एक ऐसी दुनियाँ
जहाँ
न कोई राजा न कोई रानी
न कोई मंत्री न कोई सैनिक
सभी मालिक
सभी प्रजा
न कोई भूखा न कोई नंगा
सभी मानते
मन चंगा तो कठौती में गंगा ।
एक से बढ़कर एक विद्वान
कुछ बड़े
कुछ औसत दर्जे के....
कवि, कहानीकार, पत्रकार, चित्रकार, व्यंग्यकार
कुछ अलग ढंग के फनकार
और कुछ
फनहीन चमत्कार
भौचक करती है जिनकी
औचक फुफकार !
क्या करना है
किसी की निजी जिंदगी में झांककर !
सब कुछ दिखाने वाला चश्मा क्या अच्छा होता है ?
वहाँ देखो !
वह
कितनी अच्छी
कितनी सच्ची बातें करता है
यूँ लगता है
विक्रमादित्य की कुर्सी पर बैठा है !
नहीं नहीं
शक मत करो
मान लो
वह वैसा ही है
जैसा कहता है
अरे याऱ….
एक दुनियाँ तो छोड़ो
चैन से जीने के लिए !
अच्छा लिखने
अच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
चार दिनो की तो बात है
फिर आभासी क्या
छूट जानी है
वास्तविक दुनियाँ भी
एक दिन
होना ही है हमें
स्वर्गवासी ।
......................................
"यूँ लगता है
ReplyDeleteविक्रमादित्य की कुर्सी पर बैठा है !"
गहरे मन से लिखा है देवेन्द्र भाई , मन को छू लिया इस रचना ने ! ब्लॉग जगत का चरित्र रिफ्लेक्ट करता लेख ...आभार आपका !
ब्लॉग जगत को आभासी दुनिया का नामकरण देना अच्छा लगा.
ReplyDeleteवास्तविक दुनिया भी आभासी ही है.
अच्छी कविता,देवेन्द्र भाई.
सलाम.
अच्छा लिखने
ReplyDeleteअच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
bejod rachna hai... ise vatvriksh kee chhaya mein layen . bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath
अच्छा लिखने
ReplyDeleteअच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
सुंदर सकारात्मक भाव...... बहुत बढ़िया
सर्वं दुःखं सर्वं क्षणिकं
ReplyDelete@
ReplyDeleteचार दिनो की तो बात है
बहुत सुन्दर!
एक से बढ़कर एक विद्वान
ReplyDeleteकुछ बड़े
कुछ औसत दर्जे के....
कवि, कहानीकार, पत्रकार, चित्रकार, व्यंग्यकार
कुछ अलग ढंग के फनकार
और कुछ
फनहीन चमत्कार
भौचक करती है जिनकी
औचक फुफकार !
पर यही सच है...आखिर ये ब्लॉगर की दुनिया के लोग एक आम दुनिया से जुड़े हैं, तो ऐसा होगा ही...:)
good expressions
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है देवेन्द्रजी आपने... आभासी दुनिया
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ तो मन को छू गई गहराई तक... आभार
अरे याऱ….
ReplyDeleteएक दुनियाँ तो छोड़ो
चैन से जीने के लिए !
अच्छा लिखने
अच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
बहुत सुंदरता से सच्चाई को लिखा है ....अच्छी प्रस्तुति
आभासी भडासी फिर स्वर्गवासी -अंतिम परिणति !
ReplyDeleteचार दिनो की तो बात है
ReplyDeleteफिर आभासी क्या
छूट जानी है
वास्तविक दुनियाँ भी
गहरी बात.....सार्थक कविता
अन्तर्मन की अनुभूति. उत्तम प्रस्तुति...
ReplyDeleteसबको सत्य समझा दिया सपाट तरीके से।
ReplyDeleteदेव बाबू,
ReplyDeleteक्या बात है.....बहुत ज़बरदस्त लिखा है.....कुछ शब्द अनूठे थे......अब ये तो बताइए ये 'फन' कहाँ से याद आया है :-)
चार दिनो की तो बात है
ReplyDeleteफिर आभासी क्या
छूट जानी है
वास्तविक दुनियाँ भी
एक दिन
होना ही है हमें
स्वर्गवासी ।
बहुत अच्छॆ मुढ मे लिखी हे आप ने यह रचना धन्यवाद
कोई आभासी कहे , या कहे रियल ,
ReplyDeleteहै ये लेकिन अपनी दुनिया ,
बिलकुल मस्त , बिलकुल झकास !
वाह ...बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस अभिव्यक्ति में ।
ReplyDeleteपाण्डेय जी सही कहा अपने एक अच्छा पाठक ही अच्छा लेखक बनता है अच्छी पोस्ट आभार
ReplyDeleteवहाँ देखो !
ReplyDeleteवह
कितनी अच्छी
कितनी सच्ची बातें करता है
यूँ लगता है
विक्रमादित्य की कुर्सी पर बैठा है !
पाण्डेय साहब, आजकल जो दिखता है वही बिकता है :)
पांडे जी! एकदम मन की बात कह गए आप हमारी. सब ठाट पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा..
