सब्जी बाजार में भटकते-भटकते थक हार कर देर शाम अपनी वाली सब्जी की
दुकान से सब्जी खरीदने गया तो देखा सभी हरी सब्जियाँ बिक चुकी थीं। आलू, टमाटर,
प्याज के अलावा एक छोटी कटहरी अकेले उदास बैठी थी। मैने लपक कर उसे उठा लिया।
दुकानदार से पूछा...”इहै बचल हौ ! कित्ते कs हौ?” दुकानदार ने एहसान लादते हुए कहा..”सबेरे से तीस मे
बेचत रहली, आप बीसे दे दिहा।“ दाम सुनकर मैं चीखा..”नान भरे कs मिर्ची अस कटहरी, बीस रूपैय्या में ! काहे लूटत हउआ मालिक ?” दुकानदार झल्लाकर उसे मेरे
हाथ से छीनने ही वाला था कि मैने उसे लपक के अपने झोले मे छुपा लिया। खिसियानी
हंसी हंसते हुए संत वचन बोलने लगा, ”ठीके हौ, तोहू का करबss
! जौन भाव मिली तौने भाव न बेचबss !! J वह हंसते
हुए बोला.. “एक घंटा से बाजार मे घूमत हउआ। जब कुल दुकाने कs सब सब्जी ओरा गयल तs ऐसे पूछत हउआ जैसे हजार दू
हजार कs खरीद्दारी करे वाला रहला! चार दाईं त हमहीं बतउले रहली
कि नेनुआँ, भिंडी, बोड़ा सब चालिस रूपैय्या कीलो हौ। काहे नाहीं तबे कीन लेहला? लगन शुरू हो गयल, काली से यहू भाव न मिली!”
मैं लौटता तभी वहाँ दूसरा व्यक्ति सब्जी खरीदने पहुँचा। सब्जी न देख
बड़का झोला लहराते, आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोला...अरे ! इत्ती जल्दी दुकान से कुल
सब्जी गायब हो गयल ! सबके पास बहुत पैसा हौ मालिक !! अब हम का खरीदी ? मैने उससे कहा, “आप बहुत भाग्यशाली हैं। कम से कम घर जाकर आत्मविश्वास के साथ यह तो कह
सकेंगे न ! सब्जी नहीं मिली तो
क्या करें ? आज आलू प्याज ही बना दो। आज तो मैं बड़ा झोला और
पूरे सौ रूपये का नोट लेकर गया ही था सब्जी खरीदने।” J
वह मेरी ओर देख कर मुस्कराने लगा।
मैं खुश हुआ कि उसे मेरी बात अच्छी लगी।
दुकानदार बड़बड़ाया....”दुकान बढ़ाव रे रमुआँ ! ई दुन्नो
मिला एक्कै कटेगरी कs हउअन। इन्हने के सस्ती सब्जी चाही। सरकार
से लड़े कs औकात तs हौ नाहीं, बस हमरे
कपारे पे सवार हो जइहें। कोई अपने घरे से तs न न देई। समस्या
ई हौ कि अब अइसने गाहक ढेर आवे लगलन ! जिनगी झंड हो गयल।”
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वाकयी सब्जी बहुत मंहगी है ...
ReplyDeleteठीकै कहत है दुकानदरवा !
ReplyDeleteगहन बात लिखी है|आम आदमी की मुसीबत तो है ही .....
ReplyDeleteभाई !!
ReplyDeleteसचमुच सब्जी का भाव मुझे नहीं पता है ।
मुहल्ले में बड़ी हंसी उड़ाई जाती है प्राय: ।
श्रीमती जी कभी कभी बताती हैं तो अपडेट हो जाता है भाव ।
जय अन्नपूर्णा ।
बड़ा बवाल है मंहगाई भी। देखिये कभी लिखे थे दोहे:
ReplyDelete1.मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।
2.चावल अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।
3.माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।
http://hindini.com/fursatiya/archives/701
वाह क्या मुखर अभिव्यक्ति है, सब सरेआम.
