सुनिये ! क्या कहते हैं गंगा घाट के ये परिंदे।
देखा न ! हमारा परिवार कितना बड़ा है !! कितने बड़े महल में रहते हैं हम !!! तुम शायद नहीं जानते। यह महाराजा चेतसिंह का किला है। इसका निर्माण काशी राज्य के संस्थापक राजा ‘बलवंत सिंह’ ने कराया था। घाट और महल शिवाला मोहल्ले में है इसलिए इसे ‘शिवाला घाट’ भी कहते हैं। 1781 में अंग्रेजों से युद्ध में हारकर काशी नरेश ‘चेतसिंह’ किला छोड़कर भाग गये थे। तब से लगभग सवा सौ साल तक यह अंग्रेजों के अधीन रहा। फिर 19वीं शती के उत्तरार्द्ध में महाराजा ‘प्रभु नारायण सिंह’ ने यह किला पुनः प्राप्त कर लिया। है न शानदार ? सैकड़ों वर्षों से गंगा की बाढ़ झेल रहा है मगर जस का तस खड़ा है। तुमने वृक्षों को काट दिया। अब गंगा के घाट हमारे घर बने हैं। सुना है तुम सब गंगा मैया के भी पीछे पड़े हो ! कितने मूर्ख हो !! यह नहीं रहेंगी तो हम क्या, तुम भी नहीं बचोगे।
बात तो पते की है ...
ReplyDeleteसुंदर तस्वीरे और बढ़िया जानकारी किले के बारे में....आभार देवेंदर जी
ReplyDeleteहमारा परिवार बहुत ही बड़ा है और हम ऐसे ही महलो में रहते है
ReplyDeleteबढ़िया |
ReplyDeleteआभार भाई जी ||
हमने उनकी आवाज़ सुनी है,उनके दर्द को जाना है,पर वही बहाना --हम क्या कर सकते हैं ?
ReplyDeleteचित्र भी सुन्दर हैं और पक्षियों की सीख भी।
ReplyDeleteपाण्डेय जी,
ReplyDeleteइतिहास का विद्यार्थी नहीं रहा कभी.. लेकिन इतना पढ़ा है कि दुनिया की समस्त समृद्ध सभ्यताएं नदी किनारे ही विकसित हुईं, चाहे नील नदी की सभ्यता हो या सिंधु घाटी की.. मेरा अपना मानना है कि नदियों के साथ हुए दुर्व्यवहार ने सभ्यता के पतन का भी पथ प्रशस्त किया है.. गंगा जी को नाला बना दिया और हमारी संस्कृति नाले से भी बदतर हो गयी..
परिंदों के माध्यम से इतिहास की झलक और एक प्रश्न/चुनौती सचमुच संवेदनशील है!!
गंगा मां और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर हमने अपना जीवन ही न रहने लायक बना दिया है, और इन पंछियों के मारफ़त से आपने जो संदेश देना चाहा है वह बहुत ही सार्थक है। संदेश के साथ इतिहास की रोचक जानकारी भी मिली।
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित ...प्रभावशाली आलेख ,,,!
ReplyDeleteजो बात मनुष्य नहीं समझ पाए ...पक्षी जल्दी समझ जाते हैं ....!!
किला तो बहुत ही भव्य दिख रहा है...पर इतिहास जानकर मन दुखी हो गया...
ReplyDeleteगंगा के जिक्र पर तो खुश होने का मौका कब आएगा...पता नहीं.
अपने लिए न सही , कम से कम हमारे लिए ही सही -- गंगा मैया को बचाओ !
ReplyDeleteनिवेदन --- किला चेत सिंह गंगा घाट परिंदा एसोसिएशन . :)
इतिहास की धरोहर और गंगा दोनों को ही बचाना है तभी हम भी बचेंगे.
ReplyDeleteसच में बस यही इतिहास कहते होंगे गंगा के परिन्दे।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के माध्यम से बनारस के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला....आभार आपका ।
ReplyDeleteयही कह रहे हैं ये परिंदे, हम नहीं गंगा मैया ना रही तो तुम भी ना रहोगे, और बिन गंगा के कैसे तरोगे...?
ReplyDeleteयह नदी के किनारे के परिंदे ...अपनी अपनी बात कहते हैं हर तरह से ..लेकिन सुनता कौन है इनकी ...?
ReplyDeleteबहुत बारीक नज़र है आपकी ... और आपके कैमरे की
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
banane wale bilkul bhi kisi tarah ki milawat ya kuch bhi ulta sulta jodkar nahi banate the tabhi to aaj bhi we majboot hai.... aaj to majbooti ko koi guaranti hai hi nahi..
ReplyDeletebahut badiya prasuti..aabhar!
परिंदों को तो आशियाना फिर भी मिल जाएगा लेकिन यह मूर्ख इंसान कहां जाएगा?
ReplyDeleteमहानगर ने फैंक दी ,मौसम की संदूक ,
ReplyDeleteपेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक .
मधुमख्खियाँ भी पुरखों की विरासत पे लौट लौट के छत्ता ,बी हाइव बनाती हैं .कमाल है सब फेरोमोंस का .हो सकता है पक्षी भी ऐसा करते हों .कैसे छोड़ें इस किले को अब यही आखरी सहारा है .जैसे गौरैया गई कबूतर भी एक दिन चले जायेंगे .सब चले जायेंगे .पर्यावरण जो chheez rahaa है ,.टूट rahaa है
इस दौर में पर्यावरण पारितंत्र टूट रहें हैं नीड़ का निर्माण अब न हो सकेगा .
लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.हटमल
आरोग्य समाचार :
बचना ही तो कोई नहीं चाहता, बचकर भागने की ही तो सारी कवायत है, जबकि जानते सबहीं है कि जिससे भाग कर जा रहे हैं ये रोड वहीँ बंद होती है, तभी कह रहा हूँ, दिल से तो बचना कोई नहीं चाहता, बस एक नाटक सा किये जा रहे हैं.
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट के लिए साधुवाद.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें।
ReplyDeleteपक्षी और इमारतें चीख चीख कर दे रही चेतावनी !
ReplyDeleteसुन्दर चित्र !
इंसान ने प्रकृति को उजाड़ने का सिलसिला शुरू किया और फिर अपने लिए कांक्रीट के आशियाने बनाये ! परिंदों के लिए विकल्प क्या शेष रहा ?
ReplyDeleteइंसानों ने अपने स्वार्थ के लिए जो भी किया , परिंदों की हक़तलफी की है !
...वैसे ही जैसे गाँव के हरे भरे आँगन से उखड़ कर आदमी झुग्गियों मैं, माचिसनुमा फ्लेटों में सर छुपाने की जगह ढूँढता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सारगर्भित आलेख // बेहतरीन चित्र //
ReplyDeleteMY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
पंछियों के माध्यम से जो आपने गंगा चिंतन किया है काबिले तारीफ़ है ... चित्र भी लाजवाब और वर्णन भी रोचक ...
ReplyDeleteसुन्दर चकाचक फोटो और कमेंटरी।
ReplyDeleteकाश लोग सुनें और समझे परिंदों की ये बात!!
ReplyDelete