पिता स्वर्ग में रहते
घर में
बच्चों के संग
मां रहती थीं।
बच्चों के सुख की खातिर
जाने क्या-क्या
दुःख सहती थीं।
क्या बतलाएं
साथी तुमको
मेरी अम्मा
क्या-क्या थीं?
देहरी, खिड़की,
छत-आंगन
घर का कोना-कोना थीं।
चोट लगे तो
मरहम मां थीं
भूख लगे तो
रोटी मां थीं
मेरे मन की सारी बातें
सुनने वाली
केवल मां थीं।
स्कूल नहीं गईं कभी पर
कथा कहानी सब सुनती थीं
क्या गलत है, क्या सही है
मां झट से
बतला देती थीं।
बच्चे आपस में लड़ते तो
तुम्हें पता है क्या करती थीं?
जंजीर थी, आँसुओं की,
बांध-बांध पीटा करती थीं।
पिता स्वर्ग में रहते
घर में
बच्चों के संग
मां रहती थीं।
बच्चों के सुख की खातिर
जाने क्या क्या
दुःख सहती थीं।
....................
घर में
बच्चों के संग
मां रहती थीं।
बच्चों के सुख की खातिर
जाने क्या-क्या
दुःख सहती थीं।
क्या बतलाएं
साथी तुमको
मेरी अम्मा
क्या-क्या थीं?
देहरी, खिड़की,
छत-आंगन
घर का कोना-कोना थीं।
चोट लगे तो
मरहम मां थीं
भूख लगे तो
रोटी मां थीं
मेरे मन की सारी बातें
सुनने वाली
केवल मां थीं।
स्कूल नहीं गईं कभी पर
कथा कहानी सब सुनती थीं
क्या गलत है, क्या सही है
मां झट से
बतला देती थीं।
बच्चे आपस में लड़ते तो
तुम्हें पता है क्या करती थीं?
जंजीर थी, आँसुओं की,
बांध-बांध पीटा करती थीं।
पिता स्वर्ग में रहते
घर में
बच्चों के संग
मां रहती थीं।
बच्चों के सुख की खातिर
जाने क्या क्या
दुःख सहती थीं।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती जी की 101वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमाँ तो बस माँ है
ReplyDeleteबेहतरीन
अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदय स्पर्शी!
ReplyDeleteआभार आप सभी का।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना
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