!!
एक बार पुनः देव दीपावली के दर्शन का पुण्य हमतक पहुंचाने के लिए धन्यवाद!!
ओह...मन जगमगा दिए भाई साहब...
ReplyDeleteभीड़ से तो हमरा हिरदय भी थरथराता है , लेकिन जो यह सब देखने मिले तो ऐसे लाख भीड़ को चीर दें..
आनंद आ गया...
बहुत बहुत आभार आपका...
आनन्द आ गया..लगा खुद घूम रहे हैं नाव में बिना ८०० रुपया दिये.... :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..एकदम बेजोड़ ..बाबा नगरी की सुन्दरता देखने योग्य है.
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों से सजी आपकी मनोरम पोस्ट
ReplyDeleteपढकर आनंद आ गया है.
आपका आभार और अनुपमा जी की हलचल का
आभार.
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
अद्भुत ! २००८ में हम भी वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध देव दीवाली का आनंद ले सके थे, आपकी सुंदर तस्वीरों और आलेख ने जैसे सब कुछ ताजा कर दिया.
ReplyDeleteis post ke liye aapko dhanywaad...
ReplyDeletehamne to ise padkar or dekhkar wahan ka aanand le liya,,,
jai hind jai bharat
अद्भुत दृश्य हैं घाटों के ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर चित्र
ReplyDeleteबेहतरीन चित्रात्मक पोस्ट .
ReplyDeleteश्री देवेन्द्र पाण्डे जी
ReplyDeleteमैं दुविधा में हूँ कि आपकी तारीफ करूँ या आदरणीय अरविन्द मिश्र जी की ।
उनके दिये लिंक के कारण आप तक पहुँच कर देव दीपावली के जीवंत दृष्य देख सका हूँ
आपके सौजन्य से बनारस की देव दीपावली का जीवंत दृष्यावलोकन जो कर सका हूँ।
श्री देवेन्द्र पाण्डे जी आपको प्रणाम करते हुये धन्यवाद अरविन्द मिश्र जी को भी कि उन्होंने आपका लिंक दिया
बेहद सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteप्रकाशपर्व और गंगाघाटों से ढेर सारी यादें जुड़ी हैं..
आभार दृश्य दर्शन कराने के लिए!
जड़ और चेतन दोनों में अभिव्यक्त हो रही अभिव्यक्ति....आभार ...सुन्दर चित्रों से सजी इस बेहतरीन पोस्ट के लिए
ReplyDeleteसुन्दर चित्रावली... सुन्दर विवरण...
ReplyDeleteसादर...
देव दिवाली तो दीपावली को भी मात दे रही है क्यू ना हो देवों की दीपावली जो ठहरी । क्या प्रकाश उत्सव है आनंद आ गया ।
ReplyDelete@ देवेन्द्र जी १ ,
ReplyDeleteसबसे पहले भाभी जी और बच्चों के निर्णय की सराहना करूँगा जो देखे हुए को भीड़ में दोबारा घुसकर देखने के ब्लागरीय दुस्साहस से दूर रहे :)
@ देवेन्द्र जी २,
आलेख पढकर यही समझा कि गंगा माई के कारण नाव हिल रही थी पर टिप्पणी पढकर पता चला कि नाव पर समीर लाल जी भी बिना पैसे दिए मौजूद थे बेचारी कैसे ना हिलती :)
मैं तो सोचता था कि जो दृश्यमान है वजन उसका ही पकड़ में आना चाहिए ...यहां तो नाव ने अदृश्यमान की मौजूदगी को भी महसूस किया :)
@ देवेन्द्र जी ३,
मदिरा सेवन से दुनिया डोलती दिखती है का भ्रम आज टूट गया ! यह श्रेय आज नौकायन के हाथ रहा :)
उत्सव , आलोक और आलोक सुख देता है ,हम सब के जीवन में इनका आधिक्य हो बस यही कामना है !
कितनी सुन्दर,कितनी उज्ज्वल हैं गंगा माँ ,उत्सव की इस बेला में आपके कैमरे ने हमें भी दिखा दिया!
ReplyDeleteउस बनारस जहां संगीत बका रस बना ही रहता है रात ने पूरी तरह अपनी बांहों में लेने की कोशिश ज़रूर क़ी लेकिन बाहें छोटी पद गईं .देव दिवाली असीम छटा बिखेर गई .
ReplyDeleteमनोहारी चित्रों ने तो हमारे ८०० रुपये भी बचा दिए.
ReplyDeleteजीवंत आये है सभी चित्र. आभार.
वाह ....
ReplyDeleteअद्भुत नज़र है .......
आपके ब्लॉग की पोस्ट के माध्यम से लगता है की हमने भी बनारस घूम लिया.......बहुत सुन्दर दृश्य है |
ReplyDeleteघटिया फोटो जब इतना गज़ब ढा रहें हैं तो तथाकथित बढ़िया फोटो तो जान ही ले लेते!! हम तो रंगों के उत्सव से अभिभूत हैं...पूरा देव लोक ही लग रहा है बनारस! आपके फोटोग्राफी कौशल के कुर्बान!!
ReplyDeleteसुनबे किये थे देव दीपावली के बारे में आज देख भी लिए तो मन खुस हो गइल ...........आभार आपको
ReplyDelete२ साल हुए, वरना २३ वर्ष गँगा माँ को निहारा था मैंने भी :)
ReplyDeleteमतलब कि अगली देवदीपावली पर सुबह-ए-बनारस में धावा बोलना ही पड़ेगा! आपकी जानकारी दे दें तो शायद आमंत्रण भी मिल ही जाए कि हमरा कैमरा में इमेज स्टेबलाइजेशन बहुत तगड़ा है!......:-)
ReplyDeleteहालाँकि चित्र इतने बुरे भी नहीं !!