कभी
बीनता था झाँवाँ
रेल पटरियों के किनारे
सजाता था पहाड़
मनाता था
कृष्ण जन्माष्टमी
आज
बैठा हूँ ट्रेन में
देख रहा हूँ
गिट्टी गिट्टी
रेल की पटरियाँ
न बचपन
न साथी,
न भाप के ईंजन
न कोयला,
न झाँवाँ
न पहले जैसा मन।
दौड़ती भागती
बिछी बिछाई पटरी पर
चल रही है
अपनी गाड़ी।
हे कृष्ण!
इस बार आना तो
आने से पहले
दे जाना
थोड़े बुरादे
थोड़े इरादे
थोड़े खिलौने
छोटा सा पहाड़
और...
थोड़ा सा बचपन।
....
कृष्ण पांच हजार वर्ष पहले जन्मे थे पर हर वर्ष पुनः शिशु बन जाते हैं, फिर उनके भक्तों को बचपन जीने से भला कौन रोक सकता है..
ReplyDeleteभक्त नहीं बन पाते न।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-08-2018) को "कुछ दिन मुझको जी लेने दे" (चर्चा अंक-3078) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद।
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