16.7.15

प्रेम

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

माँ की ममता
पाई हमने
पिता का प्यार मिला
बहन-भाइयों
ने भी जमकर
प्यार दुलार किया
जिस मटके में
प्यार धरा था
मटका फूट गया
जीवन की आपाधापी में
दिल ही टूट गया
अवगुन चित न धरो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

रीत गया घट
सूख गया मन
बेचैनी छाई
प्रीत किया पर
मीत न पाया
सब थे हरजाई
दिल में प्यार भरो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

सुबह जहाँ से
चले शाम को
वहीं लौट आना
रात अंधेरी
हुई सो गए
फिर उठकर चलना
बेड़ा पार करो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

फूल बन गईं
कलियाँ सारी
तुमने प्यार किया
सूखी धरती
हरी-भरी है
तुमने प्यार किया
सबके कष्ट हरो

प्रभुजीsss
हमसे प्रेम करो।
.........................

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-07-2015) को
    "एक पोस्ट का विश्लेशण और कुछ नियमित लिंक" {चर्चा अंक - 2039}
    (चर्चा अंक- 2039) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. प्रभु जी कहते हैं मैं तो तुमसे प्रेम के सिवा कुछ और कर ही नहीं सकता मैं मजबूर हूँ..इस मामले में..अब तुमको देखना है कि मुझसे प्रेम करते हो या..

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    1. हृदय प्रेम से भरा हो तो इंसान क्यों कंजूसी करे!

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. मेरी अगली पोस्ट जो एक लम्बे अंतराल के बाद लिखने जा रहा हूँ, उसका विषय भी यही है. अहिंसा के पाठ से आवश्यक प्रेम का पाठ है. जब हम जीव से प्रेम करेंगे तभी उसकी हत्या करने का भाव मन से भाग जाएगा. आपकी रचना हमेशा की तरह सुन्दर है. फेसबुक पर पढ भी रहा था इसे!

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