ReplyDeleteएकदम मस्त लिखा है . विक्रमादित्य के सिंहासन पर गँडेरिया का बच्चा बैठकर न्यायप्रिय बन जाता है . आभासी दुनिया में काहे की रार . सब की है अपनी अपनी सरकार ..
ReplyDeleteएक ऐसी दुनियाँ
ReplyDeleteजहाँ
न कोई राजा न कोई रानी
न कोई मंत्री न कोई सैनिक
देवेन्द्र जी वास्तविक दुनिया तो ऐसी ही थी, हमारे स्वार्थ ने; हमारे प्रभुत्व प्रवृत्ति ने; हमारे वर्चस्व की प्रवृत्ति ने इसे ऐसा न रहने दिया.
बहुत ही सुन्दर रचना
क्या करना है
ReplyDeleteकिसी की निजी जिंदगी में झांककर !
सब कुछ दिखाने वाला चश्मा क्या अच्छा होता है ?
गहरी बात कह दी ।
विक्रमादित्य की कुर्सी --हा हा हा !
बढ़िया व्यंगात्मक रचना के लिए बधाई ।
सुंदर व्यंग, अच्छी पोस्ट आभार.
ReplyDeleteबेचैन आत्मा ..फिर चैन कहाँ ! जैसी करनी..वैसी भरनी ...
ReplyDeleteभैया अपन तो अभी भी स्वर्गवासी ही हैं। यहां से तो सीधे नरक में ही जाना है।
ReplyDeleteAabhasi duniya ka satya bade hi rochak dhang se samjha diya hai ...bahut sundar rachana..
ReplyDeleteadbhut lekhan kshmta ke dhanee hai aap.........aabhasee duniya ko aainaa dikhatee sunder rachana.......
ReplyDeleteबढिया है।
ReplyDeleteअच्छा लिखने
ReplyDeleteअच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
चार दिनो की तो बात है
ReplyDeleteफिर आभासी क्या
छूट जानी है
वास्तविक दुनियाँ भी
एक दिन
होना ही है हमें
स्वर्गवासी ।....
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
मजेदार है। लेकिन स्वर्गवासी होना पक्का है क्या जी?
ReplyDeleteअनूप शुक्ल....
ReplyDeleteअच्छा तो आपने किसी को अपने मृत पिता के आगे नर्कीय लिखते पढ़ा है ? मैं भी नरकवासी लिखता तो क्या इतने अच्छे कमेंट पाता ? वैसे भी स्वर्ग में सीट पक्की मान कर जीने में भलाई है...पहुँचने पर देखा जाएगा। आप हैं न !
देवेन्द्र जी ,
ReplyDeleteअच्छा पढने से सोच भी क्रमिक विकास करते हुए अच्छी हो जाती है और लिखना तब खुद-ब-खुद अच्छा होता जाता है ...
बहुत सुन्दर , मजेदार अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteकुछ अलग ढंग के फनकार
ReplyDeleteऔर कुछ
फनहीन चमत्कार
भौचक करती है जिनकी
औचक फुफकार !
वाह...क्या शब्द प्रयोग हैं...अद्भुत...इस कमाल की रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
चार दिनो की तो बात है
ReplyDeleteफिर आभासी क्या
छूट जानी है
वास्तविक दुनियाँ भी
एक दिन
होना ही है हमें
स्वर्गवासी ।
saara sach apne sahajta se kah diya ! main prabhavit hun sir !
चार दिन की? अपन तो दो दिन की ही मान रहे थे:) आरजू वाले दो दिन तो कट चुके, अब इंतज़ार वाले दो दिन बचे हैं।
ReplyDeleteइसे आभासी कहते हैं लेकिन जिसे असली कहते हैं वो जिन्दगी भी तो आभासी ही है। बहुत खूब देवेन्द्र जी।
sidhi sapasht bhasha me apni baat kah di. bahut badhiya.
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक विद्वान
ReplyDeleteकुछ बड़े
कुछ औसत दर्जे के....
कवि, कहानीकार, पत्रकार, चित्रकार, व्यंग्यकार
कुछ अलग ढंग के फनकार
और कुछ
फनहीन चमत्कार
भौचक करती है जिनकी
औचक फुफकार !
waahhhhhhh
sir, yahi sochta hun agar aapki aatma bechain na hoti to kya hota??????????
गहरे भाव... शाश्वत की अभिव्यक्ति.... सुन्दर रचना... बधाई...
ReplyDeleteअच्छा लिखने
ReplyDeleteअच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
जब ये सो कॉल्ड दुनिया भी आभासी ही है तो क्यूं न वही देखें वही सुनें जो अच्छा है सच्चा है हां इसके लिये खोजी आँखें चाहिये ।
कुछ फनहीन चमत्कार :)
ReplyDeleteतो ज़रूर कुछ फनधारी कलाकार भी होंगे :)
सरकते फिसलते लपकते आभासी सतह पर :)
Kabhi kabhi kavitaayen kitna kuch kah jaati ahin ... lajawaav Devendr ji ...
ReplyDelete