एक दिन ऐसा हुआ
गड़रिया और भेड़ों के झुण्ड को देख
मेरा मन भी
भेड़ बनने को हुआ!
कूद गया लोहे के घर से
झुण्ड में शामिल हो
भेड़ बन गया
एक बूढ़े भेड़ ने
मेरी यह हरकत देख ली!
धीरे से कान में पूछा..
उस झुण्ड से, इस झुण्ड में, क्यों आये हो?
पहले तो सकपकाया
फिर सम्भल कर बोला..
मुझे तुम्हारा नेता, अपने नेता से, अच्छा लगा।
बूढ़े ने हँसकर कहा..
वो तो ठीक है
मगर यहाँ सभी
एक ही विचारधारा के हैं
इसलिए
झुण्ड में हैं
तुमको परेशानी होगी
मैंने सुना है
मनुष्यों का चित्त बड़ा चंचल होता है।
मैंने कहा..
वहाँ भी खतरा बढ़ गया है
तुम लोग
हमेशा झुण्ड में चलते हो
शायद यहाँ
सुकून हो।
एक दिन
मैंने महसूस किया
एक भेड़
जो गड़रिये से कुछ शिकायत कर रहा था
गुम था!
मैंने बूढ़े को
प्रश्नवाचक निगाहों से देखा!
बूढ़े भेड़ के मुखड़े पर
एक कुटिल मुस्कान थी।
............
वाह!! कमाल कविता!!
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद।
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