चांद
दिन में
सूरज से
सूरज से
कोई प्रश्न नहीं करता
जानता है
सही वह
जिसके पास है
सत्ता।
सूरज
रात में
चांद पर रोशनी लुटा कर
मौन हो जाता है
जानता है
सही वह
जिसके पास है
सत्ता।
आम आदमी
चिड़ियों की तरह
चहचहाता है..
वो देखो
चांद डूबा,
वो देखो
सूर्य निकला!
वो देखो
सूर्य डूबा,
वो देखो
चांद निकला!
......
बढ़िया। अब शायद कुछ बदलाव आयेगा पाँच साल चाँद दिखेगा सूरज गायब हो जायेगा ।
ReplyDeleteसभी बदलाव सुखद नहीं होते..
ReplyDeleteआम आदमी चिड़ियों की तरह फड़फड़ाता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सुंदर रचना
आम आदमी
ReplyDeleteचाँद और सूरज के पाटों में रखा
अनाज है
जिसे सत्ता के
भूख के हिसाब से
बेहिसाब
पीसा जाता है।
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बेहतरीन अभिव्यक्ति सर
सादर।
सुंदर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteजी बहुत उम्दा रचना ।
ReplyDeleteसही !!बैचेन आत्मा अकेली नहीं भीड़ है पूरी।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
सही कहा आम जनता ने यही हिसाब किताब का ठेका लिया है...सही गलत सब होके निकल जाते हैं...बस हिसाब किताब लगाते लगाते...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसच है सारी दुनिया तो चाँद आया -सूरज आया जानती है | उसके पीछे की राजनीति से उसका क्या लेना-देना ? सटीक हलकी -फुलकी सार्थक रचना |सादर
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