पतंग
आवा राजा चला उड़ाई पतंग ।
एक कन्ना हम साधी
एक कन्ना तू साधा
पेंचा-पेंची लड़ी अकाश में
अब तs ठंडी गयल
धूप चौचक भयल
फुलवा खिलबे करी पलाश में
काहे के हौवा तू अपने से तंग । [आवा राजा चला...]
ढीला धीरे-धीरे
खींचा धीरे-धीरे
हम तs जानीला मंझा पुरान बा
पेंचा लड़बे करी
केहू कबले डरी
काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा
भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग । [आवा राजा चला...]
केहू सांझी कs डोर
केहू लागेला अजोर
कलुआ चँदा से मांगे छुड़ैया
सबके मनवाँ मा चोर
कुछो चले नाहीं जोर
गुरू बूझा तनि प्रेम कs अढ़ैया
संझा के बौराई काशी कs भंग। [आवा राजा चला...]
................................
बाल सखा, जिन्होने हमें पतंगबाजी का न्यौता दिया, वे तो एक कटोरा भांग छानकर टुन्न पड़े थे। छत पर चढ़ने लायक भी नहीं।
अहा, आनन्द भयो बनारस..
ReplyDeleteभ्रमर मुसुकाई धायो..! आयो का बसंत?
Deleteखूब उडी पतंग मज़ा आ गया
ReplyDeleteआपने देखा तो हमको भी मजा आ गया:)
Deleteवाह एक से एक चित्र
ReplyDeleteहाय! कविता पर चित्र भारी पड़ गये..:(
Deleteकाशी(वाराणसी) की बात ही क्या - यह नगरी तो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होती !
ReplyDelete..आमीन।
Deleteशतरंजबाजी और पतंगबाजी में सुध-बुध रखने की परंपरा नहीं होती। कनकौए काटने का तो अपना एक अलग ही नशा है!!
ReplyDeleteमैं शतरंज का भी नशीलची रहा हूँ..लिखकर पढ़ाउंगा आपको अपनी दीवानगी।..धन्यवाद।
Deleteबनारस और पतंगबाजी क्या रंग जमाया है.
ReplyDeleteसंग में कविता भी है..:(
Deleteबधाई स्वीकार करें |
ReplyDeleteकर लिया जी..आभार के साथ।
Deleteनयनाभिराम चित्र और सजीली कविता ने मन मोह लिया।
ReplyDeleteशुक्रिया, आपने मेरी कविता की इज्जत रख ली।
Deleteपुर-अकास खुब उड़े पतंगा,ऊपर सरग तs नीचे गंगा !!
ReplyDeleteमस्त पतंग उडाय रहे हो ,हुज़ूर !
ऊपर सरग त नीचे गंगा!
Deleteवाह! क्या बात कही है आपने.! तबियत मस्त हो गई।
सही nostalgia है :)
ReplyDeletenostalgia हम नहीं समझे शब्द सम्राट !:(
Deleteअरे ई हमरी आँख का क्या हुआ जी ...पांडे जी ?
ReplyDeleteई ससुरा मांझा और सद्दी तो दिखाइए नहीं पड़ रही ?
कम से कम ब्लॉग पोस्ट में डालने के मारे इनका तो कलरफुल किये होते ?
जय जय बनारस .....जय जय बनारसी !!!
जब फोटू हिंचाय रहे थे तब ई बात का ध्यान थोड़ी न था कि ब्लॉग में डालना है अउर डोरी मंझा दिखाइए नहीं देगा:)..जय गुरूदेव।
Deleteतो मतलब यह कि केवल फोटुए हिन्चाये ....?
Deleteवैसे ई पोज बिलकुले सच्ची जान पड़ा :)
कमाल है! कौनो टेक्निक है का कि कौनो ब्लॉग में कोइयो कमेंट का जवाब दे त तुरंते हमको मालूम हुई जाय?
Deleteहा हा हा !
Deleteजैक ऑफ आल ट्रेड्स......मास्टर ऑफ "प्राइमरी"
से दीक्षा लेने का वक्त अइये गया है !!
:)
दो तरीके हैं :
१- पहला तो यह कि आप स्वयं नीचे कमेन्ट सब्सक्रिपशन सबसे पहले कर लें ! जिससे बाद के सारे कमेन्ट आपके ईमेल में पहुंचे ! (जैसा आप दूसरों के ब्लॉग में टीपने के बाद करते होंगे?)
