सुबह उठा तो देखा..
मच्छरदानी के भीतर
एक मच्छर!
मेरा खून पीकर मोटाया हुआ,
करिया लाल
मारने के लिए हाथ उठाया तो
ठहर गया
रात भर का साफ़ हाथ
सुबह
अपने ही खून से गन्दा हो?
यह अच्छी बात नहीं।
सोचा, उड़ा दूँ!
मगर वो खून पीकर
इतना भारी हो चुका था क़ि
गिरकर
बिस्तर पर बैठ गया!
मैं जैसे चाहूँ वैसे मारूं
धीरे-धीरे
मुझे उस पर दया आने लगी!
आखिर
इसके रगों में अपना ही खून था!!!
मैंने उसे
हौले से मुठ्ठी में बंद किया और
बाहर उड़ा दिया।
इस तरह
वह लालची अतंकवादी
और मैं
सहिष्णु भारतीय
बना रहा।
..........
वाह
ReplyDeleteपहले फेसबुक पर पढ़ा था :)
ReplyDeleteगज़ब रचना ...
ReplyDeleteकितना कुछ छुपाये हुए ... ये रचना बहु-आयामी ...
वाह!!!
ReplyDeleteऐसे ही तो कमज़ोर पड़ जाता है इंसान- ठीक लिखा है.
ReplyDeleteजबरदस्त कटाक्ष है बहुत गहराई लिये।
ReplyDelete
ReplyDeleteइस तरह
वह लालची अतंकवादी
और मैं
सहिष्णु भारतीय
बना रहा।
वाह!!!
बहुत ही सटीक....
खून का रिश्ता बहुत ही अच्छा निभाया....
अद्भुत कटाक्ष...