ReplyDeleteदै मरदवा चनवा सट्टी पहुच गयला का ? कटहल दो प्याजा की बधाई .
ReplyDeleteएक दिन नाटी इमली चौराहे की मंदी मंडी से खरीदल जाय हमें साथ ... :)
ReplyDeleteइतनी समस्या हो गयी हैं, अब किससे किससे लड़ा जाये। जिसकी जो मन हो, वही सुना देता है..
ReplyDeleteसब्ज़ियां महंगी हो गई हैं लेकिन फिर भी लोग ख़रीद रहे हैं। इसका मतलब यह है कि भारतीयों पास क्रय शक्ति है।
ReplyDeleteमहंगाई हमें अपनी शक्ति का अहसास कराती है जैसे कि नौकरी करने वाली औरत को उसकी नौकरी शक्ति का अहसास कराती है।
देखिए
आधुनिक लगने वाली महिलाओं के जीवन की त्रासदी दर्शाती यह कहानी पढ़ें-
http://mankiduniya.blogspot.com/
बढ़िया चुटकी देवेन्द्र भाई...
ReplyDeleteसब्जियों के भाव दिल्ली के मौसम की तरह बदलते रहते हैं . इसलिए जब मौसम सुहाना हो तो एन्जॉय करें , बाकि समय बस काम चलायें .
ReplyDeleteसही कहा उसने ... सरकार से लड़ने की औकात किसी के पास नहीं ...
ReplyDeleteपर इ मंहगाई डाइन भी तो ससुरी मार रही है ... इब का करें ...
हास्य में व्यंग्य का ज़बरदस्त तड़का.....बाकि जो बचा था महंगाई मर गयी ।
ReplyDeleteसब्जी पर बढ़िया व्यंग्य ... आभार
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteअरे! दिल्ली वालों से पूछिए. कोई सब्जी पचास-साठ के नीचे है ही नहीं, आलू छोड़कर.
ReplyDeleteअसली मनोवैज्ञानिक इहै दोकानदार हव्वन!!
ReplyDeleteबढ़िया मजेदार व्यंग ...पर वाकई सब्जी बहुत ही महेंगी है
ReplyDeleteजिन्नगी झंड ही नहीं, खंड खंड भी हो गई है कविवर। ’रोटी कपड़ा और मकान’ में प्रेमनाथ मुट्ठी और थैले में मौजूद सामान की तुलना करते थे, ठीक ही था लेकिन अब लोग महंगाई के अभ्यस्त भी हो गये हैं।
ReplyDeletei purchase vegetables... from village... it is fresher and cheaper ...
ReplyDeletegood post...
gajabb..ekke kategari ke hauvann :)
ReplyDeleteइंसान की जान , ईमान के अलावा आजकल कुछ भी सस्ता नहीं है !
ReplyDeleteबिलकुल सही बात. हँ
ReplyDeletei अब किस किस से लडें.
बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteवाकई आजकल कुछ भी सस्ता नही है ,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
जी हाँ सब्जी बहुत महंगी हैं... सब तरफ महंगाई की मार है तो सब्जी इससे कैसे बचेगी बेचारी..
ReplyDeleteकुछ ही दिन में सब्ज़ियों फलों की तरह कम ही खाई जाया करेंगी
ReplyDeletehmmm...sach kaha...par isme sabji valon ka koi dosh nhi..vo to hamse bhi jyada pareshan hai mahangai se
ReplyDelete१०० रूप्या में सब्जी खरीदबा ... काहे मजाक करत बाटा
ReplyDeleteबनारस में तो सब्जी बहुत सस्ती है,यहाँ पोखरा,नेपाल में आइये तो भाव सुनकर कहीं बेहोस न हो जाएँ.निनुआ,सिमी,भिन्डी सब १५० रू.किलो में मिलेंगे.
ReplyDelete:)
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