31.12.21

सुबह की बातें-9


रजाई से 

सर बाहर निकाल कर

दोनों कानों को  

बन्द खिड़की के उस पार फेंको!


कुछ सुनाई दिया? 

बारिश!

नहीं sss 

ओस की बूंदें हैं 

थाम नहीं पा रहे पत्ते

टप टप टपक रहीं हैं 

धरती पर। 


मौन 

कभी, कहीं नहीं होता

भोर में तो और भी शोर होता है!

आंखों से 

न दिखाई देने वाले जीव

कलियां, फूल, पत्ते

सभी करते हैं संघर्ष

जहां संघर्ष है

वहीं शोर है

ओस की पहली बूंद से

सूर्य की पहली किरण तक

जो मौन है

उसमे भी शोर है

सब

दिखाई नहीं देता 

सब 

सुनाई नहीं देता।


यह जो मौन का शोर है न?

बड़ा तिलस्मी है

सुनो!

पहली दफा

मधुर संगीत सुनाई देता है

आगे

तुम्हारी किस्मत!

...............

सुबह की बातें-8


नाच मेरी बुलबुल! तुझे पैसा मिलेगा।


इत्ते जाड़े/कोहरे में क्यों नाचें? ये चावल के दाने बहुत हैं।


आज रात को नया साल आने वाला है। खुशी मनाओ।


हाय राम! मतलब बम फोड़ोगे? शोर मचाओगे? मेरे घोसले में अभी अंडों से निकले दो बच्चे हैं।


नव वर्ष में हम बम नहीं फोड़ते हैं पगली! चिंता मत कर। मगर ये बता तुम लोगों के जीवन में नया साल कभी नहीं आता?


आता है न! साल में दो बार आता है। जब जब फसल कटती है, नया साल आता है। खूब दाने मिलते हैं खेतों में। तुम्हारी कृपा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। मगर रुको! मुझे दो पायों पर कभी भरोसा नहीं होता। बिना शोर किए ये कोई खुशी मना ही नहीं सकते। सच सच बोलो! क्या-क्या करोगे?


मुर्गा खाएंगे, शराब पीएंगे, नाचेंगे, गाएंगे, केक काटेंगे और सुबह से शाम तक सबको नए साल की शुभकामना देंगे और क्या!


बस बस बस...बिचारे मुर्गे! हमको तो नहीं खाओगे?


तुम्हारे जिस्म में मांस ही कितना है! कभी खाया तो नहीं, एक दिन चखूं क्या?


राक्षस कहीं के! तुम लोग अपनी खुशी के लिए कुछ भी कर सकते हो। तुम्हारी प्रार्थनाएं, तुम्हारी शुभकामनाएं, तुम्हारे दान/पुण्य, पूजा-पाठ, दुआ/सलाम सब एक ढोंग है। बहुरूपिए और दोहरे चरित्र वाले हो। तुम्हें जिसने अच्छा समझा, धोखा खाया। 


अरे चुप! चुप! इतना गुस्सा मत कर। हम जिसे प्यार करते हैं उसे थोड़ी न खाते हैं। नए साल का मजा ले।

बोल! हैप्पी न्यू ईयर। 


अब ज्यादा मुंह न खुलवाओ। तुम सब मतलबी और स्वार्थी हो। प्रत्येक प्राणी को सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए पालते हो। किसी को मीठी बोली के लिए, किसी को उसके मांस के लिए तो किसी को उसके दूध के लिए।  कल एक गौरैया कित्ता सच कह रही थी....


आदमी से रहना, साथी जरा संभल के। ये जिसको प्यार करते, उसपे इनके पहरे। हमको सिखा रहे हैं, गोपी कृष्ण कहना। जानते नहीं जो प्रेम के ककहरे।


और बुलबुल फुर्र से उड़ गई।


....................................

2.12.21

कथरी

पाठकों की मांग पर, कथरी का काशिका से हिंदी में अनुवाद...


कथरी-1

..............


कैसी तबियत है माँ?

कहारिन ठीक से आपकी सेवा कर रही है न?

क्यों गुस्सा हो?

पन्द्रह दिन बाद घर आये हैं, इसलिए?

क्या बताएँ माँ,

तुम्हारी बहू की तबियत खराब थी

और..

