वह नीम है
मैं तो आम हूँ।
मैं तो आम हूँ।
फागुन में बौराती हूँ
चैत में
जनती हूँ टिकोरे
तपती हूँ
वैशाख-जेठ की दोपहरी
आता है मौसम
तपती हूँ
वैशाख-जेठ की दोपहरी
आता है मौसम
मेरा भी
नहीं रहती
अनाथ
फल लगते ही
मिल जाते हैं
कई नाथ !
डाल में
लगते ही
टिकोरे
बाग में
छा ही जाते हैं
छिछोरे
देते हैं
प्यार का सिला
मारते हैं पत्थर
लूटते हैं
दोनो हाथों से
दोनो हाथों से
फेंकते हैं
चखकर
चखकर
कहते हो
तुम मुझे पुलिंग
किंतु नारी के समान हूँ
तुम मुझे पुलिंग
किंतु नारी के समान हूँ
मैं तो आम हूँ।
मेरा मालिक
जब नहीं संभाल पाता मुझे
सौंप देता हैं
दूसरे को
पूरे का पूरा
एक मुश्त
दूसरा
भोगता है मुझे
किश्त दर किश्त!
मैं हार नहीं मानती
मिट्टी मिलते ही
फिर से
अंकुरित होना चाहती हूँ।
मेरे लिए
चलती हैं लाठियाँ
बहते हैं खून
सुख की खान हूँ
सुख की खान हूँ
मैं तो आम हूँ।
जलती हूँ
जलायी जाती हूँ
काटकर
जलायी जाती हूँ
काटकर
फूँक सकते हो तुम मुझे
हवन कुण्ड में
पूर्ण पवित्रता के साथ
पूर्ण पवित्रता के साथ
नहीं....
श्राप नहीं दुँगी
तुम्हारा घर
पवित्र कर जाऊँगी
नफरत नहीं
प्रेम करती हूँ सबसे
जन जन की शान हूँ
प्रेम करती हूँ सबसे
जन जन की शान हूँ
मैं तो आम हूँ।
एक टीस
उठती है उर में
पीपल, नीम के पास
जाते हैं ज्ञानी
मेरे पास
आते हैं
कभी लोभी
कभी कामी
आपके शौक की पहचान हूँ !
मैं तो आम हूँ।
एक टीस
उठती है उर में
पीपल, नीम के पास
जाते हैं ज्ञानी
मेरे पास
आते हैं
कभी लोभी
कभी कामी
आपके शौक की पहचान हूँ !
मैं तो आम हूँ।
.......................................
नोटः ( चित्र गूगल से साभार)
नोटः ( चित्र गूगल से साभार)
सच ! कड़वा सच !
ReplyDeleteआभार।
Deleteआम को प्रतीक बनाकर आपने वह कह दिया जो बड़े बड़े खंड काव्य में नहीं कहा जा सकता। इस आम की मिठास में कड़वी सच्चाई छिपी है।
ReplyDeleteआभार सर जी।
Deleteआपसे इतनी तारीफ जिसे मिल जाय वह तो घमंडी हो जायेगा ! संभालता हूँ अपने आपको।
ये भी सही कहा ! हम लोग बहुत दूर हैं ! अभी तो आपको ही अपने आपको संभालना होगा :)
Deleteआम तो आम है ...
ReplyDelete!
Deleteबिम्ब अच्छे हैं ! चित्रण भी ! कई नाथ और छिछोरे कविता की मंशा को पूरा कर पा रहे हैं !
Deleteअद्भुत साम्य |
ReplyDeleteबधाई भाई जी ||
धन्यवाद, कविराज।
Deleteगहन ...अद्भुत भाव ...!!
ReplyDeleteसंवेदनशील ...बहुत सुंदर कृति ...!!
शुभकामनायें ...!
मेरे पास आते है,
ReplyDeleteस्वाद लोभी और कामी!!
कठोर सच्चाई!!
बाप रे कवि क्या क्या लिख जाता है किस किस के बहाने ...
