17.12.18

लालची आतंकवादी और सहिष्णु भारतीय

सुबह उठा तो देखा.. 
मच्छरदानी के भीतर 
एक मच्छर! 
मेरा खून पीकर मोटाया हुआ, 
करिया लाल

मारने के लिए हाथ उठाया तो 
ठहर गया
रात भर का साफ़ हाथ 
सुबह 
अपने ही खून से गन्दा हो?
यह अच्छी बात नहीं। 

सोचा, उड़ा दूँ!
मगर वो खून पीकर 
इतना भारी हो चुका था क़ि 
गिरकर 
बिस्तर पर बैठ गया! 
मैं जैसे चाहूँ वैसे मारूं 
धीरे-धीरे 
मुझे उस पर दया आने लगी! 
आखिर 
इसके रगों में अपना ही खून था!!! 

मैंने उसे 
हौले से मुठ्ठी में बंद किया और 
बाहर उड़ा दिया। 

इस तरह 
वह लालची अतंकवादी 
और मैं 
सहिष्णु भारतीय 
बना रहा।
..........

7 comments:

  1. पहले फेसबुक पर पढ़ा था :)

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  2. गज़ब रचना ...
    कितना कुछ छुपाये हुए ... ये रचना बहु-आयामी ...

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  3. ऐसे ही तो कमज़ोर पड़ जाता है इंसान- ठीक लिखा है.

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  4. जबरदस्त कटाक्ष है बहुत गहराई लिये।

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  5. इस तरह
    वह लालची अतंकवादी
    और मैं
    सहिष्णु भारतीय
    बना रहा।
    वाह!!!
    बहुत ही सटीक....
    खून का रिश्ता बहुत ही अच्छा निभाया....
    अद्भुत कटाक्ष...

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