उस शनीचर को

छोटे बेटे के स्कूल में, वो क्या कहते हैं, पैरेंट्स मीटिंग था

तुम तो जानती हैं माँ

शहर की जिंदगी कितना हलकान करती है।


आपसे तो कई बार कहे,

चलो साथ!

वहीं रहो।

आपको तो पिताजी का प्यार घेरे रहता है

वो स्वर्ग जा चुके हैं

यहाँ, कब तक उनकी प्रतीक्षा करोगी?

जल्दी नहीं आएंगे।


क्या कह रही हो माँ?

इस कथरी से जाड़ा नहीं जाता?

दूसरा खरीद दें?

आपको मोतियाबिंद हुआ है, इसीलिए दिखाई नहीं देता

लो!

कह रही हो तो नई कथरी ओढ़ा दे रहे हैं!

(पलटकर, वही रजाई फिर ओढ़ा देता है!)


माँ!

रात को नींद आया?

क्या कह रही हो?

नई कथरी खूब गरमा रही थी!

खूब नींद आया!!!

ठीक ही है माँ,

जा रहे हैं,

सभी जरूरी सामान कोठरी में रख दिए हैं,

कहरनियाँ को समझा दिए हैं,

नौकरी से छुट्टी नहीं मिलती माँ,

जाना जरूरी है।

आपका विश्वास बना रहे,

कथरी तो

जब आएंगे, बदल देंगे

चरण स्पर्श।

...........


कथरी-2

...........


स्वर्ग में मजे उड़ाओ लेकिन सुनो भगवान

उलट-पुलट पुरानी कथरी ओढ़ाता है

तुम्हारा पुत्र विद्वान!

समझता है..

माँ को मोतियाबिंद हुआ है तो

गंध भी नहीं आएगी!

भोर में ही पूछता है बेईमान,

'नींद आया माँ?'


मन ही मन हँसी का फुहारा छूटता है,

मुँह से बस इतना ही निकलता है..

हाँ बेटा,

खूब नींद आया

नई कथरी बहुत गरमा रही थी

सुनकर, खुश हो जाता है पागल


हमको कर देगा कहरनियाँ के हवाले

अपने चला जाएगा 

शहर में कमाने

पत्नी को अपने

सर पर चढ़ाता है,

बच्चों को 

स्कूल में पढ़ाता है

पन्द्रह दिनों में यहॉं आता है तो

पुरानी कथरी उलट-पुलट ओढ़ाता है

इससे भला जाड़ा जाएगा?


नहीं खरीद पा रहे हो

एक नई रजाई

तो भाड़ में जाए

ऐसी कमाई।

.................

14.11.21

बाल दिवस

आज सन्डे न होता तो स्कूल जाने वाले बच्चे अपने बस्ते का भारी बोझ पटक कर गहरी सांस लेते तब गुरुजी उन्हें बता देते कि आज बाल दिवस है।

लोहे के घर में एक बच्चा पैर छू कर भीख मांग रहा है। न उसे पता है कि आज बाल दिवस है न उसे जिसने डाँट कर भगा दिया बच्चे को! 

पटरी-पटरी प्लास्टिक के टुकड़े बीन कर सीमेंट के खाली झोले में भरने वाले बच्चों को भी नहीं पता कि आज बाल दिवस है।

पानी की बोतल बेचने के लिए चलती ट्रेन से कूद कर उस पटरी पर खड़ी ट्रेन पर चढ़ने वाले बच्चे को भी नहीं पता।

मेले में जब चारों ओर दिए जल रहे थे दिए कुछ बच्चे बेच रहे होते हैं गुब्बारे! आज क्या वे मना पाएंगे बाल दिवस?

सुबह चाय की दुकान पर गिलास धो रहे बच्चे को तो पक्का नहीं पता होगा।

माँ के साथ महुए के पत्तों की गठरी सम्भाले रेल की पटरी पार करते बच्चों को भी नहीं पता।

और तो और मुझे ही कहाँ पता था? वो तो फेसबुक में पोस्ट दिखी तो याद आया कि आज बाल दिवस है!

अब याद आ गया तो ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी बच्चे अपना बचपन बच्चे की तरह ही जी पाएं।

..............

