वाल्मीकि जयंति पर विशेष....
वाल्मीकीय रामायण के उत्तर कांड में एक बहुत ही रोचक प्रसंग है.....
नित्य की भांति श्रीराम आज भी राजकार्य को निपटाने के लिए पुरोहित वशिष्ठ तथा कश्यप आदि मुनियों और ब्राह्मणों के साथ राज्यसभा में आ गये। इधर कार्य को निपटाने के उपरान्त श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा-
लक्ष्मण!
वाल्मीकीय रामायण के उत्तर कांड में एक बहुत ही रोचक प्रसंग है.....
नित्य की भांति श्रीराम आज भी राजकार्य को निपटाने के लिए पुरोहित वशिष्ठ तथा कश्यप आदि मुनियों और ब्राह्मणों के साथ राज्यसभा में आ गये। इधर कार्य को निपटाने के उपरान्त श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा-
लक्ष्मण!
निर्गच्छ त्वं महाबाहो सुमित्रानन्दवर्धन।
कार्यार्थिनश्च सौमित्रे व्याहर्तुं त्वमुपाक्रम।।
तुम स्वयं जाकर देखो। यदि कोई कार्यार्थी द्वार पर उपश्थित है, तो उसे भीतर आने के लिए कहो। श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण ने बाहर आकर उच्च स्वर में कहा-क्या किसी को श्रीरामजी से मिलना है? किसी ने भी अपने किसी कार्य के लिए मिलने की इच्छा प्रकट नहीं की। वस्तुतः, राम-राज्य में व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि किसी को अपने कार्य के लिए भटकना ही नहीं पड़ता था, सबके कार्य स्वतः हो जाया करते थे। अतः लक्ष्मण ने श्रीराम के पास लौटकर कहा-
दृश्यते न च कार्याथी
भगवन! कोई मिलने वाला नहीं है। श्रीराम ने लक्ष्मण से एक बार फिर बाहर जाकर पता लगाने को कहा, तो लक्ष्मण ने तत्परता से आज्ञा का पालन किया। बाहर आने पर उन्होने एक कुत्ते को द्वार पर खड़ा और बार- बार भोंकते देखा, तो उससे पूछा-
किं ते कार्य महाभाग ब्रूहि विस्त्रब्धमानसः।
यदि तुम्हें श्रीराम से कोई कार्य है, तो निंश्चिंत होकर मुझे बतलाओ।
लक्ष्मण के वचन सुनकर कुत्ता बोला-मैं श्रीराम से मिलना चाहता हूँ और अपना प्रयोजन भी उनके सामने ही स्पष्ट करूंगा। कुत्ते के द्वारा ऐसा कहने पर लक्ष्मण उसे अपने साथ राजसभा में श्रीराम के समक्ष ले आया और उससे बोला-महाराज तुम्हारे सामने विद्यमान हैं-तुम्हें उनसे जो कहना हो, कहो।
कुत्ता बोला-भगवन्! जब देवालयों में, राजभवनो में और ब्राह्मणों के घरों में अग्नि, इन्द्र, सूर्य और वायुदेवता की अबाध गति है, फिर हम-जैसे अधम योनि जीव वहाँ क्यों नहीं जा सकते? कुत्ते ने श्रीराम को अपने मस्तक का घाव दिखाते हुए कहा- सर्वार्थसिद्धि नामक एक प्रसिद्ध भिक्षु ने अकारण मुझ पर प्रहार करके मुझे घायल किया है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैने उनके प्रति कोई अपराध नहीं किया।
श्रीराम के आदेश पर सर्वार्थिसिद्धि भिक्षु को बुलाया गया और उसने उपश्थित होकर श्रीराम से पूछा- हे निष्पाप राम! मुझे किस कार्य के लिए बुलाया गया है, मैं उपश्थित हूँ मुझे आज्ञा कीजिये।
श्रीराम ने कहा-भिक्षो! इसके सिर पर जो घाव है, वह आपके द्वारा मारे गये डण्डे का परिणाम है। इसने आपका क्या अपराध किया था, जिसका दण्ड आपने इसे इस रूप में दिया है? आप जानते हैं-
मनसा वाचा कर्मणा वाचा चक्षुषा च समाचरेत्।
श्रेयो लोकस्य चरतो न द्वेष्टि न च लिप्यते।।
श्रेयो लोकस्य चरतो न द्वेष्टि न च लिप्यते।।
