आप मुर्गे की बांग से जागते होंगे, हमको तो पड़ोस की जूली जगाती है! जूली का मालिक भोर में चार बजे ही निकल जाता है मॉर्निंग वॉक पर। जूली की मालकिन अपने पति देव के जाने के बाद, गेट बाहर से उटका कर, देर तक कॉलोनी में टहलती रहती हैं और जूली बन्द गेट के भीतर से मालकिन को देख देख कूकियाती रहती है। जूली की कुकियाहट को सुन, दूसरे पड़ोसी का शेरू ताल से ताल मिलाने की तर्ज पर, तीसरे मंजिल की छत से भौंकना शुरू करता है। इधर जूली बोली कुई, उधर शेरू बोला.. भौं!
पूरे कॉलोनी में भौं-भौं, कुई-कुई की आवाजें गूँजने लगती हैं। शायद इनके शोर से ही कदम्ब की शाख पर बैठे पंछियों की नींद खुल जाती है और वे भी बीच-बीच में चहकने लगते हैं। भौं-भौं, कुई-कुई के शोर से जब अपनी नींद उचटती है तो सुबह के साढ़े चार के आस पास का समय होता है। अपना एलार्म बाद में बजता है, जूली पहले बोलती है। भौंकती है, इसलिए नहीं लिख रहा कि लोग बच्चों से भी जियादा अपने पालतू जानवरों से मुहब्बत करते हैं। भले कुत्ते/कुतियों के भौंकने से हमारी नींद समय से पहले उचट जाय, मुहब्बत का सम्मान करना हमारा फर्ज बनता है।
कुछ लोग घोड़े बेच कर सोते हैं। कुत्ते लाख भौंकते रहें न उनकी नींद टूटती है, न ही मुंगेरी लाल के ख्वाब टूटते हैं। उनका सबेरा सूर्योदय से नहीं, बिस्तर छोड़ने से शुरू होता है। हम जब मॉर्निंग वॉक से लौट रहे होते हैं, वे जम्हाई लेकर चाय पी रहे होते हैं। भले मुहावरे का अर्थ न मालूम हो लेकिन बेशर्मों की तरह हँसते हुए कहते हैं.. जब जागो तभी सबेरा। लोग बिस्तर से उठ कर चाय पीने को ही सबेरा मान बैठते हैं।
जागना तो तब होता है जब मन का अंधकार दूर हो। जब अंतर्मन में प्रकाश की किरणें फूटें, अपनी गलती का एहसास हो और मन बुरे कर्म छोड़, सत्कर्मों की तरफ लग जाय। तब कहो.. जब जागे तभी सबेरा। यह क्या कि सूरज चढ़ जाने पर बिस्तर छोड़े, चाय पीते हुए फेसबुक/वाट्सएप में गुडमार्निंग स्टेटस अपडेट/फारवर्ड किए और हंसते हुए बोल पड़े.. जब जागो तभी सबेरा! चुनाव परिणाम से पहले जब सरकार नहीं जगती तो आम आदमी एक रात के बाद कैसे जाग सकता है!
पता नहीं आपको अनुभव हुआ है या नहीं, हमको तो हुआ है। भागती कारें गढ्ढे उगलती हैँ! जब हम चार पहिए के पीछे अपनी बाइक दौड़ाते हुए ट्रेन पकड़ने के लिए फुल स्पीड में भाग रहे होते हैं, अचानक कार के नीचे से गढ्ढा निकलता है और अपनी बाइक एक हाथ ऊपर उछल पड़ती है! चार पहिए वाला अपने चारों पहियों को सड़क के बीच मे नरक पालिका द्वारा सजाकर रखे हुए गढ्ढे से बचाकर आगे निकलता है और पीछे चलने वाले बाइक सवार को गढ्ढा तब दिखता है जब बाइक से उछलकर गिरने से बच जाता है। सुबह भले घर से हनुमान चालीसा पढ़कर निकला हो, भगवान को याद करते हुए अंग्रेजी में कहता है.. थैंक्स गॉड!
अब आम आदमी सड़क पर मिलने वाले ऐसे गढ्ढों के लिए सरकार को नहीं कोसता। सम्भावित दुर्घटना के लिए अपनी गलती मानता है कि उसे अपनी बाइक चार पहिए से इतनी दूरी बनाकर चलानी चाहिए कि जब कारें गढ्ढे छोड़ें तो समय रहते दिख जाए। जब जागो तभी सबेरा की तर्ज पर, कुछ देर तक मैं भी नींद से जाग कर चलता हूँ। फिर भूल जाता हूँ कि नुझे कार से दूरी बनाकर चलना चाहिए। सरकारें हों या कारें, आम आदमी को कभी भी गढ्ढे में धकेल सकती हैं।
ऐसा ही होता है। एक दिन नहीं, हर दिन होता है। हम रोज जागते और हर रोज सो जाते हैं। कई बार तो दिन के चौबीस घण्टों में बार-बार जागते और बार-बार सो जाते हैं। जब जब गढ्ढे में गिरते हैं, थैंक्स गॉड बोलते हैं लेकिन न सोना छोड़ते हैं न गढ्ढे में गिरना। जीतने के बाद सरकारें सो जाती हैं, गढ्ढे से बचने के बाद आम आदमी सो जाते हैं। सरकार जागती हैं जब सत्ता चली जाती है। बाइक सवार जागता है जब दुर्घटना हो जाती है। कोमा से निकलने के बाद दोनों के मुख से एक मासूम प्रश्न प्रस्फुटित होता है.. मेरी क्या गलती थी? सरकारें आत्म मंथन के बाद निष्कर्ष निकालती है..विपक्ष का दुष्प्रचार हमारे काम पर भारी पड़ा। आम आदमी निष्कर्ष निकालता है..यदि सड़क में गढ्ढा न होता तो वह कभी नहीं गिरता। दोनो दर्द तक जागने के बाद, फिर गहरी नींद में सो जाते हैं। सरकार हो या आम आदमी, दोनो जागें भी तो कैसे? नींद से जगाने वालों को सभी भूनकर खा जाना पसंद करते हैं।
आपकी नींद का मुझे नहीं पता लेकिन अपनी नींद तो पड़ोस की जूली के कुकियाने से खुलती है।
..............
धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व 'विजयादशमी' - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDelete