यह तेज सिंह का किला है। मैने आपको 'मई' में यहाँ की तस्वीरें दिखाई थी। अब गंगा जी बहुत बढ़ी हुई हैं। एक घाट से दूसरे घाट पर जाने का मार्ग पूरी तरह से बंद है। आज शाम गंगा जी गया तो इस किले पर चढ़ना चाहा लेकिन यहाँ चढ़ने की अनुमति नहीं है। कुछ नवयुवक कूद-फांद कर ही यहाँ चढ़ पा रहे थे। पास के जैन मंदिर से यहाँ का नजारा लेता रहा। यह परिंदों का स्थाई ठिकाना है। आहट पाकर बीच-बीच में उड़ान भरते हैं और पूरा एक चक्कर लगा कर फिर यहीं बैठ जाते हैं।
लीजिए, उड़ना शुरू किया। दूर गये और अब वापस आ रहे हैं।
मेरे पास से गुजर रहे हैं
फिर वहीं बैठेंगे जाकर।
लीजिए, बैठ गये चुपचाप।
यह अकेला यहाँ क्या कर रहा है ! नदी, नाव से कोई उम्मीद तो नहीं ?
या फिर जाड़े के इन दिनो की याद कर रहा हो !
नोटः फोटो में क्लिक करके देखेंगे तो तस्वीरें अच्छे से दिखेंगी। कुछ अंधेरा-अंधेरा माहौल था। :)
बहुत सुन्दर...शांत और सुरम्य...
ReplyDeleteअनु
आज की शाम - परिंदों के नाम !
ReplyDeleteखूबसूरत नज़ारा -- बढ़िया काम .
मेरे डेस्कटाप पर तो नीचे के नाव का चित्र ही दिख रहा .....
ReplyDeleteदेवेन्द्र भाई.. कवि, कहानीकार, विचारक,टिप्पणीकार और (पहले से ही) अब छायाचित्रकार!!
ReplyDeleteआपका हर रूप प्रभावित करता है.. परिंदों के माध्यम से मेरा जीवन चित्र खींचा है आपने!! आभार!!
अब तो लगता है
ReplyDeleteपरिंदा बन उड़ जाऊँ मैं,
कितनी बंधी-बंधी दुनिया है मेरी ...?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, सादर.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
सुन्दर है सभी चित्र शाम को कैमरे में फ्लैश का इस्तेमाल करें तो इतना अँधेरा नहीं आएगा :-)
ReplyDeleteअति सुन्दर ||
ReplyDeleteबाढ़ और बरसात में तो पशु-पक्षियों की तो जान सांसत में आ ही जाती है. धन्यवाद. लगे हाथ आपकी पिछली पोस्ट भी देख ली.
ReplyDeleteआ...हा...हा....समुन्द्र की ठंडी ठंडी हवा इस तपती गर्मी में राहत दे गई .....!!
ReplyDeleteबेचैन आत्मा तृप्त हुई ....:))
हा हा हा...गंगा समुन्द्र हुई!
Deleteमहाप्रवाह है यह..
ReplyDeleteसुंदर छायाचित्र
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