मेरे हाथ में श्री आनंद परमानंद जी की पुस्तक है..सड़क पर जिन्दगी। इस पुस्तक में 101 नायाब हिंदी गज़लें हैं। पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा...गद्य सी अपठित हुई हैं छंद जैसी लड़कियाँ। इस पर एक दो कमेंट आलोचना के भी आए। एक दिन परमानंद आनंद जी को अपने घर बुलाउंगा और उन्हीं से प्रतिक्रिया पूछ कर लिखूँगा। उनकी एक गज़ल यहाँ भी लिख चुका हूँ। आज इस पुस्तक की पहली गज़ल पढ़ाता हूँ....
सड़क पर जिंदगी है इस जगह कोई न बंधन है।
यहां छोटा-बड़ा हर आदमी, जनता है या जन है।
अवन्ती, कांची, काशी, अयोध्या और यह मथुरा,
सड़क के पांवतर उज्जैन है, अजमेर, मधुवन है।
भले हों व्यास, तुलसी दास, ये रविदास वो कबिरा,
जिसे दुनियाँ पढ़ा करती है, सड़कों का ही चिंतन है।
सड़क की धूल जब उड़ती है, तो आकाश छूती है,
सड़क की सोच ऊँची है, सड़क का एक दर्शन है।
ये बेघर और ये मजदूर, झुग्गी-झोपड़ी वाले,
समझते हैं सड़क इनका ही मालिक और मलकिन है।
ग़रीबी किस जगह जाती अगर सड़कें नहीं होतीं,
ग़रीबों का यहीं संसार है, घर-द्वार आंगन है।
ये सारा विश्व सोता है, मगर सड़कें नहीं सोतीं,
ये सबको जोहती हैं, जागतीं इनका ये जीवन है।
सड़क को छोड़ने वाला कभी घर तक नहीं पहुँचा,
ये घर तक भेजतीं सबको, यही इनका बड़प्पन है।
मेरी कविता यही सड़कें हैं, इनको रोज पढ़ता हूँ,
सड़क तुमको नमन् मेरा, तेरा सौ बार वन्दन है।
............................
बहुत सुन्दर तीसरा शेर सबसे अच्छा लगा।
ReplyDeleteसड़क को छोड़ने वाला कभी घर तक नहीं पहुँचा,
ReplyDeleteये घर तक भेजतीं सबको, यही इनका बड़प्पन है।
बहुत सुंदर गज़ल ....
सड़कों के महात्म्य के बारे में पहली बार पढ़ा !प्रशंसनीय रचना !
ReplyDeleteपहली ही रचना बढिया है
ReplyDeleteजयकारा यह सड़क का, तड़क भड़क शुभ शान ।
ReplyDeleteमस्त मस्त सब शेर हैं, सड़कें जान जहान ।
सड़कें जान जहान, गली पगडण्डी पाले ।
पा ले जीवन लक्ष्य, उतरता जो नहिं *खाले ।
खा ले सड़क प्रसाद, धूल फांके सौ बारा ।
देता रविकर दाद, करूँ शायर जयकारा ।।
*नीचे
बहुत बढ़िया गज़ल..हर शेर लाजवाब...
ReplyDeleteसादर
अनु
भले हों व्यास ...चिंतन है.
ReplyDeleteबहुत कमाल की पंक्तियाँ.
वाह, हमारी भी रचनायें सड़क जैसी हो जायें, सबको चलने का आधार दें।
ReplyDeleteइस नायाब रचना को पढवाने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteइस समय तो बनारस की सड़कों से ही दिमाग भन्नाया हुआ है
ReplyDeleteहा हा हा...बड़ी खरी बात कही आपने। सड़क दर्शन फेल हो गया।:)
Deleteनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDelete---
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गंभीर गज़ल.. गंभीर चिंतन.. गज़ब का प्रतीक!!
ReplyDeleteमगर ये "हिन्दी गज़ल" क्या होती है!!
दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी या गोपालदास नीरज या सूर्यभानु गुप्त की गज़लें, बस गज़लें हैं.. क्या हिन्दी क्या उर्दू!!
जैसे यह गज़ल.. लाजवाब!!
वाकई बढ़िया रचना धूल वन्दना पर ...
ReplyDeleteआभार पढवाने के लिए !
ReplyDeleteसड़क की धूल जब उड़ती है ,तो आकाश छूती है ,
सड़क की सोच ऊंची है ,सड़क का एक दर्शन है .
गरीबी किस जगह जाती ,अगर सड़कें नहीं होती ,
गरीबी का यही संसार है ,घर द्वार आँगन है .
सड़क को छोड़ने वाला ,कभी घर तक नहीं पहुँचा ,
ये घर तक भेजतीं सबको ,यही इनका बड़प्पन है .
श्री आनंद परमानंद जी .
ram ram bhaihttp://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2012/10/blog-post_23.html ब्लॉग पोस्ट बेचैन आत्मा पर एक टिपण्णी : पांडे जी ,हिन्दुस्तान का आवाम हैं सड़कें ,हकीकत हैं यही सड़कें ,अगर सड़कें नहीं होतीं , तो संसद ख़ाक हो जाती .
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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बेहतरीन अभिव्यक्ति, बहुत खूब .....आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल है...
ReplyDeleteहाँ, आपका नया ब्लॉग टेम्पलेट पता नहीं क्यों मेरे कम्प्यूटर पर आधा-अधूरा दीखता है :(
अच्छी हैं गजल। खूब!
ReplyDeleteऐसी सुन्दर रचनाओं से अनभिज्ञ रहना किसी भी साहित्यप्रेमी की हानि है । यह संग्रह तो पढना ही होगा ।
ReplyDeleteदुखद समाचार
ReplyDeleteमेरे पिताजी श्री आनंद परमानंद जी का निधन 29 April 2021 को कोरोना से हो गया।
आप सभी का उनके गज़लों को दिए प्यार के लिए धन्यवाद।
दुखद समाचार
ReplyDeleteमेरे पिताजी श्री आनंद परमानंद जी का निधन 29 April 2021 को कोरोना से हो गया।
आप सभी का उनके गज़लों को दिए प्यार के लिए धन्यवाद।