आज सोचा आप सबको गंगा मैया के दर्शन करा दूँ। बहुत दिन हुए खेतों की तस्वीरें देखते-देखते ऊब चुके होंगे। यह बनारस का अस्सी घाट है। चौकी पर कल शाम की गंगा आरती के समान रखे हैं। दिये की राख ठंडी पड़ चुकी है। लोग स्नान-ध्यान की तैयारी में जुट चुके हैं। सूर्योदय होने ही वाला है।
सूर्योदय हो रहा है। कुछ लोग नैया में घूमने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ गंगा में डुबकी मार रहे हैं। बजड़े को मोटे आसामी की तलाश है। एक शख्स प्लॉस्टिक के गैलन में गंगाजल लेने आया है। कौन कहता है गंगा मैली हो चुकी है?
सूर्य नमस्कार का सुख ही कुछ और है। यह काशी का साधू नहीं, बाहर से आया गंगा भक्त है। दोनो आँखें बंद किये सूर्य के ध्यान में मग्न। मैने चाहा कह दूँ, "आँखें खोलो भक्त महाराज! उगते सूर्य को खुली आँखों से निहारो। पलकें बंद कर के तो तुम घर में भी सूर्य के दर्शन कर सकते हो!" लेकिन चुप रहा। यह इनकी श्रद्धा है। इन्हें न सही, मुझे तो इनकी भक्ति का लाभ मिल ही रहा है।:) सुंदर है न तस्वीर?
सूर्योदय के समय, गंगा में कमर तक पानी में डूबे, सूर्य को अर्घ्य देने का सुख तो वही जान सकता है जिसने ऐसा किया हो। समर्पण का भाव मात्र ही सुखकारी है।
ये आने वाले भक्तों के सेवा की तैयारी में जी जान से जुटे हैं। चंदन घोट रहे हैं। यह सेवा ही इनकी रोजी-रोटी है। ये न हों तो नहाकर हम बाल कहाँ संवारने जायेंगे? चंदन-मंदन नहीं लगाया तो घर जाकर कैसे कहेंगे कि आज हम गंगा स्नान कर के आ रहे हैं?:)
इनके पास अपने भगवान हैं। सूर्योदय के वक्त पूजा में मगन हैं। लेकिन एक बात नहीं समझ में आई कि इनका मुँह उत्तर दिशा की ओर क्यों है? पंडित जी तो कहते हैं पूर्व की ओर मुँह करके पूजा करनी चाहिए! क्या यह मुद्रा मेरे जैसे फोटोग्राफरों के लिए है कि मैं सूर्य के साथ इनकी ऐसी तस्वीर खींच सकूँ ?
सूर्यदेव अब पूरी तरह उदित हो चुके हैं। गंगा, गाय और गंगा भक्तों को देखकर सूर्य भी अति प्रसन्न हो रहे प्रतीत होते हैं।
यह तस्वीर एहसास करा रही हैं, "आज माँ शक्ति की आराधना का दिन है पगले! आज यहाँ कहाँ भटक रहा है?"
जै हो गंगा मैया! तू सबको कितना देती है!!
कल ही टीवी पर देखा की गंगा कितनी मैली हो गई है कितना पैसा गंगा में बह गया उसे साफ करने में किन्तु पैसा ही साफ हुआ गंगा और लोगो के मन मैली की मैली ही रहा गई , अच्छी फोटो लगाई धन्यवाद , मै कभी अस्सी घाट नहीं गई हूँ ये बाढ़ के कारण मट्टी है या घाट ही ऐसा है ।
ReplyDeleteमिट्टी तो बाढ़ से बहकर आई है लेकिन यहाँ बारहों महीने मिट्टी जमा रहती है।..तस्वीरें पसंद करने के लिए धन्यवाद।
Deleteआजकल महंत जी(वीरभद्र मिश्र जी) निष्क्रिय है का? कुछ सुनाई नहीं देता है गंगा सफाई अभियान के बारे में
Deleteमोटे आसामी गए, छोड़ छाड़ यह गाँव ।
ReplyDeleteछेड़-छाड़ कर प्रकृत से, रहे डुबोते नाव ।
रहे डुबोते नाव, सूर्य गंगा गोमाता ।
सुबह सुबह के घाट, सदा सज्जन मन भाता ।
चित्रकार आभार, लगा के चन्दन नामी ।
बसते दिल्ली दूर, बड़े मोटे आसामी ।।
आ उ बाबा उत्तर मुहें इसलिए बैठे है की गंगा मैया उत्तर मुहें बहती है(?) न काशी में .
ReplyDeleteकैमरे के माध्यम से सूर्य नमस्कार के दृश्य अत्यंत लुभावने और मनभावन लगे .
ReplyDeleteजो उत्तर दिशा में देखकर प्रार्थना कर रहा है,वो शायद उधर भी एक दूसरा सूरज देख रहा हो,जो औरों को दिखाई न देता हो.
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र ....
ReplyDeleteधन्यवाद कविराज।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी।
ReplyDeleteचौथा चित्र बहुत प्रभावशाली है.....!
ReplyDeleteतस्वीरों से गंगा दर्शन हुए ..धन्य हुए हम.
ReplyDeleteसुंदर काशी-गंगा दर्शन।
ReplyDeleteमेरी बेवकूफी से डा0 अनुराग जी का यह कमेंट डिलीट हो गया। इसे मेल से यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत! यजमान पूर्वाभिमुख और उसके दक्षिण में पुरोहित उत्तराभिमुख .
इस पर सुशील जी ने जो लिखा था, वह भी डिलीट हो गया...
यजमान पंडित जी को बेवकूफ बना रहा है
उसकी फोटो मुफ्त में खींच कर ले जा रहा है
ब्लाग में चिपका कर वाह वाह पा रहा है
पंडित ये सब यहाँ देखने कहाँ आ रहा है !
इस पर मैने भी लिखा था... अनुराग जी ने बहुत सही लिखा। इसका मतलब पंडित जी को जजमान की तलाश है।
Deleteसुशील जी, हा हा हा...क्या बात है! यह चूक तो हो गई। फिर गया तो पंडित जी की दक्षिणा देकर ही आऊँगा।:)
सभी फोटू बहुत ही साफ़ आये हैं और बहुत अच्छे एंगल से लिए गए हैं ....शुभकामनायें।
ReplyDeleteगहरी साँस भर प्रकृति मन में समेट लेने का भाव...
ReplyDeleteभौत सुन्दर बनारस की फ़ोटो।
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