28.12.12

चाहत



हम चाहते हैं
तू
जाड़े में
चाय के गर्म कुल्हड़ की तरह मिले
होठों को छुए
पीते रहें तुझे
चुस्कियों में,

गर्मी में
बर्फ के गोले की तरह
नाचती रहे
हमारी लपलपाती जीभ के चारों ओर
लट्टू की तरह,

सावन में  
बारिश के बूदों की तरह
झमाझम बरसे
भीगते रहें
देर तक
और तू चाहती है...

हम उस मिट्टी की चिंता करें
जो हमारे होठों से लगने के बाद
टूटकर बिखर जाती है,
उस बर्फ की चिंता करें
जो पिघलती चली जाती है,
बारिश के उन बूंदों की चिंता करें
जो धरती में गिरकर
सूख जाती है।

ऐ ज़िदंगी!
हम तुझसे क्या चाहते हैं
और तू हमसे
क्या चाहती है!
.....................................

14 comments:

  1. ...यह आपसी व्यापार है !

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  2. हम चाहते है
    तू जाड़े में
    चाय के ................... हाये(हाथ छाती पर है) :)

    तेरी दो टकीये की नौकरी में...................!

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  3. ye vidambana hai .......
    saar jindagee ka samjh kar bhee nahee samjhana chahte ....
    hamaree matee matee me milne tak ye hee krum chalta rahega.......

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  4. माटी माटी माटी
    तू ही जीवन-साथी
    सबको एक दिन
    तुझमे मिलना
    हो कोई भी जाती...
    बहुत सुन्दर भाव... आभार

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  5. ज़िन्दगी बड़ी डिमांडिंग है......और हमारी आशाएं बहुत सारी...क्या करें...
    जिए जाएँ बस...

    अनु

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  6. सुन्दर प्रस्तुति,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

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  7. बहुत सही कहा आपने, जिंदगी का व्यापार समझ ही नही आता.

    रामराम.

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  8. बहुत खूब, कुल्हड़ के चाय सी, वह भी जाड़े में।

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  9. सर्दी गर्मी का अहसास -- एक साथ। साथ में बारिस--आह ! वाह !

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  10. बहुत खूब देवेन्द्र भाई!! कमाल का दर्शन प्रस्तुत किया है.. गुलज़ार साहब ने कहा है
    ऐ ज़िंदगी गले लगा ले,
    मैंने भी
    तेरे हर इक पल को
    गले से लगाया है
    है ना??
    /
    लेकिन आज टंकण की त्रुटियाँ दिख रही हैं.. सुधार लें..
    हमारे लपलपाते जीभ की जगह हमारी लपलपाती जीभ
    बारिष के बूंदों की जगह बारिश की बूँदें..

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    1. टंकण त्रुटियाँ नहीं मेरी बेवकूफियाँ हैं..बार-बार स,श और ष में गलती करता रहता हूँ। अब लगता है बिटिया से बोलवाकर इमला लिखना पड़ेगा।..आभार।

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  11. जिंदगी हमें कहीं और लेकर जाना चाहती थी , हम जिंदगी को कहीं और | इसी उधेड़बुन में जिंदगी कटती रही |
    बखूबी लिखा है आपने |

    सादर

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  12. ज़िंदगी का एक खूबसूरत फलसफा

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