आज महिला दिवस है। प्रस्तुत कविता हिंद युग्म में और अपने ब्लॉग में भी एक बार ( वर्ष 2009 ) प्रकाशित कर चुका हूँ। इस ब्लॉग से जुड़े नये पाठकों के लिये जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा है, शीर्षक है....
चिड़िया
चिड़ि़या उडी
उसके पीछे दूसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे तीसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे चौथी चिड़िया उड़ी
और देखते ही देखते पूरा गांव कौआ हो गया !
कौआ करे कांव-कांव
जाग गया पूरा गांव
जाग गया तो जान गया
जान गया तो मान गया
कि जो स्थिति कल थी वह आज नहीं है
अब चिड़िया पढ़-लिख चुकी हैं
किसी के आसरे की मोहताज नहीं है ।
अब आप नहीं कैद कर सकते इन्हें किसी पिंजडे़ में
ये सीख चुकी हैं उड़ने की कला
जान चुकी हैं तोड़ना रिश्तों के जाल
अब नहीं फंसा सकता इन्हें कोई बहेलिया
प्रेम के झूठे दाने फेंक कर
ये समझ चुकी हैं बहेलिये की हर इक चाल
कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना
इन्हें बढ़ने दो
इन्हें पढ़ने दो
इन्हें उड़ने दो
इन्हें जानने दो हर उस बात को जिन्हें जानने का इन्हें पूरा हक़ है ।
ये जानना चाहती हैं
क्यों समझा जाता है इन्हें 'पराया धन' ?
क्यों होती हैं ये पिता के घर में 'मेहमान' ?
क्यों करते हैं पिता 'कन्या दान' ?
क्यों अपने ही घर की दहलीज़ पर दस्तक के लिए
मांगी जाती है 'दहेज' ?
क्यों करते हैं लोग इन्हें अपनाने से 'परहेज' ?
इन्हें जानने दो हर उस बात को
जिन्हें जानने का इन्हे पूरा हक है ।
रोकना चाहते हो
बांधना चाहते हो
पाना चाहते हो
कौओं की तरह चीखना नहीं
चिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो....
तो सिर्फ एक काम करो
इन्हें प्यार करो
इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
कि तुम इनसे प्यार करते हो !
फिर देखना...
तुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।
धन्यवाद सुदर प्रस्तुति
ReplyDeleteनारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो
इन्हें बढ़ने दो
ReplyDeleteइन्हें पढ़ने दो
इन्हें उड़ने दो....सुदर प्रस्तुति .
इन्हें प्यार करो....
ReplyDeleteइस प्यारी रचना ने सब कुछ तो कह दिया ! हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteफिर देखना...
ReplyDeleteतुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।...
बहुत सुन्दर कविता..बहुत सार्थक विचार...
बधाई।
कविता भी और असलियत भी, सुन्दर रूपक बांधा है।
ReplyDeleteबहुत खूब ... सार्थक रचना है ... सभी को महिला दिवस की बहुत बहुत शुबकामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना पेश की है आपने!
ReplyDeleteमहिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
ये समझ चुकी हैं बहेलिये की हर इक चाल
ReplyDeleteकैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना
बेहतरीन नज़्म !
बदलते हुए समय का सुन्दर चित्रण !
बहुत खूबसूरत देव बाबू :-)
ReplyDeleteआपका अंदाज़ बिलकुल जुदा है दूसरों से .......गहरी बात अपने तरीके से.....चिड़िया और कौव्वा का बिम्ब बहुत अच्छा था......पर पुरुष क्या सच में कौव्वे ही हैं :-) शायद कुछ हंस भी हैं जो बिकुल उजले और सफ़ेद हैं .....क्यों हैं न ?
सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteपाण्डे जी , कमाल करते हो । सुन्दर सोच को इतने ही सुन्दर शब्दों में ढाल कर क्या रचना रचते हो ।
ReplyDeleteमहिला दिवस पर बेहतरीन प्रस्तुति ।
बधाई ।
देवेंद्र जी!
ReplyDeleteकमाल के जज़्बात पिरोये हैं आपने और इतने खूबसूरत सिम्बल! दिल को छूते हुये एह्सास हैं! आभार!
पाण्ड़े जी!
ReplyDeleteफ़ालतू के सरकारी स्लोगन आत्मा विहीन होते हैं, मगर जब आप कहते हैं तो शब्दों के शरीर में प्राणप्रतिष्ठा हो जाती है... माटी के चोले को आत्मा मिल जाती है...बहुत ही सुंदर रचना,आज के दिन के लिये!!
बहुत ही सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बेढंगे शीर्षक वाली बेहतरीन कविता
ReplyDeleteकौवों का चीखना बन्द होने की प्रतीक्षा करें, चिड़ियाँ चहक उठेंगी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, सारे कॊवे ही कॊवे बचे जी, चिडॆ कहां गये?
ReplyDeleteमहिला दिवस के लिए एकदम सटीक....