कि मन, वचन, कर्म और दृष्टि द्वारा दूसरों को दुःख न पहुँचाने वाला और किसी से द्वेष न रखने वाला व्यक्ति पाप से लिप्त नहीं होता।
सर्वसिद्धि बोला-भगवन! भिक्षा का समय बीत चुकने पर भी मैं भिक्षा के लिए द्वार-द्वार भटक रहा था और भूख के कारण परेशान था। यह कुत्ता बीच रास्ते में खड़ा हो गया। मैने इसे हटने के लिए बार-बार कहा, किंतु इसने मेरी एक न सुनी, तो क्रोध और क्षुधा के आवेश में आकर मैने इसे डण्डा मारा है। इसके लिए मैं अपराधी हूँ और दण्ड भुगतने के लिए तैयार हूँ।
श्रीराम ने उपश्थित सभासदों से उपयुक्त दण्ड बताने का अनुरोध किया, तो मुनियों ने एक स्वर में कहा- रघुनन्दन! राजा सबका शासक होता है, फिर आप तो तीनो लोकों पर शासन करने वाले साक्षात् विष्णुनारायण हैं, अतः आप स्वयम् दण्ड का विधान कीजये।
ऋषियों द्वारा इस प्रकार अपना मत प्रकट करने पर कुत्ता बोला-प्रभो यदि आप मेरी प्रसन्नता के अनुरूप इस भिक्षु ब्राह्मण को दण्डित करना चाहते हैं, तो महाराज इस ब्राह्मण को कालंजर में एक मठ का महन्त बना दीजिये। कुत्ते के सुझाव पर श्रीराम ने सर्वार्थसिद्धि को मठ के महन्त-पद पर अभिषिक्त किये जाने की अनुमति दे दी, तो वह महन्त होने के नाते गजारूढ़ होकर चल दिया।
भिक्षु के इस प्रकार शान से प्रस्थान करने पर आश्चर्यचकित सभासदों ने श्रीराम से पूछा-
महाराज! आपने इसे दण्ड दिया है अथवा वरदान से कृतार्थ किया है!
श्रीराम ने उत्तर दिया- ब्राह्मण को मठाधीश का पद देने के पीछे के रहस्य को आप लोग नहीं समझ सकेंगे। श्रीराम ने अपनी ओर से कुछ न कहकर कुत्ते से इस रहस्य का उद्घाटन करने के कहा, तो कुत्ता बोला-
अहं कुलपतिस्तत्र आसं शिष्टान्नभोजनः।
देवद्विजातिपूजायां दासीदासेषु राघव।।
रघुनन्दन मैं पहले जन्म में कालंजर के एक मठ का मुखिया था। मैं यज्ञ-शेष का भोजन करता, देवों-ब्राह्मणों की पूजा मे तत्पर रहता, दास-दासियों के प्रति न्याय करता और प्राणिमात्र के हित-साधन में संलग्न रहता था, फिर भी मुझे कुत्ते की योनि में जन्म लेना पड़ा है। मैं समझता हूँ कि जिसे अपने बन्धु-बान्धवों के नरक में गिराना हो, उसे मठाधीश बन जाना चाहिए, अन्यथा विवेकशील व्यक्ति को
तस्मात् सर्वास्ववस्थासु कौलपत्यं न कारयेत्
किसी भी अवस्था-दरिद्रता, कष्ट, बाधा आदि-में मठाधीश के पद को ग्रहण नहीं करना चाहिए। कुत्ते के वचन को सुनकर सभी आश्चर्य चकित रह गये। कुत्ता श्रीराम को प्रणाम करके चला गया।
.....................................
अनुवादक एवं व्याख्याकार डॉ0 रामचन्द्र वर्मा शास्त्री, सेना निवृत्त प्राध्यापक दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली की पुस्तक 'वाल्मीकीय रामायण' पृष्ठ सं-375,376,377 से साभार।
एक बहुत पुरानी (रामायण जितनी नहीं) कहावत है हमारे यहाँ कि किसी से बदला लेना हो (दण्डित करना) तो उसे एक सेकण्ड हैंड कार खरीदवा दो.. आज यह मठाधीशी वाला दृष्टांत भी देख लिया..
ReplyDeleteबिहार में बहुत से मठ हैं और उनकी महंथी के लिए बहुत खून खराबा होते हुए देखा/सुना है.. इसलिए राजा रामचंद्र के नीर-क्षीर विवेक को समझ सकता हूँ..
वैसे इस शब्द का प्रयोग ब्लॉग जगत में बहुत सुना है.. अर्थ नहीं मालूम.. और अब तो इच्छा भी नहीं रही जानने की!! मज़ा आ गया आपके इस कांड में.. आई मीन उत्तर कांड में!!
:) सम सामयिक कथा, आनन्द आ गया!
