झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक...
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा
मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दिखता !
यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !

अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-
इसमें अचरज की क्या बात है !
कुछ तो
बरगदी वृक्ष पी गए होंगे
कुछ
सापों के बिलों में घुस गया होगा
मैंने
दो पायों को कहते सुना है
सरकारी अनुदान
चकाचक बरसता है
फटाफट सूख जाता है !
हो न हो
वर्षा का जल भी
सरकारी अनुदान हो गया होगा..!
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नोटः यह एक पुरानी कविता है जिसे दो वर्ष पहले पोस्ट किया था। पुनः पोस्ट कर रहा हूँ। उन पाठकों के लिए जो मुझसे इधर जुड़े और जानता हूँ पुरानी पोस्ट कोई खंगाल कर नहीं पढ़ता।
( चित्र गूगल से साभार )