2.6.21

तीन तोते


बहुत दिनों बाद शहर घूम कर लौटे थे तीन तोते। सभी ने अपना-अपना हाल सुनाया। एक नए कहा....


मैं जिस घर की छत पर बैठा था, वहाँ एक पिंजड़ा देखा

जिसमें हमारा एक भाई कैद था।


मुझे देख, पिंजड़े की दीवारों में चोंच मारने और फड़फड़ाने लगा। मुझे लगा वह आजादी के लिए तड़प रहा है। मुझे दया आई, हाल पूछा तो जानते हो उसने क्या कहा? 


शेष दोनो तोते अचरज से पूछ बैठे...क्या कहा? क्या कहा?


वह बड़े शान से मनुष्यों की बोली बोलने लगा...


"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण!"


और? और क्या कहा?


उसे अपने ज्ञान का बड़ा घमंड था। कह रहा था...


सुने? हम मनुष्यों की बोली बोल सकते हैं....

"गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण।"


मैने पूछा...इसका क्या अर्थ हुआ? तो कहने लगा...


अर्थ तो मुझे भी नहीं मालूम लेकिन यह बड़े कमाल की बात है! मैं जब यह बोलता हूँ, घर का मालिक खुश हो कर मुझे हरे चने खिलाता है! मेरी बड़ी इज्जत करता है।


मैन पूछा...

तुम्हें पिंजड़े में कैद कर के रखा है, इसकी कोई तकलीफ नहीं है?


वह बोला..शुरू-शुरू में तकलीफ हुई थी लेकिन अब मजा आ रहा है। आजकल मैं कुछ नया सीख रहा हूँ। जब कोई घर में आता है जोर से बोलता हूँ..जय श्री राम! वह मुझे आँखें फाड़कर देखता है और धीरे से बोलता है.. जय श्री राम। मालिक और खुश होता है।


मैने गुस्से से पिजड़े का दरवाजा खोल दिया और बोला..

चल, भाग चल। वह नहीं माना। कहने लगा...अब मैं नहीं उड़ सकता। मुझमें अब श्रम करके खाने की शक्ति नहीं बची। तुम्हें भी आना है तो आओ, मालिक सब सिखा देगा। 


मैं डर के मारे उड़ कर भाग आया।


दूसरे ने अपना हाल सुनाया....


शहर में मैं जिस घर की छत पर बैठा था वहाँ भी एक पिंजड़ा था। उसमें एक मैना कैद थी। उसका भी यही हाल था। मैने कहा..उड़ चलो। यह तो कैद है।


उसने आश्चर्य से पूछा...कैद! कैद क्या होता है? जो मालिक कहे करते जाओ, खाते जाओ, गाते जाओ, इसी में आनन्द है।


मैं भी उड़ कर भाग आया।


तीसरा तोता बोला...


मैं एक घर में गया जहाँ एक कमरे में मनुष्यों के बहुत से बच्चे थे। एक आदमी कुछ बोलता, सभी बच्चे वही बोलते। जैसा तुम लोगों ने पिंजड़े के तोते और मैना की बात की वैसे ही वह आदमी, अपने बच्चों को कुछ रटा रहा था। 


मेरी समझ में यह नहीं आता कि क्यों मनुष्य सभी को पकड़ कर अपने जैसा बनाना चाहते हैं? सभी को स्वतंत्र होकर, अपने दिमाग से जीने/सोचने क्यों नहीं देते? भोजन के बदले पशु, पक्षी तो क्या, अपने बच्चों को भी, अपना गुलाम बनाना चाहते हैं? मुझे तो शक होता है... क्या धरती में, एक भी मनुष्य, मानसिक रूप से स्वतंत्र है?

 चित्र... Rashmi Ravija

1.6.21

तीन कुत्ते


खेल रहे थे, न सो रहे थे

एक घाट में तीन कुत्ते

आपस में अपना दुखड़ा रो रहे थे।


बीच से दाएं वाले ने कहा...

दूर-दूर तक कोई यात्री नहीं दिखता।

जो  दिख भी रहे हैं

मुँह में पट्टी बाँधे घूम रहे हैं।

ऐसा लगता है 

इन्होंने कुछ न खाने का प्रण ले लिया है!

खाएंगे नहीं तो खिलाएंगे क्या?

