ए.सी. में बैठकर
इस्की-व्हिस्की चढ़ाकर
किसी को हलाल कर
ओटी-बोटी चाभ कर
नाचते-झूमते
संपन्नता की नुमाइश करने के लिए आता है
अंग्रेजी नववर्ष।
बर्गर, पिज़्जा या फिर
टमाटर की चटनी के साथ
आलू या छिम्मी का परोंठा खा कर
मोबाइल में मैसेज भेज कर
देर रात तक जाग-जाग कर
टी.वी. में
सपने देखता
बजट बिगाड़ता
आज की नींद
कल की सुबह खराब करता
मध्यमवर्ग
तब चौंकता है
जब ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहकर
मुँह चिढ़ाते हुए
भाग जाता है
अंग्रेजी नववर्ष।
अथक परिश्रम के बाद
जब गहरी नींद में
सो रहा होता है
मजदूर, किसान
मध्य रात्रि में
चोरों की तरह आता है
अंग्रेजी नववर्ष।
सूर्योदय की स्वर्णिम आभा बिखेरता
पंछियों के कलरव से चहचहाता
गेहूँ की लहलहाती बालियों में
सोना उगलते
बौराये आमों, गदराये फलों, खिलते फूलों
झर झर झरते पुराने,
फर फर हिलते नये कोमल पत्तों के बीच
वसंत के गीत गाता
नई उर्जा का संचार करता
जन-जन को
गहरी नींद से जगाता
हँसते हुए आता है
भारतीय नववर्ष।
सृष्टि का प्रथमदिवस
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
नवसंवत्सर!
इसके आते ही
सुनाई देती है
उजाले की हुँकार
होने लगता है
अंधेरे का पलायन
दिन बड़े,
छोटी होने लगती हैं रातें
भरने लगते हैं
अन्न के भंड़ार
गरीब क्या,
मिलने लगते हैं दाने
पंछियों को भी!
नवदुर्गा का आह्वाहन
व्रत, तप, संकल्प और जयघोष के साथ
शुरू होता है
भारतीय नववर्ष।
…………………………………..
उत्सव में दोष नहीं होता, मानसिकताएं दूषित होती है, दूषित मानसकिता का यह दृष्टांत रंग-उत्सव पर भी लागू होता है.....
ReplyDeleteबात सोलह आने सही है..उत्सव में दोष नहीं होता। मगर भारतीय परिवेश में नववर्ष मनाने के लिए कौन सा समय आपको ज्यादा अनुकूल लगता है?
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteअंदर की और बाहर की बात का अंतर है भाई :)
नवसम्वतसर शुभ हो सभी के लिये ।
प्रत्येक कलेण्डर का अलग नववर्ष होता है उसके उत्सव के भी अलग तरीके । अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नववर्ष उनकी परम्परा के अनुसार मनाया जाता है । हमारी गलती है कि हम दूसरों की परम्परा निभाकर गर्वित होते हैं ।
ReplyDeleteजी, यही कहना था।
Deleteआपके स्नेह का आभारी हूँ।
ReplyDeleteनव संवत्सर आप सब के लिए मंगलमय हो !
ReplyDeleteवाह आप तो शब्दों से भी उतने ही अच्छे दृश्य उकेरते हैं. अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. अब हम पर यह निर्भर है कि अपने नव वर्ष कैसे मनाएं..
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर रचना देवेंद्र भाई , धन्यवाद !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
भरतीय नव वर्ष का बहुत सुन्दर चित्रण किया है कविता मे !
ReplyDeleteहमारा ही दोष है.. हम न ख़ुद सीख पाए - न वह सीख आगे बढा पाए!! मैं तो कई बार यह कह चुका हूँ कि अंगरेज़ी को गाली देकर हम अपनी हिंदी का सम्मान नहीं कर सकते! ज़रूरत है कि उनकी सराहो, मगर अपनी पर गर्व करना सीखो, जो हम भूल गये हैं!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा कॉनट्रास्ट प्रस्तुत किया है आपने!!
समाज के तीनों वर्गों के सटीक किन्तु रोचक चित्रण। अगली पंक्तियों में अँग्रेजी नव वर्ष को भारतीय नव वर्ष की जोरदार पटखनी। सब कुछ बेहद काव्यात्मक ढंग से..।
ReplyDeleteस्वागत हे नववर्ष।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteदेरी की माफ़ी | बहुत ही सशक्त और सुन्दर रचना है ये |
ReplyDeleteलिखना जारी रखिये देवेन्द्र भाई , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteक्या बात है ? काफी दिनों से गायब है आप.....उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ,बहुत अछ्छा लगा.पश्चिमी सभ्यतावाले रात के १२ बजे नए दिन की शुरुवात मानते हैं ,जो वैज्ञानिक रूप से तो ठीक लगता है,मगर हकीकत में तो सुर्योदय के बाद ही नया दिन शुरू होता है.सांस्कृतिक रूप से भी वो काफी पीछे हैं .
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