22.4.20

माटी के प्याले रख दे...

छत पर माटी के प्याले रख दे
पानी, चोंच भर, निवाले रख दे।

भूखे हैं, गली के कुत्ते भी
खा जाएंगे, गोरे/काले, रख दे ।

जाने कौन, काम आ जाए सफर में!
कूड़ेदानी में, मन के जाले रख दे।

मिलेगी छाँव भी, यूँ ही, चलते-चलते
दो घड़ी रुक, पैरों के छाले रख दे।

जानता हूँ, तू भी, परेशां है बहुत
अपने होठों पे, कोरोना के, ताले रख दे।

9.4.20

अछूत

खबरों में सुना
एक देश में एक आदमी मर गया
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा
मरने वाला वैसे ही मरा था जैसे
मरता है कोई आदमी

कुछ दिनों बाद सुना
दूसरे देश में
एक और आदमी मर गया
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा
मरने वाला वैसे ही मरा था जैसे
मरता है कोई आदमी

कुछ दिनों बाद सुना
एक और देश में, एक और आदमी मर गया!
यह सुनकर मैं झुँझला गया
आखिर
आदमी के मरने से
यह दुनियाँ
इतनी हैरान/परेशान क्यों है?
हाइलाइट क्यों हो रही हैं
आदमी के मरने की खबरें?
आदमी तो
मरने के लिए पैदा ही होता है
कौन सी बड़ी बात हो गई जो
आदमी मर गया?

पढा तो चौंक गया..
अलग-अलग देशों में
एक ही रोग से
मर रहे हैं आदमी
और किसी देश के पास नहीं है
रोग की दवा!

तब भी मुझे
कोई फर्क नहीं पड़ा
आखिर मेरे देश में तो अबतक
कोई नहीं मरा!

आखिर
वह मनहूस दिन भी आया जब
आदमी से आदमी तक होता हुआ
रोग का वायरस
मेरे देश में आ गया!

फिर भी मैं
तनिक न घबड़ाया
मरने वाला
मेरे देश का जरूर था लेकिन
मेरे राज्य का नहीं था, मेरे शहर का नहीं था,
उससे मेरा
दूर-दूर तक
कोई रिश्ता/नाता न था,
कोई यारी/दोस्ती
नहीं थी
मरने वाला
आदमी था
फकत एक आदमी

धीरे-धीरे
रोग ने
मेरे राज्य में, मेरे शहर में
कदम बढ़ाना शुरू किया
परेशान तो तब जाकर हुआ जब
मेरे राजा ने
मेरे घर के सामने
एक लक्ष्मण रेखा खींच दी और कहा..
तुम्हें
घर में ही रहना है
यह छूत का रोग है
एक दूसरे को
छूने से ही नहीं, उसके छुए हुए को,
छूने से भी, फैलता है!

अब मैं
मरने से अधिक
इस बात से परेशान हूँ
कि गलती से कहीं
अछूत न हो जाऊँ!

वैसे तो
अस्पृश्यता के खिलाफ
बहुत बार बोला
लेकिन अछूत होना
इतना पीड़ादायक होता है
यह अब जाकर
समझ में आया।
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