अपने तो मरेंगे ही

हमको भी भूखा मारेंगे।


अपनी बात समाप्त कर उसने लंबी जम्हाई ली और सोने का प्रयास करने लगा।


बीच से बाएँ वाले ने कहा...

मुझे तो ये उस बंदर की औलाद लगते हैं 

जो एक बार घाटों में घूम-घूम कर सबको समझा रहा था..

मीठा न बोल सको तो चुप रहो

बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो!


बीच वाला अपने साथियों पर गुर्राया...

तुम सब मूर्ख हो! 

भूख अच्छे अच्छों को मक्कार बना देती है।

तुम सब 

सूँघने की शक्ति खो कर

चोर/साधु, दुखी/सुखी, अपने/पराए में भेद कर पाना,

भूल चुके हो। 

भूख ने तुम्हें

उन गुणों से ही वंचित कर दिया है

जिनके कारण

मनुष्य 

अपने भाई से अधिक 

हम पर विश्वास करता है।


मनुष्य जाति पर कोई बड़ा संकट आया है

रोटी की तलाश में, 

जान जोखिम में डालकर, 

कल मैं 

श्मशान घाट तक गया था।

वहाँ का दृश्य देखकर

मेरे आंखों में आँसू आ गए

जिधर देखो उधर लाशें जल रही थीं

अपनों को जलाने के लिए

ये दो पाए, लाइन लगाए खड़े थे

वहीं मैने सुना

जो नहीं जला पाए वे

अपनो के शव

नदी किनारे मिट्टी में गाड़ कर या 

गङ्गा में बहाकर चले गए।


मनुष्य अभी दुखी हैं

सभी प्राणियों की भलाई के लिए

मनुष्यों का प्रेम से रहना और सुखी होना आवश्यक है।

आओ!

मनुष्यों की भलाई के लिए

ईश्वर से प्रार्थना करें।


इनकी बातें सुनकर 

मेरे मन ने प्रश्न किया...

तुम्हारी मनुष्यता कब जागेगी?

क्या ये कुत्ते

भूख से मर जाएंगे?

................

30.5.21

तीन बकरियाँ



फसल कट चुकने के बाद

मालिक ने छोड़ दी

तीन बकरियाँ

खेत में

चरने के लिए


धूप में 

आगे-पीछे

देर तक चलते-चलते

न आया मुँह

किसी के

घास का एक तिनका


सबसे पीछे वाली ने

आगे चल रही दोनों बकरियों को 

उलाहना दिया..

मेरे हिस्से का भी खा लिया!

बीच वाली ने भी

स्वर में स्वर मिलाया..

मेरा भी!

आगे वाली ने माथा पीट लिया..

हाय!

जब बुरे दिन आते हैं

तो अपने भी

शक करने लगते हैं। 


अक्सर यही होता है

दूध

दुह लेने के बाद

छोड़े जाते हैं

बछड़े,

खेत काट लेने के बाद

छोड़ी जाती हैं

बकरियाँ।


अभाव में

एक दूसरे पर शक करते हुए

लड़ते/मरते रहते हैं

कमजोर प्राणी

समझ ही नहीं पाते

दूध 

कोई और दुह कर ले जाता है,

फसल

कोई और काट कर ले जाता है।

............

29.5.21

सेवानिवृत्ति के दिन

मॉर्निंग वॉक के समय लॉन में शर्मा जी मिल गए। घूम घाम कर लौटे थे और बेंच पर, मुँह लटकाकर  विश्राम कर रहे थे। मैने पूछा...मुँह क्यों लटकाए हैं शर्मा जी? आपके तो तीन-तीन बेटे हैं, क्या हुआ?

बड़ा लड़का बहुत दुःखी रहता है। जब देखो तब पैसे मांगता रहता है। 

अच्छा! दूसरा वाला?

वह भी दुखी रहता है लेकिन कभी किसी से कुछ नहीं मांगता। स्वाभिमानी है। जितना कमाता है, उतने में ही गुजारा करता है।

गनीमत है और तीसरा? वो तो कमाने के लिए अमेरिका गया था न?

हाँ, वह बहुत खुश है। बचपन से बहुत तेज था। हर सप्ताह वीकेंड पर पत्नी के साथ पार्टी करता है, नई-नई जगह घूमने जाता है और फेसबुक, इंस्टाग्राम में खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट करता है। 

तब तो खूब डॉलर भेजता होगा?

