घर की खोल में
चुपचाप पड़ा रहने वाला
दुर्लभ
थर्मामीटर
जिसे नाना जी ने
दादा जी से
पूरी कीमत चुका
कर
खरीदा था
जो बाजार में
दूसरा नहीं मिलता
जिसका इस्तेमाल
घर के सदस्यों
का बुखार नापने के लिए किया जाता है
जिसका दिमाग
पारे की तरह
चढ़ता-उतरता
रहता है
इसका इस्तेमाल
मम्मी
बहुत सावधानी से
करती हैं
हाथ से छूट जाने
पर
टूट कर
बिखर जाने की
संभावना बनी रहती है।
.......................................................देवेन्द्र पाण्डेय।
थर्मामीटर की नई परिभाषा सचमुच मजेदार है।
ReplyDeleteWaise to pata nahee ham apne haathon se kya kya bikher dete hain!
ReplyDeleteएक बच्चे के अनुभव...!
ReplyDeleteनई परिभाषा ..
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteखुदा खैर करे, खैरियत तो है ?
ReplyDeleteपापा की परिभाषा ऐसी भी !
ReplyDeleteदुर्लभ ! !
Bukhar ka mosam aane wala hai kaam aayega... Ha ha ha..
ReplyDeleteJai hind jai bharat
:) :) मज़ेदार रचना
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteक्या परिभाषा दी है.....
क्या थर्मामीटर है!!!
ReplyDeleteमेरी ओर से खड़े होकर तालियाँ, पांडे जी!
ReplyDeleteपापा को थर्मामीटर कि उपमा ... नानाजी ने दादाजी से खरीदा था ... बहुत कुछ कह गयी यह रचना ..
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteक्या बात है देव बाबू ...........आपने तो परिभाषा ही बदल दी है पापा की.......कुछ अलग सोचने के लिए शुभकामनाये|
ReplyDeleteकल 19/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बढ़िया ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
नाना जी ने दिया था, बाबा को इक तंत्र |
ReplyDeleteजो मूलधन का असली, सूद दिलाये मन्त्र |
पापा को खरीदा या नहीं ये तो पता नहीं पर ... वो थर्मामीटर जरूर होते हैं ... गहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteगहरी मगर बढ़िया अभिव्यक्ति जो बहुत कुछ कहती है।
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
वाह ..बहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह ..बहुत खूब ।
ReplyDeleteआप तो मंजते जा रहे हो, पाण्डेय जी... हर कविता, पहली वाली से बढ़िया!
ReplyDeleteखूब रही..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया परिभाषा दी है 'पापा'की .....पाण्डेय जी !
ReplyDeleteशिष्ट हास्य-व्यंग सराहनीय .....
Wah,kya rachana hai.
ReplyDeleteबाप होकर भी बच्चों की मनोभावना की आपको बहुत अछ्छी जानकारी है,बधाई.
ReplyDelete.
ReplyDeleteक्या बात है !
पिताश्री के लिए अलौकिक नायाब कविता लिखी आपने...
बधाई और साधुवाद !
वाह ,क्या कहने !
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