आज पता चला स्पेशल ट्रेन का कोई माई-बाप नहीं होता। पैसा भी अधिक लेते हैं और समय की कोई चिंता नहीं। सुबह आने वाली ट्रेन शाम को भी आ सकती है। सबसे बड़ी समस्या कि आप इसके लोकेशन को नेट पर ढूंढ नहीं सकते। सिर्फ स्टेशन पर खड़े हो अनाउंसमेंट सुनने के आलावा कोई चारा नहीं होता। कान खरगोश, नाक कुत्ता हो गया अपना। frown emoticon
लोहे के घर में कितने अनोखे अनुभव हो जाते हैं कभी कभी..शायद सदा ही बस उन्हें देखने वाली आप जैसे पैनी नजर चाहिए..अति रोचक पोस्ट..शुभ यात्रा !
ReplyDelete