नहीं, कभी एक पैसा नहीं भेजा। मैने मांगा भी नहीं। कल  शाम ही तो उसका फोन आया था। पूछ रहा था, "पिताजी! आप रिटायर्ड हो जाएंगे तो ग्रेच्युटी, भविष्य निधि और सब मिलाकर कुल कितना मिल जाएगा? सोच रहा हूँ यहाँ एक मकान खरीद लूँ और आपको भी यहीं बुला लूँ। रिटायर्ड होने में अभी कितने दिन हैं?"

अरे!!!

कल बैंक गया था। मैनेजर कह रहा था, "आपने बेटे को अमेरिका पढ़ाने के लिए घर की जमानत पर जो एजूकेशन लोन लिया था, बढ़कर 50 लाख से ऊपर हो चुका है। कम से कम हर महीने ब्याज तो चुकाते रहिए। रिटायर्ड होने में अभी कितने दिन हैं?"

10.5.21

फेसबुक के आने से पहले स्वर्गीय हो जाने वाली माएँ।

कितनी अभागन हैं!

फेसबुक के आने से पहले स्वर्गीय हो जाने वाली माएँ।

नहीं देख पाईं

'मदर्स डे' वाली एक भी पोस्ट।


काश! फेसबुक के जमाने मे भी जिंदा होंतीं

तो देखतीं

सब कितना प्यार करते हैं अपनी माँ को!


कसम से

पोस्ट पढ़-पढ़ कर

रो देतीं

मन ही मन कहतीं

मैने बेकार ही तुमको ताना दिया..

"खाली अपनी पत्नी की सुनता है नालायक।"


बेटे का आँखें तरेरना,

गुस्से से हाथ जोड़ क्षमा माँगना/कहना...

"अब बस भी करो अम्मा, अब हमें सुख से जीने दो"

धमकी देना...

"नहीं मानोगी तो छोड़ आएंगे तुम्हें वृद्धाश्रम!"


फेसबुक में अपनी और अपने बेटे की प्यारी तस्वीरें देख,

खुश हो जातीं, भूल जातीं

सभी गहरे जख्म।


कैसे याद रख पातीं

पिता के साथ किए गए जहरीले संवाद...

"जिनगी में

का देहला तू हमका?

खाली अपने सुख की खातिर

पइदा कइला,

तू हमका!"


माँ!

तुम्हें तो बस

पुत्रों की मुस्कान से मतलब था

जल्दी चली गई तुम,

हमे छोड़कर।


एक सुख भी नहीं दे सके,

नहीं दिखा सके, मदर्स डे वाली

एक भी पोस्ट।

....

15.4.21

तोते

 मार्निंग वॉक में शाख से झूलते कई आजाद तोते दिखे।

मैंने कहा..

बोलो! जय श्री राम।

तोते इस शाख से उस शाख पर झूलते और मुझे देख कहते- 'टें' 'टें'।


मैं फिर बोला-

गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण।


तोते बोले- टें..टें।


अच्छा बोलो...जय भीम।

तोते बोले-टें..टें।


तभी मुझे जेएनयू की घटना का संस्मरण हो आया. मैंने सोचा अभी ये मेधावी छात्र होंगे।


मैंने कहा-बोलो! आजादी। छीन के लेंगे आजादी!!! भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह।


तोते इस बार गुस्से से चीखते हुए उड़ गए- टें.. टें..टें.. टें..

मुझे एक बात समझ में आ गई. तोते यदि वास्तव में आजाद हों तो बस अपनी ही जुबान बोलते हैं। जय श्री राम, जय भीम या आजादी-आजादी बोलने वाले तोते तो वे होते हैं जिन्हें पढ़ाया/रटाया जाता है।

..............