२- या तो सबसे अच्छा यह होगा कि ब्लॉग सेटिंग के कमेन्ट सेक्शन में जाकर कमेन्ट डिलीवरी ओप्शन में अपना ई-मेल पता चिपका दें ...जिससे आपके ब्लॉग में आने वाली सभी टीपों का बैकअप भी बनता रहेगा !!
आप पद में प्राइमरी के मास्टर होंगे मगर ब्लॉगिंग में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लग रहे हैं। प्राइमरी के विद्यार्थी तो हम हैं जो आपका बताया कमेंट डिलीवरी ओप्सन ढूंढते रह गये:(
Deleteपहले अपने ब्लॉग की सेटिंग में जाइए फिर पोस्ट्स एंड कमेंट्स में जाकर मोबाइल और ई-मेल में जाइए और उसके बाद उसमे ओप्शन दिखाई पड़ेगा Comment Notification Email उसमे प्यार से अपना ई-मेल चिपका दीजिए !!!
Deleteबस्स आप भी प्रोफ़ेसर हुए जी !
:)
अब हो गया गुरू जी। मोबाइल और ई-मेल वाला पहिले ही न बताना था!..आभार।
Deleteखूब पतंगबाजी हुयी है ..बढ़िया ..
ReplyDelete:)आभार।
Deleteबुझाला बसंत चोरी दुबके इन्ही पतंगवां क डोर पकडे आवत बा ......सावधान होई जा संत लोग!
ReplyDeleteबंसतवा, पतंगवा क डोर पकड़े आयल, नाव में बैठ के गंगा मैया क उजा-पूजा करत रहल, तब ले चुनाव में फंस गयल..भहराय के डूब न जाय:(
Deleteईर कहीं चला पतंग उडाई,
ReplyDeleteबीर कहें चला पतंग उडाई
फत्ते कहींन चला पतंग उडाई..
हम कहा सब उड़ाइहें पतंग त लूटी के?? लागल रहा देवेंदर भाई चहुन्चक!!
हा..हा..हा..
Deleteढेर क लूट लेहला अब करबा का ?
आवा राजा चला उड़ाई पतंग:)
आवा राजा कहके जिन्होंने पतंग उड़ाने का निमंत्रण दिया उनका फोटो नहीं लगाए आप ,कविता के पोर पोर से उनकी अभ्यार्थना झलक रही थी ! पर टिप्पणीकारों की टिप्पणियों से भी इस बात का अहसास होता है कि इन सबको यहाँ पर उनके शब्द नहीं चित्र चाहिये मित्र :)
ReplyDeleteहा..हा..हा..। वे पक्के बनारसी हैं। सुबह तीन बजे गंगा स्नान करने वाले और महांमृत्युंजय(बाबा विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर) पर एक लोटा जल चढ़ाकर लौटने वाले। मैं जब तक पहुँचा वे एक कटोरा भांग छानकर टुन्न पड़े थे। सीढ़ी चढ़कर छत पर आने की स्थिति में भी नहीं थे। मैं तो उनके बच्चों के साथ ही पतंगबाजी का मजा ले पाया। लगाता हूँ उनका चित्र भी।
Deletewah gurudev........ chha gaye aap to:)))
ReplyDeleteवाह। मजेदार।
ReplyDeleteचित्रों में छतें और कविता में पतंगे --छा गई भाई . :)
ReplyDeleteक्या बात है देव बाबु एक ही पोस्ट में बनारस के नज़ारे, कनकव्वों के मज़े और भंग की मस्ती........बढ़िया है जी|
ReplyDeleteपतंग तो अंतिम चित्र में दिखी, रजाई ओढ़े! :-)
ReplyDeleteबधाई है अब तक पतंग उड़ाने में मजा आ रहा है.पतंग उड़ा लिए मगर खुद भंग का आनंद लिए कि नहीं ?
ReplyDeleteए हो पांडे जी ! झूठी मत बोला हो ..तुहूँ त पियले रहा भंगिया ....तबहीं न पतंगिया कटवाय दिहला ..
ReplyDeleteअब आज से बनारसिये बोलिया मं लिखिह हो ...कविता मं मजा आगइल.....
हा हा हा..। काशिका बोली की मिठास ही ऐसी है। प्रयास करूंगा इसमे और लिखने का। ..आभार।
DeleteHo hi Kashi ka Funda,
ReplyDeleteudawa Guddi, Kha Ke Dhunda,
Soch main padal ho Ghate ka Panda,
Murgi Pahle ki, Pahle Anda.
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Kanni Chor Bhayal How Guddi,
Anna Sadhat Hauwn Kanna,