बापू!
आप
सबसे
अच्छे लगते थे
वकील के
कोट में नहीं,
धोती-लंगोट
में भी नहीं,
जब आते
थे
सौ, पाँच
सौ या हजार के नोट में!
लेकिन
बापू
अब
सौ रूपये
में आते हो
तो लगता
है
सब्जी
वाला कहेगा
यह तो कम
है!
पाँच सौ
में आते हो
तो लगता
है
दूध वाला
कहेगा
यह तो बहुत
कम है!
बापू!
अब आपको
हजार
रूपये के नोट में भी देखकर
मन उतना
प्रफुल्लित नहीं होता
जितना
होता था
बीस साल
पहले
सौ रूपये
के नोट में ।
अब तो
हजार
रूपये के नोट को देखकर भी लगता है
सुबह
सिलेंडर वाला आयेगा
एक झटके
में उठाकर
पूरा का
पूरा
ले
जायेगा।
अब समझ
में आ रहा है बापू
आपके
कोट को
छोड़कर
धोती-लंगोट
में रहने का मतलब!
आप यह संदेश
देना चाहते थे कि
जो भी
आपकी तरह
नैतिकता,
सत्य-अहिंसा
और
ईमानदारी
की राह पर चलेगा
वह कोट
से
लंगोट
में आ जायेगा।
बापू!
अब आपके
सिद्धांत
समझ में
नहीं आते
लगता है
सब कहीं खो
चुका है
मुद्रा
की तरह
हमारा भी
बहुत अवमुल्यन
हो चुका है।
........................................
गाँधी को हमने मोहरा बना लिया है ।बस केवल उनका नाम याद रखा है ।
ReplyDeleteक्या बात है! :)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति........
ReplyDeleteबड़ा अवमूल्यन हो गया है, आप नोटों से हट जायें।
ReplyDeleteउनके द्वारा स्थापित नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन के साथ उनके फोटो वाली मुद्रा का भी अवमूल्यन.
ReplyDeleteकोट से लंगोट में आने की संभावनाएं तो पूरी है.
ReplyDeleteबापू ने देश का भविष्य बहुत पहले भांप लिया था,
ReplyDeleteइसलिए कोट की जगह लंगोट अपना लिया था.:)
बापू बहुत पहले ही महंगाई के तूफ़ान को झेलने के सूत्र थमा गये थे ...एक नवीन दृष्टिकोण से पढ़ा गांधीजी के अल्प वस्त्र के कारण को !
ReplyDeleteरोचक !
बे -चैन करने वाली अति उत्कृष्ट रचना -बापू कुछ साल पहले तक आप ......बधाई !देवेन्द्र भाई .आपकी रचना पढ़के कविवर हुक्का के उदगार याद आगये -ये रचना स्व .हुक्का साहब ने १९७१ में सुनाई थी नेहरु राजकीय महाविद्यालय झज्जर परिसर में आयोजित कवि सम्मलेन में .कुछ अंश अभी भी याद हैं -
ReplyDeleteबापू तुम्हारे डंडे की कसम ,
समाज वाद को घसीट घसीट के ला रहे हैं ,
और तुम्हारे लंगोट की कसम माल खुद खा रहे हैं .वैसे आज के सन्दर्भ में समाजवाद की जगह "वालमार्ट " आ सकता है .खुला बाज़ार आ सकता है .
अब समझ आ रहा है
आपके
कोट को छोड़कर
धोती लंगोट में आने का मतलब !
आप यह सन्देश देना चाहते थे कि जो भी आपकी तरह ,नैतिकता सत्य -अहिंसा और ईमानदारी की राह पे चलेगा
वह कोट से लंगोट में आजायेगा .
बहुत सशक्त रचना .बधाई .
गहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteअच्छी रचना ..
आज के हालात को व्यंगात्मक रूप में बहुत अच्छे से लिखा है
ReplyDeleteअच्छा तभी तभी
ReplyDeleteफोटो भी समझ में
आ गयी हमको
आपकी जो लगी
है ऊपर नयी !
हा.. हा.. हा.. लंगोट तक आने का कोई चांस नहीं है।:)
Deleteअवमूल्यन का प्रभाव ही है कि गाँधी सिर्फ रूपये में निर्धारित हो गए हैं ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना। आज के संदर्भ में आपने पूरी व्यवस्था की मजबूरी सामने रख दी है।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .
कितनी गिर गई है उनकी कीमत,
ReplyDeleteबापू को कैसे समझ में आये !
आपकी बात में दम है.
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