मन बहुत बेचैन मेरा
तू मिले तो चैन आए।
तू धरा में तू गगन में
जर्रे-जर्रे में छुपा तू
है पढ़ा हमने भी लेकिन
वही दिन औ रैन आए!
मन बहुत बेचैन मेरा
तू मिले तो चैन आए।
मूर्तियाँ तेरी अनेकों
और अनगिन प्रार्थनाएँ
रूप हैं तेरे अनेकों
दे दरश! अब नैन छाए।
मन बहुत बेचैन मेरा
तू मिले तो चैन आए।
इन खिलौनों पर नज़र
मेरी कहीं टिकती नहीं है
गाँठ बाँधा है तुम्ही ने
दूसरा कैसे छुड़ाए!
मन बहुत बेचैन मेरा
तू मिले तो चैन आए।
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सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण भक्तिमय सुंदर रचना
ReplyDeleteतू मिले तो चैन आए ... विचलित मन को वो कब शांत कर जाएगा पता नहीं ... पर कभी कभी उसकी ज़रुरत ज्यादा महसूस होती है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
सभी मित्रों का आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteतू मिले तो चैन आये | अप्राप्य को स्नेहिल पुकार !
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