ReplyDeleteआपकी आम के बहाने ख़ास को आम banne की traasadee dekhee :(
अरविन्द जी के कमेन्ट की दूसरी पंक्ति दमदार है !
Deleteआम के बहाने खास की खबर ली है...!
ReplyDeleteकिसी के बहाने किसी की खबर नहीं ली है। 'आम' के सत्य को बताने का प्रयास मात्र है।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आम के बहाने कटु सत्य लिख दिया है...इतना कटु (पर सत्य) कि कहीं कही पढना ,मुश्किल पड़ रहा है..
ReplyDeleteइस कटु सत्य को पढ़ना भी पड़ेगा, समझना भी पड़ेगा और बदलना भी पड़ेगा।
Deleteसुन्दर रचना! वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखै .. की याद आ गयी.
ReplyDeleteसभी माताओं को मातृदिवस की बधाई!
महतारी दिवस की बधाई
ReplyDeleteलू चलती मैं मीठा होता..
ReplyDeleteहे आम महोदय! यदि आप पुलिंग हैं तो फिर इसे सहिये....
Deleteशीतल पवन धूप में तपकर सदियों से लू बनती जा रही है और आप मीठे होते जा रहे हैं! :)
आम कविता तो आपने कभी लिखी ही नहीं.. भावों की गहराई आपकी किसी भी रचना को आम नहीं रहने देती.. इस खास रचना में आम का बिम्ब और जगत की चर्चा.. सत्यजित राय की आम की आँठी का संगीत याद आ गया!! पाण्डेय जी, बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसत्यजीत राय की आम की आँठी का संगीत गूगल में सर्च करता रहा मिला नहीं। सुना हुआ दिमाग में चढ़ नहीं रहा है।...तारीफ के लिए शुक्रिया।
Deletewikipedia से साभार:
DeleteHe worked on a children's version of Pather Panchali, a classic Bengali novel by Bibhutibhushan Bandopadhyay, renamed as Aam Antir Bhepu (The mango-seed whistle). Designing the cover and illustrating the book, Ray was deeply influenced by the work. He used it as the subject of his first film, and featured his illustrations as shots in his groundbreaking film.
सचमुच ये आम नहीं खास है, आपकी कविता की तरह ... Happy Mother's Day ...
ReplyDeleteआम की ब्याख्या सचमुच पसंद आया | धन्यवाद |
ReplyDeleteपढना शुरू करते ही दिमाग में जो बात कौंधी थी वो जेंडर सबंधित थी, आगे बढे तो पाया कि कवि की फैलाई बिसात है| अंत तक आते आते कलम चूमने का मन हो आया|
ReplyDeleteगज्ज़ब, देवेन्द्र भाई|
जरा संभल कर ! कहीं लोग बाग चूमने में भी नग्नता / अश्लीलता ना खोजने लग जायें :)
Deleteप्रोफेसर इतने आतंकित हो जायेंगे तो कैसे काम चलेगा! अभी तो आपसे इस विषय में और पोस्ट की मांग है।
Deleteसंजय जी..तारीफ के लिए धन्यवाद। वैसे कलम ने जब से लेखकों का साथ छोड़ा है तब से यह शेर उनकी नज़र लिखने का मन हो रहा है....
Deleteचूम ना लें उंगलियाँ ही वे तारीफ में मेरी
रखता हूँ अपनी जेब में अब छुपा के हाथ।:)
तुम आम नहीं खास हो
ReplyDeleteखास आम मतबल है मेरा !!
फलों के राजा आम को जिस रूप में आपने रूपायित किया है वह समाज की मानसिकता को उजागर करता है।
ReplyDeleteकुछ भी हो आम फिर भी आम है, इसको उल्टा कर दीजिए .. देखिस इसकी मिठास AAM -> MAA!!