नींद से जगाने का अपराध

एक गाँव था। गाँव का मुखिया बड़ा जालिम था। रोज की तरह एक दिन मुर्गे ने बांग दी। बांग सुनकर एक कवि की नींद खुल गई। नींद खुली तो कवि ने लिखी कविता। कवि की कविता सुनकर पूरा गाँव नींद से जागने लगा। गाँव को जागता देखकर मुखिया की नींद उड़ गई। भोले भाले लोगों को नींद से जगाने के अपराध में गाँव मे पंचायत बुलाई गई। कवि, एक तो आदमी, ऊपर से समझदार! झट से पाला बदला। मुखिया की तारीफ में भक्ति के गीत गाए। मुर्गे ने अपना स्वभाव नहीं बदला, मारा गया।

आज भी, स्वभाव न बदलने के कारण, नींद से जगाने के अपराध में, मारे जाते हैं मुर्गे, सम्मानित होते हैं कवि।

.............

17.3.21

मालिक भेड़ बकरी का सदियों से कसाई है।

भेड़ों का मालिक अक्सर अपनी भेड़ों को लेकर उस कसाई के पास जाता जो बकरे काट रहे होते..देखा! इनका मालिक कितना निर्दयी है!!! घास-फूस के बदले अपने ही प्यारे-प्यारे पालतू जानवरों को काट कर बेच देता है। भेड़ें भीतर तक सहम जातीं..आप कितने अच्छे हैं! हम अभी उन मूर्ख बकरों को अपनी मित्रता सूची से डिलीट करते हैं जो इस कसाई को ही अपना मालिक समझते हैं।

बकरों का मालिक भी ठीक यही काम करता। वह भी अपने बकरों को भेड़ों के मालिक की झलक दिखलाता और कहता...देखा! इनका मालिक कितना निर्दयी है!!! घास-फूस के बदले अपने ही प्यारे-प्यारे पालतू जानवरों की खाल उधेड़ देता है। बकरे भीतर तक सहम जाते..आप कितने अच्छे हैं! हम अभी उन मूर्ख भेड़ों को अपनी मित्रता सूची से डिलीट करते हैं जो इस कसाई को ही अपना मालिक समझते हैं।

बड़े त्योहारों के पास आने तक भेड़ों की मित्रता सूची से बकरे और बकरों की मित्रता सूची से भेड़ गायब होने लगते। दोनो अपने-अपने खाली समय में एक दूसरे पर तंज कसते, एक दूसरे को धिक्कारते और अपने मालिक की शान में कसीदे पढ़ते।

बात एक देश के कुछ जानवरों तक सीमित हो तो कुछ गनीमत थी। बात लोकतंत्र के बड़े त्योहारों तक पहुँच गई। धीरे-धीरे यह रोग, राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय, चौपायों से दो पायों तक फैलता चला गया और दुनियाँ, जहन्नुम बन गई।

......................

8.2.21

शत्रुता

मैने मांगा, 

जाड़े की धूप

उसने दिया,

घना कोहरा!


मैने पूछा,

"ठंडी कब जाएगी?"

उसने कहा,

"थोड़ी बर्फवारी होने दो।"


मैने पूछा,

"बसंत कहाँ है?"

उसने कहा,

"रुको! एक ग्लेशियर टूट जाने दो!"


मैने कहा,

"जाओ! 

तुमसे बात नहीं करते।"

उसने कहा,

"मित्र! 

तुमसे ही सीखी है यह 

शत्रुता!"

.........

गुलाब


क्या तुम्हें याद है?

पहली बार

गुलाब पकड़ते वक्त

परस्पर

छू गई थीं

हमारी उँगलियाँ

तब क्या हुआ था?

मुझे तो याद है..

गुलाब और गुलाबी हो गया था!


क्या तुम्हें याद है?

तुम्हारी जुदाई में 

कैसे रंग बदलता था गुलाब?

मुझे तो याद है

बिलकुल पीला!

और फिर

मेरे लौट जाने की बात सुनते ही

सफेद!


क्या तुम्हें याद है?

आज किस हाल में है

हमारा गुलाब?

मुझे तो याद है

बिलकुल वैसा 

जैसा पहली बार आया था 

उँगलियों में

लेकिन

मैं उसे देख नहीं सकता।☺️

.............

25.1.21

वसंत

यूं ही नहीं आता वसंत

लड़नी होती है, लंबी लड़ाई

धूप को

कोहरे के साथ।


लगने लगता है

हार गया कोहरा

तभी नहीं दिखती

धूप

लगने लगता है

गई ठंडी

छाने लगता है

घना कोहरा


यूँ ही नहीं आता 

मगर तय है

कोहरे को हराकर

आता है एक दिन

वसंत।