वे पतंजलि आश्रम हरिद्वार से अपने घर आरा लौट रहे थे। लगभग मेरी ही उम्र के थे लेकिन बीमारी ने उन्हें जीर्ण शीर्ण बना दिया था। पेशाब की थैली में कैंसर था। कमर में दर्द था, अधिक देर तक बैठ नहीं पाते थे। बात करते करते बताने लगे कि तीन महीने पहले हम भी आपकी तरह ही स्वस्थ थे! शुरू शुरू में पेशाब में जलन होती थी लेकिन ध्यान नहीं दिया। दूध पीते, मंठा खाते लेकिन आराम नहीं हुआ। जांच कराए तो कैंसर निकला। दवाई खा रहे हैं। बेटा नहीं माना तो हरिद्वार चले गए। एक माह की दवाई लिए हैं। फायदा होगा तो फिर जाएंगे। पतंजलि आश्रम में तीन दिन रहना, खाना बिल्कुल मुफ्त। खाना बढ़िया मिलता है। सिर्फ दवाई का पैसा देना पड़ा। शुरू में लापरवाही किए वरना तबियत इतनी जल्दी इतनी खराब नहीं होती।
मैंने उन्हें अपनी एक कविता सुनाई। जिसका आशय भाव यह था कि यमराज एक झटके में किसी को नहीं ले जाता। आने से पहले कई बार चेतावनी देता है। पहले बालों की कालिमा, आंखों की रोशनी, दांतों की शक्ति छीन लेता है फिर भी न संभले तभी लेे जाता है। हम अक्सर लापरवाही करते हैं।
वे उठ कर बैठ गए। सही कह रहे हैं। यही बात हमारे आरा जिले के ओझा जी गा कर सुनाते हैं..
अंखिया के जोत नरमाइल हो, पाकल कपरा के बार
जिंदगी के जेल से बुझाता अब, बेल हाइहें हमार।
मैंने उन्हें आश्वासन दिया..दवाई करेंगे तो ठीक हो जाएंगे।
ओझा जी गायक हैं। किसी का लिखा गाते होंगे। जिसने भी लिखा उनको नमन। उन्होंने भी वही बात कही जो मैं सुना रहा था।
सफ़र में अनजान व्यक्तियों से दिल के तार कभी यूं भी जुड़ जाते हैं।
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