आज दिल्ल्ली के प्रगति मैदान में लगे पुस्तक मेले में घूम रहा हूँ। यहाँ कोई साथी हों तो मुझसे हिंद-युग्म के बुक स्टाल नंबर -२८५ में संपर्क कर सकते हैं। प्रस्तुत है आज की कविता 'वेलेंटाइन' जो हिंद-युग्म में प्रकाशित है और जिसे मैंने कल संपन्न हुए 'संभावना डाट काम' पुस्तक के लोकार्पण समारोह में सुनाया था। प्रस्तुत कविता काशिका बोली में हास्य-व्यंग शैली में लिखी गयी है। काशी क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली 'काशिका बोली' के नाम से जानी जाती है। काशिका बोली 'भोजपुरी' का ही एक रूप है।
वेलेन टाइन
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन ।
राह चलत के हाथ पकड़ के
बोला यू आर माइन ।
फागुन कs का बात करी
झटके में चल जाला
ई त राजा प्रेम क बूटी
चौचक में हरियाला
आन क लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
पूछा त सिर झटक के बोली
आयम वेरी फाइन।
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
बाप मतारी मम्मी-डैडी
पा लागी अब टा टा
पलट के तोहें गारी दी हैं
जिन लइकन के डांटा
भांग-धतूरा छोड़ के पंडित
पीये लगलन वाइन।
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन ।
दिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वेलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह
निन्हकू का इनके पार्टी मा
बड़कू कइलन ज्वाइन।
बिसरल बसंत अब त राजा
आयल वेलेन टाइन।
काहे लइका गयल हाथ से
ReplyDeleteबापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
अब बापू को कौन समझाई ई दिलन का मामला हाई....... बहुत अच्छा लिखें हैं देवेन्द्र बाबू आज तो .... का खिचाई करे हैं ......
wah.
ReplyDeleteअभी पढ़ कर मजा नहीं आ रहा जी...
ReplyDeleteजो कल सुन कर आया था...
फिलहाल आपसे इर्ष्या हो रही है...आप आज दुसरे दिन भी मेले में मौज ले रहे हैं..और हम दिल्ली वाले..
:(
अभी ही काम से लौटे हैं जी...और सबसे पहले आपका ब्लॉग देखा है...
bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteअंगरेजी का इतना सहज प्रयोग !
ReplyDeleteठेठिया दिए न !
मजा आ गया !
आभार ,,,
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteआपने सुनाई यह रचना वहाँ, हम तो थे नहीं वहाँ, सो नहीं सुन सके इसे आपकी आवाज में ।
ReplyDeleteकितना अच्छा होता यहाँ आपकी प्रस्तुति का पॉडकास्ट होता ।
सुन्दर रचना । आभार ।
अरे भाई , दिल्ली में थे तो ब्लोगर मिलन में भी आ जाते।
ReplyDeleteखैर आपने पहले ही वलेंटाइन डे मना लिया ।
ये काशिका बोली तो बहुत मन भाई , भाई।
नीमन लागल हमरा. अइसन प्रस्तुति.
ReplyDeletebahut achha laga
ReplyDeleteआपकी काशिका की प्रस्तुति बहुत पसंद आई ।
ReplyDeleteआन क लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
बहुत जोर मजा आई गवा देवेंदर बाबू...बहुत जोर...
ReplyDeleteनीरज
bahut acchhi abhivyakti..
ReplyDeleteओजी कमाल कर दिया आपजी ने तो वेलेंटाइन को टेल से ले लिया|आइसा घुमा कर धोबी पाटदिया की ससुरा मज़ा आ गया|
ReplyDeleteवाह!!!......बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeletesastang dandavat devedaar ji ,
ReplyDeletetohare kavita ke ekek ashkar ekdam sachch baate.padh ke bahut majaa aaeel.
khaskar i wala laeen,
baap mahatari se leke aayal velentin tak.
poonam
aadarniya devendaar ji ,
ReplyDeletechar baar tohare i cavita par teeppaadi daal chukani .kouno karan se ya netava ke gadbadi se tohareteeppaadi ke sandukachi me avat naekhe dikhat yhe se ab thak gainee. bhagavan bharose baate.abjada ka likhen .kavitava t padh ke bahut maja aail ekdam sachchi baat haouye.
poonam
bahut sunder
ReplyDeletewah janab wah: kya khoob kaha hai.
ReplyDeleteNeeraj Goswami kah delan hamar batiya.....
ReplyDeleteBahut jor maja ....
शानदार रचना
ReplyDeleteकाहे लइका गयल हाथ से
ReplyDeleteबापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
wah....
bahut khoob...
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! उम्दा रचना!
आन क लागे सोन चिरैया
ReplyDeleteआपन लागे डाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
क्या बात है देवेन्द्र जी. बहुत खूब.
कुछ दिन हो गये थे आपके ब्लॉग पर आए आज आया और बेहतरीन खजाना पाया!!
ReplyDeleteये वैलेंटाइन का बढ़िया नमूना पेश किया आपने खास कर अपने भाषा में जिसमें हम लोगो का दिल बसता है बहुत बढ़िया लगा उस टोन में ज़ोर ज़ोर से आपकी कविता का पाठ और मुस्कुराना...मजेदार कविता...बढ़िया लगी..
काहे लइका गयल हाथ से
ReplyDeleteबापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
हा हा हा हा हा हा वाह बहुत खूब । शुभकामनायें
काशिका बोली मे प्रस्तुत वेलेंटाईन की यह कविता बहुत पसन्द आई. :)
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
महाशिवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, क्षेत्रीय भाषा का अपना स्वाद ही अलग है... जो अपनापण इसमें दीखता है वो खड़ी बोली में नहीं..
ReplyDeleteजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
जिया रजा बनारस !
ReplyDeleteहम त छानिल मिलले पर तेल लगावई वाईन .
सबई मनावई बैठल बानी वसंत भ या वेलान्तैन
Achhi prastuti. क्षेत्रीय भाषा ka sundar prayog laga....
ReplyDeleteShubhkamnayne.
देवेंदर जी, बस मज़ा आ गया
ReplyDeleteदिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वेलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह
मजा तो आपको साक्षात सुन के ही आया था, पढ़ने से आनंद द्विगुणित हो गया।
ReplyDeleteफिर मुलाकात होगी।
मुकेश कुमार तिवारी