बारिश के मौसम का मजा यह भी है कि अंधेरी रात में घर में बिजली न हो, इंनवर्टर भी जवाब दे गया हो और हल्की-हल्की फुहार के बीच बिजली की प्रतीक्षा में आप छत पर टहल रहे हों। दाहिनी ओर फैले खेत से मेंढ़कों और झिंगुरों की जुगल बंदी के बीच किसी अजनबी पंछी की टेर रह-रह कर सुनाई दे रही हो। बायीं ओर कंदब के घने वृक्षों के बीच बेला के फूल चमक रहे हों। बांसुरी हाथ में हो पर बजाते हुए भय लग रहा हो कि कहीं कोई सर्प सुनते हुए ऊपर न चढ़ जाये। इतने में बिजली आ जाय और आप वापस फेसबुक में मूड़ी घुसेड़ कर सुख का अनुभव करें!
जब छत पर टहल रहे हों तो बिजली की प्रतीक्षा करें और जब फेसबुक से जुड़े हों तो प्रकृति के आनंद को याद करें। मन कितना चंचल है!!!
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सुबह छत पर गया तो देखा कॉलोनी की कच्ची सड़क पर खूब पानी जमा है। मतलब जब मैं गहरी नींद में था तब जमकर बारिश हुई होगी। पहली बारिश के बाद जो पीले मेंढक दिखाई पड़ रहे थे वो कहीं गुम हो चुके हैं। रात में सभी मिलकर टरटराकर शंखनाद कर रहे थे अभी हरे-हरे, डरे-डरे दिखाई दिये। पंछियों की चहचहाहट ही सुनाई पड़ रही है। वक्त एक समान नहीं होता। बेला के कुछ फूल पानी से गलकर सड़ चुके थे, कुछ जमीन पर झड़े थे और कुछ पूरी तरह खिल कर चमक रहे थे। जो आज चमक रहे हैं वे कल झड़ जायेंगे, जो आज जमीन पर गिरे हैं वो कल सड़ जायेंगे और बहुत सी कलियाँ भी हैं जिन्हें कल खिलना है। रात में कंदब दिखाई नहीं पड़ रहे थे सुबह शाख से लटके झूम रहे थे।
बदली अभी भी घिरी है। सूरज कोशिश कर रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे कोई शरारती बच्चा बार-बार पर्दा हटाकर कमरे में झांक रहा हो और माँ के आँख दिखाने पर छुप जा रहा हो।
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दोपहर से बारिश बंद है। मौसम ठंडा है। घर लौटते वक्त अंधेरे में बाइक की हेडलाइट के आगे बहुत से पतिंगे आ रहे थे। धूल नहीं थी इसलिए चश्मा नहीं पहना। दूर नहीं जाना था इसलिए हेलमेट भी नहीं लगाया। पतिंगों को शायद इसी का इंतजार था। आँखों में ऐसे घुसे आ रहे थे जैसे यही इनका घर है। जैसे तैसे घर आया तो दरवाजे पर ढेर सारे पतिंगे। कमरे में घुसते ही बिजली बंद किया। दरवाजे की खिड़कियों पर जाली लगी है मगर न जाने कहाँ-कहाँ से पतिंगे घुस जाते हैं! अभी भी लैपटाप की स्क्रीन पर दो चार मंडरा रहे हैं। जवानी के दिनो में एक शेर गुनगुनाता था...पता नहीं किसका लिखा है...
कितने परवाने जले राज़ ये पाने के लिए
शमा जलने के लिए है या जलाने के लिए।
फिर आगे कुछ ऐसा था....
शमा की गोद में जलते हुए परवाने ने कहा
क्यूँ जला करती है तू मुझको जलाने के लिए।
परवाने तो हैं मगर शमा का स्थान ट्यूब लाइट या शेफल बल्ब ने लिया है। पंतगे इनमें पर तोड़-तोड़ कर गिर रहे हैं। मर रहे हैं मगर न शमा है न शमा की गोद। कितने बदनसीब है आज के परवाने। शमा पर मरते तो हैं मगर जलने का आनंद भी नहीं ले पाते!
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अभी छत से टहल कर आ रहा हूँ। अजीब सा सन्नाटा पसरा है। कंदब, आम, सागौन और बेला सभी स्तब्ध हैं। न फिज़ाओं में हवा की सरगोशी, न गगन में बादलों की आवाजाही, न शाखों का हिलना, न कल की तरह मेंढकों की टर टर। मैने पूछा- इतना सन्नाटा क्यों पसरा है भाई? कोई कुछ नहीं बोला। एक चमगादड़ इधर से उधर उड़ा। सागौन के वृक्ष में छुपे कुछ जुगनू हंसते हुए चमक दमक मचाने लगे। सन्नाटे में दूर दूर तक बस झिंगुरों का शोर ही सुनाई पड़ रहा था। तभी एक मेंढक की टर टर सुनाई दी...
झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा
मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दिखता !
यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !
एक झिंगुर
अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-
इसमें अचरज की क्या बात है !
कुछ तो
बरगदी वृक्ष पी गए होंगे
कुछ
सापों के बिलों में घुस गया होगा
मैंने
दो पायों को कहते सुना है
सरकारी अनुदान
चकाचक बरसता है
फटाफट सूख जाता है !
हो न हो
वर्षा का जल भी
सरकारी अनुदान हो गया होगा..!
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नोटः-बहुत दिनों से ब्लॉग में कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ। एक दिन फुर्सत का मिला तो फेसबुक में ही जुटा रहा। वहाँ लिखे स्टेटस को यहाँ कापी-पेस्ट करके एक पोस्ट बना दी। उन मित्रों के लिए जो फेसबुक से नहीं जुड़े हैं।
कल 08/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
आभार आपका।
Deleteआपको पढना भी दूभर हो गया है ... फेसबुक पे अभी खाता नहीं खोला मैंने ... ब्लोगिये गायब होते जा रहे हैं ब्लॉग से ... अब क्या करें ...
ReplyDeleteवर्षा की ताजगी लिए विविध आयामों को बाँध दिया आपने ... ताजगी लिए है आपकी पोस्ट ...
कोई नहीं हम ढूँढते हुऐ आ गये :) यहाँ ।
ReplyDeleteवर्षा, मेढक और बादल की दास्ताँ..बहुत रोचक अंदाज...
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteआभार कविराज।
ReplyDeleteबहुत रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबारिस के विभिन्न आयाम.. ताजगी लिए सुन्दर पोस्ट ......
ReplyDeleteछोटे-छोटे टुकड़ों में बारिश के विभिन्न आयामों को जोड़ एक व्यापक विस्तृत फलक का सृजन करती बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! हर शब्द रोचक, हर भाव अर्थवान !
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteफेसबुक के स्टैटस को जोड़कर आपने अछ्छा काम किया है.
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