अंधेरी राह में
घने वृक्षों के पास
कुछ शब्द दिखे
गुच्छ के गुच्छ!
जुगनुओं की तरह
आपस में टकराते,
बिखरते,
फिर लौट आते...
शायद वहीं
जहाँ से
उड़ना शुरू किये थे।
तेजी से
बदल रहे थे
शब्दों के क्रम
हो रहा था
चमत्कार!
मैं
मुग्ध हो
उनके अर्थ तलाशता रहा रात भर
और
सुबह हो गई।
...........
घने वृक्षों के पास
कुछ शब्द दिखे
गुच्छ के गुच्छ!
जुगनुओं की तरह
आपस में टकराते,
बिखरते,
फिर लौट आते...
शायद वहीं
जहाँ से
उड़ना शुरू किये थे।
तेजी से
बदल रहे थे
शब्दों के क्रम
हो रहा था
चमत्कार!
मैं
मुग्ध हो
उनके अर्थ तलाशता रहा रात भर
और
सुबह हो गई।
...........
कुछ तो मैंने भी लिखा होता मगर ,
ReplyDeleteकुछ अल्फाजों की कमी थी , कुछ एहसासों की |
बहुत अच्छी रचना |
सादर
...अर्थ ढूँढ़ने ही होंगे ।
ReplyDeleteअपन पल्ले कुछ पड़ा नहीं.
ReplyDeleteये रचना उत्तम है पर चश्मे वाली तो गजब है अब उसमें मेरा नम्बर काफी बाद में आता तो मै उसके लिये भी यहीं लिखे दे रहा हूं । भांति भांति के चश्मे लगाकर लोग देखते हैं अपनी अपनी नजरो से दुनिया को
ReplyDeleteसुबह न होती तो शब्दों के चमत्कृत रहस्य हम तक लेकर कैसे आते ........ शब्दों के ब्रह्माण्ड में कितने विस्मय होते हैं न
ReplyDeleteहकीकत है भाई जी-
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति -
नाका-रा-हुल दे गया, बजा गया वह बैंड -
जुगनुओं को अगर में खुशियाँ मान लूं तो सच में जीवन रुपी पेड़ के आसपास हम खुशियों को तलाश्ते रहते हैं और न जाने कब मृत्यु आ जाती है अर्थात सुबह हो जाती है यानी मोक्ष की प्राप्ति | सुन्दर रचना | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
मन के एक कोने में, रात की शान्ति के बाद उमड़ते भाव, उछलते शब्द..
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteशब्दों के अर्थ तलाशती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteरात भर!!
ReplyDeleteफ़िर भी सस्ते छूटे, वरना तो जिन्दगियाँ गुजर जाती हैं कभी कभी इस तलाश में।
शब्दों का गुंजन होता ही रहता है, बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteशब्दों के बदलते मायनी ... ओर इन मायनों की तलाश ... कब तक ...
ReplyDeletebahut achchi rachana.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteऔर अर्थ नहीं मिला .....शायद अर्थ न मिलना भी एक अर्थ ही हो !
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