आज रविवार है, कविता पोस्ट करने का दिन। आलोचना के प्रस्ताव में आप सभी की प्रतिक्रिया बेहद रोचक रही। यह बात सच है कि बहुत से लोग मात्र कविता का आनंद लेते हैं, कविता की समीक्षा या आलोचना करना विद्वानों का काम है। यह बात भी समझ में आ गई कि मेरी तरह बहुत से कवि भावों की अभिव्यक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं भाषा-व्याकरण के विद्वान नहीं हैं लेकिन यह बात भी सत्य है कि अपने को कविता जैसी लगती है वैसी ही प्रतिक्रिया होनी चाहिए। हम एक दूसरे को उनकी त्रुटियाँ का ग्यान, स्वस्थ मन से कराते रहें तो मेरी समझ से सभी का भला होगा। यह भी जरूरी नहीं कि कमियाँ बताने वाला सही ही हो. वह, उस समय उसे जैसा लगता है, वैसा लिख रहा होता है, इसमें किसी को बुरा भी नहीं मानना चाहिए। बहरहाल मेरा एक उद्देश्य आप सभी से संवाद कायम करना भी था जिसमें मैं पूर्णतया सफल हूँ तथा आपकी प्रतिक्रियाओं से अति उत्साहित भी .
आज एक गीत पोस्ट करने का मन है। मैं एक बार 'नेपाल' के खूबसूरत पहाड़ी पर्यटन स्थल 'पोखरा' गया था। वहाँ की सुंदरता ने मुझे मोहित कर दिया। सभी का वर्णन करने लगूँ तो यह पोस्ट अधिक लम्बी हो जाएगी। वहाँ हरी-भरी पहाड़ियाँ तो हैं ही कंचनजंगा की खूबसूरत हिम-श्रृंखलाओं से घिरी इस पहाड़ी घाटी में तीन खूबसूरत झीलें भी हैं। बनारस की गंगा नदी में नाव चलाने वाले बनारसी ने जब वहाँ के 'फेवा ताल' में अपनी नैया चलाई तो मन में कुछ ऐसे भाव जगे कि गीतकार न होते हुए भी इस गीत ने जन्म ले लिया। प्रस्तुत है गीत...........
ये गहरी झील की नावें....
ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !
रहती हैं ये पहरों में,
डरती हैं ये लहरों से।
उछलती हैं किनारों में,
थिरकती हैं हवाओं से।
जो आशिक हैं किनारों के
भला मझधार क्या जाने !
वो गिरना तुंग शिखरों से,
अज़ब का दौड़ मैदानी।
फ़ना होना समन्दर में,
गज़ब का प्रेम हैरानी।
ये ठहरे नीर की नावें
नदी का प्यार क्या जानें !
अगर है मौत रूकना तो,
बहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !
जो डरते हैं खड़े हो कर
ReplyDeleteभला संसार क्या जाने !
ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !
विचारोत्तेजक!
ये गहरी झील की नावें
ReplyDeleteनदी की धार क्या जानें ।
कि रुकना मौत है समझो
है बहना जिन्दगी मानों ।
जीवन का सुंदर संदेश देती रचना । बहुत सुन्दर
अगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
bahut sunder abhivyakti .sarahniy rachana .
vबहुत सुंदर भाव ,लय लिए अभिवयक्ति ,किनारों के आशिक ,मझधार को समझ ही नहीं सकते ,सच है । all the best.
ReplyDeleteअगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने ..
आपकी रचना पढ़ कर इस गीत की याद आ गयी .........
"ओहरे ताल मिले नदी के जल में ..."
न जाने क्यों पर नदी... जल... सागर हमेशा ही आशा और उम्मीद का प्रवाह बिखेरता नज़र आता है .......... आपकी रचना भी कुछ ऐसा ही कर रही है ...........
"जो आशिक हैं किनारों के
ReplyDeleteभला मझधार क्या जानें !"
बेहतरीन पंक्तियाँ । मैं तो इस रचना के प्रवाह से मुग्ध हूँ ।
कमी हो गयी है, लय तुक की रचनाओं की । ब्लॉग में तो बहुत कम हैं ऐसी रचनायें । आभार ।
आपकी कविता का सार आप ही की पंक्तियों में आपको समर्पित है, जो मुझे अच्छी लगीं -
ReplyDeleteये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !
जो आशिक हैं किनारों के
भला मझधार क्या जाने !
ये ठहरे नीर की नावें
नदी का प्यार क्या जानें !
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
अगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
बहुत सुन्दर रचना----झील के पानी में तो सिर्फ़ गहरायी हो्ती है प्रवाह नहीं।पर आपकी रचना में जितनी गहरायी है उतना ही प्रवाह भी।
बहुत ही उम्दा रचना है लाजवाब लेख है
ReplyDeleteनदी और नाव के बीच का मौन आपने
ReplyDeleteपकड़ा , वाणी दी .. अच्छा लीरिक बना
हिमांशु जी की बात से मैं सहमत हूँ ..
अगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
नाव और नदी ये सब तो बहाना है, आपने इस कविता के माध्यम से बहुत ही सुंदर संदेश दिया है की जीवन को हँस कर जियाना चाहिए मुश्किलें चाहे जितनी हो उनका आत्मविश्वास से सामना करो...बहुत प्रेरक संदेश बहुत बढ़िया गीत..बधाई
तारतम्य बना रहता है
ReplyDeleteआपकी रचनाओं की ये एक खूबी लगी हमें
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
"जो आशिक हैं किनारों के
ReplyDeleteभला मझधार क्या जाने !"
यह पंक्ति सबसे अच्छी लगी !
उम्दा रचना है
ReplyDeleteअगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
देवेंद्र जी, बहुत अच्छी रचना लिखी है। एकदम प्राकृतिक , आपके ब्लॉग की तस्वीर की तरह।
झील की फोटो देखकर तो मन गदगद हो गया, आभार।
बहुत ही उम्दा रचना है लाजवाब लेख है
ReplyDeleteआहा आप 'पोखरा' घूम के आ गए... बहुत बढ़िया किया देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteअगर है मौत रूकना तो,
बहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
क्या प्रवाहमय कविता कही है.... बधाई आपको... चप्पू संभल के चलाये. हम भी बैठे हुए हैं आपके नाव में.
सुलभ
अगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है.
वाह!
सकारात्मक सोच लिए प्रेरणा देती कविता.
गहरी झील की नावें!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
ReplyDeletepls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
मोहक - गीत भी और पोस्ट भी।
ReplyDeleteबहुत खूब अच्छी रचना
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें
ये गहरी झील की नावें
ReplyDeleteनदी की धार क्या जानें
देवेन्द्र जी ! बहुत ही सुंदर और
सशक्त है यह कविता !जिंदगी को डूब के जीने का मजा ही कुछ और है ! बहुत अच्छा लगा ! आपको मेरी कविता भी अच्छी लगी थी ! बहुत बहुत धन्यवाद
पसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
ReplyDeleteमेरी तरह बहुत से कवि भावों की अभिव्यक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं भाषा-व्याकरण के विद्वान नहीं हैं ....
ReplyDeleteMere vichar me bhi kavita me bhav ko hi pramukhta milni chaiye na ki taknik ko.
Rachna achchi lagi.
जो आशिक हैं किनारों के
ReplyDeleteभला मझधार क्या जाने !
-bahut gehri baat keh di.
वो गिरना तुंग शिखरों से,
अज़ब का दौड़ मैदानी।
फ़ना होना समन्दर में,
गज़ब का प्रेम हैरानी।
- ek dam sahi varnan aur rachna ko is tareh ley-badh karna kabile tareef hai.
bahut pyara sa geet ban pada hai.
thanks dev.ji mere blog per aane aur sagar simat jayega per itna acchha rev.dene par .mujhe aapki baat bahut acchhi aur sahi lagi.
thanks bahut sara.
ऐसी ही कवितायेँ कुछ कर गुजरने को प्रेरित करती है !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा गीत बुना देवेन्द्र जी।
ReplyDelete"जो आशिक हैं किनारों के
भला मझधार क्या जाने "
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...कहीं-कहीं लय खटक रहा है, लेकिन शायद वो गाते समय सुर खिंचने से बैठ जायेगा।
आत्मा जी तस्वीर गज़ब की लगा राखी है आपने ....जब भी आती हूँ आँखों को सुकून सा मिलता है .....
ReplyDeleteवो गिरना तुंग शिखरों से,
अज़ब का दौड़ मैदानी।
फ़ना होना समन्दर में,
गज़ब का प्रेम हैरानी।
बहुत सुंदर गीत .....!!
ये भास्कर जी एक के साथ एक फ्री देते हैं क्या .....???
bahut dino baad kisi blog par achha geet padhhne ko mila...aapne sach kahaa he ki kuchh log kavita ka aanand lete he, unhi me se me hu, vidvaan nahi anyathaa aalochana yaa samalochanaa kartaa..
ReplyDeletegeet apane aap me nadi ki dhaaraa saa he, ab kuchh dhaaraye havaa ke rukh se kuch jyada upar neeche ho jaati he kintu kinaare par sthirtaa se hi jaati he..yaani aapka geet vakai sundar shbdo ke saath apani yatraa kartaa he/
जो आशिक हैं किनारों के
ReplyDeleteभला मझधार क्या जाने !
मझधार् मे उतरे बिना मझधार् को भला कौन जान सकता है
बहुत ही सुन्दर् गीत
... bahut khoob !!!
ReplyDeleteKya baat hai!
ReplyDeleteरचनाकार की परिपक्वता और अमित संभावनाओं से साक्षात्कार कराती बहुत सुन्दर भावमय कविता !
ReplyDeleteits a beautiful lyrical poem. बहुत अच्छा गीत.
ReplyDeleteअगर है मौत रूकना तो,
ReplyDeleteबहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
झील के माध्यम से एक सुन्दर स्न्देश देती कविता के लिये बधाई
प्रिय कविजी !
ReplyDeleteवे नावें जो समुद्र से मिलने को चलें सचही झील की नावों की क्या खा कर बराबरी करेंगी !
आप इसे गाकर सुनाते तो बात ही कुछ और होती .