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति स्वान विवेक ,मठाधीश अभिषेक पर .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
रविवार, 28 अक्तूबर 2012
तर्क की मीनार
http://veerubhai1947.blogspot.com/
देश के राजनैतिक मठाधीशों के लिए शिक्षाप्रद कथा
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
ReplyDeleteयही होता है ,मठाधीश बन कर सामान्य कहाँ रह पाये बेचारा !
विचारार्थ उत्तम कथा
ReplyDeleteअच्छे कर्म करके भी मठाधीश को कुत्ते का जन्म लेना पड़ा -- क्यों ?
ReplyDeleteमनसा वाचा कर्मणा वाचा चक्षुषा च समाचरेत्।
Deleteश्रेयो लोकस्य चरतो न द्वेष्टि न च लिप्यते।।
..मेरी समझ से मठाधीश के पद पर रहते हुए मन, वचन,कर्म और दृष्टि से किसी को दुःख न पहुँचाना और किसी से द्वेष न रख पाना संभव नहीं है। कोई न कोई आहत हो ही जाता है। शायद इसीलिए अपनी समझ से अच्छे कर्म करके भी मठाधीश को कुत्ते का जन्म लेना पड़ा।
बहुत बढ़िया मार्गदर्शन |
ReplyDeleteआभार भाई जी ||
...ब्लॉगिंग में मठाधीश बनते नहीं बनाए जाते हैं !!
ReplyDelete(:(:
Deletepranam
मजे की बात ये की जो मथादीश समझे जाते हैं ...वो भी इस शब्द का प्रयोग दूसरों के लिए करना अपनी शान समझते हैं ..
ReplyDeleteकुछेक उदाहरण हैं मेरे पास ...
इसी ब्लॉग जगत से
:)
दरअसल शास्त्रों में जीविकोपार्जन के लिए धरम करम का काम वर्जित माना गया था -यहाँ आख्यान इसी सोच का प्रतिपादन करती है
ReplyDeleteसही बात। जीविकोपार्जन के लिए यह पद बना ही नहीं है। जो भी संस्था जनसेवा के लिए बनी हो, उसके मुखिया को भी इस पद का उपयोग धनोपार्जन/जीविकोपार्जन के लिए भी नहीं करना चाहिए।
Deleteकृपया इसे ब्लागिंग की मठाधीशी से मत जोडिये हालांकि पूर्वोक्त कारण से यह शब्द ही गर्हित हो गया है !
ReplyDeleteपहले मठाधीश ही लिखना चाहता था फिर सोचा कि एक शब्द ब्लॉगर लगा दें तो अधिक लोग पढ़ेंगे। वैसे आप ठीक कह रहे हैं..हटा देता हूँ।
Deletemast mast mast.....
ReplyDeletejai baba banaras....
waah ...aanad aa gaya ...
ReplyDeleteचलिए यह भी एक पक्ष है। रोचक है।
ReplyDeleteवाह क्या प्रसंग लिया है
ReplyDeleteoh...good book me rahne vaale isi liye pareshaan rahte hai...so mast rahiye khush rahiye...fir sab or anand hi aanand...:)
ReplyDeleteशानदार .... बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteरोचक प्रसंग ।
ReplyDeleteआनंद आ गया साहब...
ReplyDeleteतभी मैं कहूँ देश में कुत्तों की संख्या क्यों बढ़ गयी है... अब सोच के परेशां हूँ दिल्ली के ये मठाधीश निपटेंगे तो आने वाले वक़्त में क्या हाल होगा...:)
:)आनंद आ गया आपका कमेंट पढ़कर।
Deleteबताईये, जहाँ के कुत्तों को इतनी समझ हो, वहाँ का भविष्य उज्जवल है, हम तो प्रजाजन ही बने रहना चाहते हैं।
ReplyDeleteकाश आज के मठाधीश समझ सकते ये बात
ReplyDeleteकिसी को कहींका भी हेड नहीं होना चाहिये ,किसी न किसीको दुःख होगा ही.
ReplyDeleteचकाचक कथा है।
ReplyDeleteकुत्ते की योनी में जन्म लेकर भी इतनी विवेकशीलता ...कलियुग में मनुष्य की योनी में जन्म लेकर भी विवेकहीनता...मुझे लगता है कि नेतिकता और संस्कृति का पाठ बचपन से ही अनिवार्य कर देना चाहिए पाठ्यक्रम में ....ताकि मठाधीशों को कुछ समझ आये.... सादर !!
ReplyDeleteमठ के मुखिया का निरपेक्ष होना संभव नहीं है , इसलिए कुत्ते की योनी मिली !
ReplyDeleteसार्थक आकलन और सन्देश !
बहुत रोचक कहानी थी , मैंने श्री रामचरितमानस तो पढ़ी है पर रामायण नहीं , बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteसादर