13.3.16

चौराहे का पान वाला

बड़ी-बड़ी किताबें लिखे हैं 
मगर बहुत भटके हुए हैं!
जो दायें गये
दायें के बारे में लिख पाये
बाएं गए
बाएं के बारे में लिख पाये!
चौराहे का पान वाला
बडबडाता
हंस कर पान में
चूना कम
कत्था अधिक लगाता
फिर पत्ते में चूना
सजाकर देता..
"तू अपने में जितना मन करे उतना लगा ल!"
(यह बनारसी व्यंग्य है, दिल्ली के व्यंग्यकार शायद न समझ पायें इसलिए लिखा ताकि प्रयास कर के समझ जांय)
दायें, बायें दोनों के अनुभव सुनता
मुँह में पान ठूंस
दायें के ज्ञान से बायें को गरियाता
बायें के ज्ञान से दायें को गरियाता
ज्ञानी जब तिलमिला जाता
पान थूक कुछ बोलना चाहता
चीख ही पड़ता
चौराहे का पान वाला-
इहाँ ज्ञान मत बाँटा
इहाँ सब ज्ञानी हौ!
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