ReplyDeleteये बात बिलकुल सही है...
आज के दिन को सार्थक करती सशक्त रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteचिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो....
ReplyDeleteतो सिर्फ एक काम करो
इन्हें प्यार करो
इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
कि तुम इनसे प्यार करते हो !
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
लाजवाब है.....
वाकई बेहतरीन...
ReplyDeleteअब आप नहीं कैद कर सकते इन्हें किसी पिंजडे़ में
ReplyDeleteये सीख चुकी हैं उड़ने की कला
जान चुकी हैं तोड़ना रिश्तों के जाल
अब नहीं फंसा सकता इन्हें कोई बहेलिया
प्रेम के झूठे दाने फेंक कर
ये समझ चुकी हैं बहेलिये की हर इक चाल
कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना
bahut unchi baat kah daali ,bahut pasand aai rachna ,padhti hi rahi main .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति| हार्दिक शुभकामनायें|
ReplyDeleteवाह भाई जी,गज़ब की रचना ,कहाँ से चले कविजेट आपके ब्लॉग परहाँ तक पहुंचे /मानना पड़ेगा आपकी कलम का जादू ,आज मन खुश हो गया आपकी कविता से /वाकैपत्थर से देव प्रतिमा गढ़ने का हुनर है आपमे /
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका आना सौभाग्य है मेरा /कभी कभी समय निकल समय दे दिया कीजिये/अपने मोबाइल नो मुझे दीजियेगा /बनारस ससुराल है मेरी /वहां आया तो मिलूंगा आपसे /मेरा नो नोट करिए
९४२५८९८१३६/आपका ही ,
डॉ.भूपेन्द्र सिंह रेवा एम् पी
बहुत सुंदर भाव पिरोये है कविता में
ReplyDeleteसच कहते है आप कितने ही लोग कांव-कांव
करे उसे अब उड़ने से कोई नहीं रोक सकता
महिला दिवस पर सार्थक कविता !
मेरे ब्लॉग पर हमेशा स्वागत है !
बहुत बहुत आभार ......
वाह बेहद सशक्त और सार्थक रचना…………बधाई।
ReplyDeleteकितने सुन्दर ढंग से आपने बात राखी है कि कोई हृदयहीन ही होगा जो इसे नहीं महसूस पायेगा...
ReplyDeleteसार्थक सुन्दर..बहुत सुन्दर रचना...
साधुवाद !!!
कमाल के बिम्ब लेकर रचना गढ़ी है आपने..... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत ख्याल, देवेन्द्र भाई। हमने तो पहली बार ही पढ़ी है यह कविता, बहुत अच्छी लगी।
ReplyDelete"अब नहीं फंसा सकता इन्हें कोई बहेलिया
ReplyDeleteप्रेम के झूठे दाने फेंक कर
ये समझ चुकी हैं बहेलिये की हर इक चाल
कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना "
आज के समाज में स्त्री का सही चित्रण....
आज भी स्त्री प्रेम के आगे ही लाचार हो जाती है..!!
लेकिन लोग इसे उसकी बेचारगी समझते हैं...!!
आज भी इनके मन में ढेर सारे प्रश्न हैं जिनके उत्तर नदारत हैं !!
बहुत खूबसूरती से आपने शब्दों को पिरोया है....
धन्यवाद.....
इस सोच के लिए !!
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए भी !!
sunder kavita
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर सिवाय शीर्षक के। चिड़िया शीर्षक शायद ज्यादा अच्छा रहता इस कविता के लिये।
ReplyDeleteकमाल की रचना
ReplyDeleteबधाई ।
काबिले तारीफ है बहुत - बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteमैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
bahut sunder prernadayak srijan.
ReplyDeleteशीर्षक पर अरविन्द जी /अनूप जी से सहमत !
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति !
...कविता का शीर्षक चिड़िया ही है।
ReplyDeleteइन्हें बढ़ने दो
ReplyDeleteइन्हें पढ़ने दो
इन्हें उड़ने दो
इन्हें जानने दो हर उस बात को जिन्हें जानने का इन्हें पूरा हक़ है ।
बहुत सुन्दर.
फिर देखना...
ReplyDeleteतुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।...
सुन्दर कविता. सार्थक विचार...
कन्याएं कई क्षेत्रों में झंडे गाड़ रही हैं। समय आने वाला है जब पिताओं को "वर-दान" करना पड़ेगा।
ReplyDeleteफिर देखना...
ReplyDeleteतुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।
सत्य वचन ..इस प्रेरक कविता पर बंधाई स्वीकारें
सुंदर रचना।
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना ...अनूठी !
ReplyDeleteआभार ..
कितनी ख़ूबसूरत रचना ...दिल भर आया...चिड़ियों को कैद करना है तो पिंजरे में नहीं प्यार के खुले आकाश में कैद करो देखो तुम्हारे जीवन में कैसी चहचहाहट भर देंगी 👏👏
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