17.10.11

पापा



घर की खोल में चुपचाप पड़ा रहने वाला
दुर्लभ थर्मामीटर
जिसे नाना जी ने
दादा जी से
पूरी कीमत चुका कर
खरीदा था
जो बाजार में दूसरा नहीं मिलता
जिसका इस्तेमाल
घर के सदस्यों का बुखार नापने के लिए किया जाता है
जिसका दिमाग
पारे की तरह
चढ़ता-उतरता रहता है
इसका इस्तेमाल
मम्मी
बहुत सावधानी से करती हैं
हाथ से छूट जाने पर
टूट कर
बिखर जाने की संभावना बनी रहती है।

.......................................................देवेन्द्र पाण्डेय।

30 comments:

  1. थर्मामीटर की नई परिभाषा सचमुच मजेदार है।

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  2. Waise to pata nahee ham apne haathon se kya kya bikher dete hain!

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  3. नई परिभाषा ..

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  4. खुदा खैर करे, खैरियत तो है ?

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  5. पापा की परिभाषा ऐसी भी !
    दुर्लभ ! !

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  6. Bukhar ka mosam aane wala hai kaam aayega... Ha ha ha..
    Jai hind jai bharat

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  7. बहुत खूब।
    क्‍या परिभाषा दी है.....

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  8. मेरी ओर से खड़े होकर तालियाँ, पांडे जी!

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  9. पापा को थर्मामीटर कि उपमा ... नानाजी ने दादाजी से खरीदा था ... बहुत कुछ कह गयी यह रचना ..

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  10. क्या बात है देव बाबू ...........आपने तो परिभाषा ही बदल दी है पापा की.......कुछ अलग सोचने के लिए शुभकामनाये|

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  11. कल 19/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. बहुत बढ़िया ||

    बधाई स्वीकारें ||

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  13. नाना जी ने दिया था, बाबा को इक तंत्र |
    जो मूलधन का असली, सूद दिलाये मन्त्र |

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  14. पापा को खरीदा या नहीं ये तो पता नहीं पर ... वो थर्मामीटर जरूर होते हैं ... गहरी अभिव्यक्ति ...

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  15. गहरी मगर बढ़िया अभिव्यक्ति जो बहुत कुछ कहती है।
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  16. वाह ..बहुत खूब ।

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  17. वाह ..बहुत खूब ।

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  18. आप तो मंजते जा रहे हो, पाण्डेय जी... हर कविता, पहली वाली से बढ़िया!

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  19. बहुत बढ़िया परिभाषा दी है 'पापा'की .....पाण्डेय जी !
    शिष्ट हास्य-व्यंग सराहनीय .....

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  20. बाप होकर भी बच्चों की मनोभावना की आपको बहुत अछ्छी जानकारी है,बधाई.

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  21. .


    क्या बात है !
    पिताश्री के लिए अलौकिक नायाब कविता लिखी आपने...

    बधाई और साधुवाद !

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