पिछली पोस्ट एक शाम गंगा के नाम में आपने देखा था कि गंगा जी बढ़ रही हैं। मैने लिखा था कि अब एक घाट से दूसरे घाट की ओर जाना संभव नहीं। अब शायद मैं आपको गंगा की तश्वीरें न दिखा पाऊँ। मन नहीं माना तो आज शाम फिर जा पहुँचा गंगा जी। चाहे जब जाइये, चाहे जितनी बार जाइये यहाँ के घाट आपको हमेशा ताज़गी से भर देते हैं। हर बार लगता है कि आपने कुछ नया देखा, कुछ नया समझा, कुछ नई ताजगी का अहसास किया। गंगा में बाढ़ आई हो या दुनियाँ भर की गंदगी समाई हो यहाँ के रहने वाले गंगा जी नहाना नहीं छोड़ते। गंगा जी बढ़ चुकी हैं। घाट किनारे से यहाँ आना संभव नहीं था। मैं तुलसी घाट के ऊपर खड़ा हूँ। शाम के छः बज चुके हैं। यहीं से दिखाता हूँ आपको गंगा जी की तस्वीरें....
(1) कुछ किनारे ही नहा रहे हैं, कुछ तैर रहे हैं। दूर एक किशोर गंगा में छलांग लगा रहा है।
(2) दूसरे घाट में जाने के लिए कूद-फांद करता हुआ लड़का।
(3)शाम के समय बादलों के संग गंगा के बदलते रंग
(4)पर्यटकों का नाव में घूमना कम हुआ है लेकिन अभी बंद नहीं हुआ है।
(5) घाटों पर हलचल बंद है । गंगा में नाव भी कम है लेकिन गगन में परिंदे खूब उड़ रहे हैं।
(6)मैं जैन घाट के ऊपर खड़ा हूँ। यहाँ मंदिर की दीवारों में जम गया है एक पीपल।
(7) अंधेरा छा रहा है। मंदिर के शिखर ऐसे दिख रहे हैं।
(8) सीढ़ियाँ उतर कर घाट तक गया। यहाँ से गंगा के घाट ऐसे दिख रहे हैं। दूर बत्तियाँ जलनी शुरू हो चुकी है।
नोटः सभी तस्वीरें आज शाम की हैं।
बनारस की सुरमई शाम ,गंगा के नाम , खुद देखा बनारस आपकी नजर से .
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ सैर आभार
ReplyDeleteगंगा के विभिन्न मूड - बढ़िया रहे !
ReplyDeleteमनभावन दृश्य ....
ReplyDeleteयानि गंगा मैया उफान पर है .
ReplyDeleteबढ़िया है . हम यहाँ घूमने के लिए मॉल्स में जाते हैं , आप गंगा किनारे . :)
धन्य हैं आप! आभार!
ReplyDeleteशाम , कई बार सुरमई होके कसक की अनुभूति कराने लगती है ! एक फ़िल्मी दृश्य याद आ गया , जहां जाय मुखर्जी , आशा पारिख से बिछड़ने वाला है , वो शाम भी सुरमई थी ! उस वक़्त गीत के बोल कुछ यूं थे ...
ReplyDeleteऐसे ही कभी जब शाम ढले तो याद हमें भी कर लेना
आँचल में सजा लेना कलियाँ पलकों में सितारे भर लेना
बड़े फोकस वाले सभी चित्र आकर्षक हैं.चित्र नंबर ६ में उड़ते हुए परिंदे को देखकर लगता है कि घर लौटने की खुशी कितनी तीव्र होती है !
ReplyDeleteजय गंगे, हर हर गंगे|
ReplyDeleteजल का रेला बहे जा रहा,
ReplyDeleteहर हर गंगे कहे जा रहा।
संस्कारी बनारसी (और भारतीय) इस नदी को गंगाजी ही कहता/देखता है.
ReplyDeleteबहुत चित्र है
ReplyDelete--- शायद आपको पसंद आये ---
1. ब्लॉगर में LinkWithin का Advance Installation
2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
बहुत खूब! सुन्दर फ़ोटो! आभार इनको दिखाने का!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
ReplyDeleteवाह! :)
ReplyDeleteसुंदर मनभावन दृश्य !
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !
साभार !
देवेन्द्र भाई! गंगा माई को जितने रंग में आपने दिखाया है उतने रंग में मुझे मेरा बचपन वापस मिला है.. और साथ ही टीस भी कि पटना से यह दृश्य गायब हो गए हैं.. नहीं तो यह सब हमारे लिए महज फोटू देखने वाली नहीं था!!
ReplyDeleteसुंदर चित्र हैं।
ReplyDeleteका हो पाण्डे बाबा! राम-राम!
ReplyDeleteगंगा जी के दर्सन से मन परसन्न हो गइल बा। चित्र 3 आ 4 एकदम नियमन बा।
मनोरम दृश्य !
ReplyDeleteआभार !
गंगा जी के किनारे खूबसूरत शाम ... सभी चित्र मनोरम हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteकल से ही मैं भी गुनगुना रहा था चल मन गंगा जमुना तीर ..और आज आपने चरितार्थ कर दिया
ReplyDeleteNice pics....
ReplyDeleteमनमोहक तस्वीरें :)
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरें....आपने घर बैठे पूरा बनारस घुमा दिया :-)
ReplyDeleteउमड़ता जल देख ख़ुशी हुई :) कम जल देख कर दुःख सा होता है !
ReplyDeleteन सूखे नदी ना बाढ़ ही आये
Deleteऐसा हो तो क्या मजा आये।:)
इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें .
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
जय गंगा मईया..
ReplyDeletewaaaah...sundar tasveeren...aapke blog par ki sabhi tasveeren mujhe hamesha bahut achhi lagti hain..
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