धँसी आँखें
पिचके गाल
पेट-पीठ एकाकार
सीने पर
हड़्डियों का जाल
हैंगरनुमा कंधे
पर झूलता
फटेला कंबल
दूर से दिखता
हिलता-डुलता
कंकाल
एक हाथ में
अलमुनियम का कटोरा
दूसरे में लाठी
बिखरे बाल
चंगेजी दाढ़ी
सड़क की पटरी पर
खड़ा था
एक टांग वाला
भिखारी।
मुसलमान को देखता
फड़फड़ाते
होंठ...
अल्लाह आपकी मदद
करे !
हिंदू को देखता
फड़फड़ाते
होंठ...
भगवान आपकी मदद
करे !
प्रतीक्षा..प्रतीक्षा...लम्बी
प्रतीक्षा
एक सिक्का
खन्न....
कटोरा ऊपर
सर शुक्रिया में
झुका हुआ
प्रतीक्षा..प्रतीक्षा...लम्बी
प्रतीक्षा
एक सिक्का
खन्न.....
नमस्कार की
मुद्रा
देखते-देखते रहा
न गया
एक सिक्के के
साथ
उछाल दिया कई
प्रश्न...!
कभी राम राम, कभी
सलाम
क्यों करता है
इतना स्वांग ?
कौन है तू
हिंदू या
मुसलमान ?
एक पल
हिकारत भरी
नज़रों से घूरता
अगले ही पल
बला की फुर्ती
से
लाठी के बल
झूलता
संयत हो
अलग ही अलख
जगाने लगा
भिखारी
अंधे को आईना
दिखाने लगा....
जहां इंसान नहीं
हिंदू और
मुसलमान रहते हों
भीख भी
धर्म देख कर दी
जाती हो
नाटक करना
पापी पेट की लाचारी
है
क्योंकि आपकी
तरह
बहुत से पढ़े
लिखे नहीं जान पाते
कि मांगने वाला
सिर्फ एक भिखारी
है।
.....................................
जहां इंसान नहीं
ReplyDeleteहिंदू और मुसलमान रहते हों
भीख भी धर्म देख कर दी जाती हो
नाटक करना पापी पेट की लाचारी है
क्योंकि आपकी
तरह बहुत से पढ़े
लिखे नहीं जान पाते कि मांगने वाला सिर्फ एक भिखारी है।
बहुत मर्मस्पशी और सार्थक पंक्तियाँ हैं इस रचना की .....आपका आभार !
आह !
ReplyDeleteमार्मिक चित्रण!
ReplyDeletewah re bhikhari........pet hindu muslim thori pahchan pata!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteपेट की भूख मजहब को नहीं जानता.... पर क्या करें ये स्वांग करना जरूरी हो जाता है....
समझदारी आ ही जाती है .... :-)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
धर्म से परे है उनकी पीड़ा।
ReplyDeletebhikhari ne katu satya suna diya ...
ReplyDeleteसार्थक व सटीक लेखन ...।
ReplyDelete"जहा इन्सान नहीं,हिन्दु या मुसलमान रहते हों" ....बहुत सुन्दर ,यहाँ इन्सान नहीं रहते,इंसान की जगह ये समाज कोई न कोई लेबल लगे हुए आदमी की सख्या बढाता जा रहा है.
ReplyDeleteहिन्दू,मुस्लिम,सिख्ख,इशाई आदि लेबल लगे हुए लोगों की भीड मे इन्सान दूज के चाँद जैसी घटना हो गई है.
भैया , बात तो बहुत सुन्दर कही है । लेकिन कम से कम दिल्ली में तो ऐसे पाक साफ भिखारी नहीं मिलते ।
ReplyDeleteगठीला बदन , फुर्तीली चाल
रेशमी कुर्ता , घुंघराले बाल ।
अक्सर ऐसे एक भिखारी को हर शनिवार को देखता हूँ --जय शनिदेव कहते हुए ।
विज्ञापन का दौर है, बेंचे बात बनाय |
ReplyDeleteमरती जब इंसानियत, राम-रहीम सहाय ||
कृपया इस तुरंती को तुषारापात से बचाएं |
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||
पेट का सिर्फ़ और सिर्फ एक ही धर्म है 'रोटी'
ReplyDeleteबहुत सारे सवाल खड़े करती सुन्दर रचना ...
यह तो तगड़ी चोट कर दी आपने ..गिरेबान में देखने के लिए कवि ने विवश कर दिया है
ReplyDeleteinsaan se bada koi dharam nahi..
ReplyDeletemarmsparshi rachna..
jai hind jai bharat
पूरी मानवता के लिए कलंक... .और हम देखते रह जाते हैं...
ReplyDeleteआज के समाज का सच्चा प्रतिबिम्ब!
ReplyDeleteगहन मार्मिक भावों की सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteह्रदय को स्पर्श कर गयी पाण्डेय जी !
भिखारी के लिए कौन सा धर्म उसका है , उसका धर्म तो पेट भरना है , कही से भी कैसे भी !
ReplyDeleteएक भिखारी की पीड़ा को शब्दों ने अभिव्यक्त किया !
बहुत मर्मस्पशी और सार्थक रचना. आपका आभार.
ReplyDeleteएक मर्मस्पर्शी/सार्थक रचना...
ReplyDeleteसादर....
bhikhari par pahli baar sahityik rachna padhi....aap kavita par dhyan do ,achchha scope hai !
ReplyDeletelaajawaab rachna.....
ReplyDeleteantim para behad khubsoorat....
एक नया सम्प्रदाय दिखा दिया आपने... हमारे रहनुमाओं की दृष्टि में यह फार्मूला अभी तक नहीं आया है... दुनिया के भिखारियों एक हो का नारा किसी ने नहीं दिया है.. इस बैंक पर किसी पार्टी की निगाह कब पड़ेगी!!
ReplyDeleteपांडे जी एक ज़माने में यह डायलोग प्रेम चोपरा बोला करते थे.. मगर आज आपने इसे नई व्याख्या दे दी है!!
बहुत प्रभावशाली रचना ..
ReplyDeleteये काम भी आसान तो नहीं।
ReplyDeleteचोट सीधी है।
ReplyDeleteज़बरदस्त चोट करती ये मार्मिक पोस्ट लाजवाब है पर ज़रा संभल के देव बाबू यहाँ भिखारियों के भेष में चरसिये और स्मैकियों की कमी नहीं है ..........हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए |
ReplyDeleteहा छोटा भिखारी क्योकि बड़े तो यो है जिनसे वो मांगता है |
ReplyDeleteभूख और पेट के आगे क्या धर्म ... साक्षात नक्शा खींच दिया है देवेन्द्र जी ...
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