ठंड की चादर ओढ़
दाहिने हाथ की अनामिका में
अदृश्य हो जाने वाले है राजकुमार की
जादुई अंगूठी पहन कर
चुपके से धरती पर आता है
बसंत
तुमको भला कैसे दिखता?
नहीं
कैलेंडर गलत थोड़ी न है
पत्रा देख कर ही हुई थी
मां शारदे की पूजा
चौराहे पर
रखी जा रही थी
होलिका
शहरों की छतों पर
पीली साड़ी पहन
सेल्फी ले रही थीं महिलाएं
तुम
रोज की तरह
परेशान हाल
थके मांदे घर आए
तुमको भला कैसे दिखता?
परेशान न हो
ठंड की चादर हटेगी
प्रहलाद के विश्वास के आगे
होलिका का घमंड
जल कर
ख़ाक हो जाएगा
अपने आप
फिसल कर गिर जाएगी
बसंत की उंगली से
जादुई अंगूठी
अभी तो
धरती की सुंदरता देख
खुद ही मगन है!
तुमको भला कैसे दिखता?
..... देवेन्द्र पाण्डेय।
दाहिने हाथ की अनामिका में
अदृश्य हो जाने वाले है राजकुमार की
जादुई अंगूठी पहन कर
चुपके से धरती पर आता है
बसंत
तुमको भला कैसे दिखता?
नहीं
कैलेंडर गलत थोड़ी न है
पत्रा देख कर ही हुई थी
मां शारदे की पूजा
चौराहे पर
रखी जा रही थी
होलिका
शहरों की छतों पर
पीली साड़ी पहन
सेल्फी ले रही थीं महिलाएं
तुम
रोज की तरह
परेशान हाल
थके मांदे घर आए
तुमको भला कैसे दिखता?
परेशान न हो
ठंड की चादर हटेगी
प्रहलाद के विश्वास के आगे
होलिका का घमंड
जल कर
ख़ाक हो जाएगा
अपने आप
फिसल कर गिर जाएगी
बसंत की उंगली से
जादुई अंगूठी
अभी तो
धरती की सुंदरता देख
खुद ही मगन है!
तुमको भला कैसे दिखता?
..... देवेन्द्र पाण्डेय।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-01-2018) को "महके है दिन रैन" (चर्चा अंक-2858) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! बसंत पहले आता है..फिर दिखता है..किसी ने यह भी कहा है, बसंत आता नहीं है, लाया जाता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नमन उस नामधारी गुमनाम को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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