तारीफ के लिए धन्यवाद। अंग्रेजी में AAM को उल्टा किये, हिंदी वाली 'माँ' मिलीं! :)
Deleteआम के बिम्ब को आधार बना कर बहुत संवेदन शील भावों को दर्शाती कविता बहुत सुन्दर तारीफ के काबिल
ReplyDeleteतारीफ के लिए धन्यवाद।
Deleteआम के मौसम में भी
ReplyDeleteजो आम नहीं खा पाते है
न जाने वही क्यूं
'आम' आदमी कहलाते हैं
आपका वाला 'आम' तो अच्छा है, लेकिन यह तो मेरी कविता वाला 'आम' नहीं था ! :(
Deleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से मातृदिवस की शुभकामनाएँ।
तारीफ के लिए धन्यवाद।
Deleteआम को प्रतीक बनाकर बहुत गभीर बातें कह डाली.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
धन्यवाद रचना जी।
Deleteआम एकदम जीवंत हो उठा है और आम न हो कर ख़ास बन गया है ........
ReplyDeleteआम की जीवंतता महसूस करने के लिए धन्यवाद।
Deleteस्त्री को आम के रूप में स्त्री के रूप में अच्छे से अभिव्यक्त किया !
ReplyDeleteकोशिश यही की जाये कि वह आम ना रहे !
कोशिश यही की जाय की वह आम ना रहे...जी, यही कोशिश की जानी जानी चाहिए कि खास खास ही रहे।
Deleteखास से अलग आम जन का दर्द “मैं तो आम हूं” के ज़रिए बहुत समर्थ भाषा में संप्रेषित हुआ है।
ReplyDeleteधन्यवाद, मनोज कुमार जी।
Deleteएक आम बदनाम है .
ReplyDeleteएक आम के अनेक नाम हैं !
बहुत पसंद आई .
आम की आम से सगाई !
कविराज की जय हो !
आम की आम से सगाई! वाह!! आपने भी क्या खूब दृष्टि पाई।...शुक्रिया।
Deleteभावनाओं से ओतप्रोत अभिब्यक्ति.
ReplyDeleteलिल्लाह!!!
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, आम और नारी का साम्य,
ज़बरदस्त है जनाब!!!!!
अल्लाह आपकी कलम को चलता हुआ रक्खे.
...आमीन। जब तक जिस्म में जान हो, लिखने-पढ़ने का शौक बना रहे। ...दिलकश दुआ के लिए आभार।
Deleteआजकल आम के मौसम मे आम की गाथा न गायी जाये तो शायद खाने का स्वाद भी कम रहता है. आम की आम से सगायी अच्छी लगी.
ReplyDeletejabardast prastuti......kitni mithas ke sath, panne ki thandak ke sath dhero guno k gaan ke sath aapne samaj ko uski mansikta ko kendr bindu bana dala aur aam aam karte karte sara ka sara mamla sareaam kar dala.
ReplyDeletebahut khoob.
शानदार कमेंट के लिए आभार।
Deleteबहुत सुंदर । Welcome to my new post.
ReplyDeletebahut alag-si kavita
ReplyDeleteवाह!!शानदार कविता है देवेन्द्र जी!! :)
ReplyDeleteवाह देव बाबू .....आम आम में आप बड़ी खास बातें कह गए.....शानदार।
ReplyDeleteसचमुच में! गज़ब्बे है ये! वाह देवेन्द्र जी वाह! सोचा था इस हफ्ते आऊँगा घर तो लू फाकूँगा, पर खैर...
ReplyDeleteआम के बहाने ही सही लेकिन गहरा कटाक्ष है .बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteकविता के बहाने खूब तलवार भांजी है पाण्डॆय जी!
ReplyDeleteबडी लम्बी-चौडी प्रशन्सा होरही है.... एक सामान्य कविता है... भावों की विश्रन्खलता भी ..असम्प्रक्तता भी... न पूरी तरह नारी पर उतरती न आम पर....
ReplyDeleteआम पर एक ख़ास रचना सामाजिक राजनीतिक आर्थिक पहलुओं को रूपायित करती ...मैं कांग्रेस का हाथ हूँ आम के साथ हूँ, भाषण में ,व्यवहार में उसकी जेब में ,इसीलिए ख़ास हूँ ,मैं आम हूँ ... .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteशगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
वाह!
ReplyDelete