धरती में पात झरे
अम्बर में धूल उड़े
अमवां में झूले लगल बौर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.
कोयलिया 'कुहक' करे
मनवां का धीर धरे
चनवां के ताकेला चकोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.
कलियन में मधुप मगन
गलियन में पवन मदन
भोरिए में दुखे पोर-पोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.
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इसका पॉडकास्ट सुनने के लिए यहां क्लिक करें....अर्चना जी का ब्लॉग...मेरे मन की।
मन में भी बसंत है,तन में भी बसंत है,
ReplyDeleteऋतुराज दिग-दिगंत में छाय रहा हर ठौर !
मादक प्रस्तुति !
:) बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआयो रे बसंत घर आयो
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ...बसंत के आगमन का सटीक चित्रण
ReplyDeleteकोयलिया कुहक करे
ReplyDeleteमवना का धीर धरे
बसंत का मोहक चित्र मन को भा गया !
सुंदर कविता ...!
ReplyDeletewah, kya baat hai
ReplyDeleteSundar Vastan geet !
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteहमके तो लागल कि छंद बढ़िया मिलौले हौआ.नये पत्तों की बात नहीं,पोर-पोर मा दर्द की बात करले हौआ.जाडे-पाले के बाद तो दर्द कम होला.
ReplyDeleteमन हरषायो रे...
ReplyDeleteवाह भई देवेन्द्र जी बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बसंत पर बनारसी अंदाज में अति सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteअति उत्तम,सराहनीय मन को हर्षित करती प्रस्तुति,सुंदर रचना,....
ReplyDeleteNEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
पात झरे लागल धुरिया उडाय लागल ....त बुढौती मं हमहूँ बूझ गइलीं के बसंत आ गइल....और कइसे बूझीं हो ?
ReplyDeleteशब्द शब्द हर्ष लिए
ReplyDeleteनया सा उत्कर्ष लिए
पढ़ के मगन हुआ पोर पोर
वासंती फुहार की तरह भिगो गई यह रचना!!
ReplyDeleteभोरिये में दुःख पोर पोर -इस पर कवि प्रकाश डाले :)
ReplyDelete:)टार्च लेकर तो आप बैठे हैं, प्रकाश हम डालें!
Deleteभोर को तो होना ही नहीं चाहिए... वसंत में तो हरगिज नहीं!
ReplyDeleteत्यागी जी से सहमत, बिल्कुल नहीं होन चाहिये जैसे रेल में आखिरी डिब्बा नहीं होना चाहिये:)
Deleteबसंत का आगमन कोयलिया के साथ ... मन का धीर तो खोना ही है ऐसे में ...
ReplyDeleteसुन्दर गीत है ...
वसंत का असर इधर तो नहीं हो पा रहा पर आपकी ओर पूरा लग रहा है। अंतिम पंक्तियों में नहीं कह कर भी बहुत कुछ कह गए आप.:)
ReplyDeleteबहुत श्रेष्ठ और सटीक!
ReplyDeletewaah ...sundar varnan vasant ka.
ReplyDeletesabd sabd apne aap me paripurn
ReplyDeletebehtreen prastuti
मादक और बासंती रचना
ReplyDeleteबा्ह्य एवं अंतः प्रकृति में वासंती वातावरण का संश्लिश्ट चित्रण -सुन्दर!
ReplyDeleteसब मामला लेट-लतीफ़ है। गर्मी आने पर बसंत आने का किस्सा पढ़ पा रहे हैं। :)
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