15.4.21

तोते

 मार्निंग वॉक में शाख से झूलते कई आजाद तोते दिखे।

मैंने कहा..

बोलो! जय श्री राम।

तोते इस शाख से उस शाख पर झूलते और मुझे देख कहते- 'टें' 'टें'।


मैं फिर बोला-

गोपी कृष्ण कहो बेटू, गोपी कृष्ण।


तोते बोले- टें..टें।


अच्छा बोलो...जय भीम।

तोते बोले-टें..टें।


तभी मुझे जेएनयू की घटना का संस्मरण हो आया. मैंने सोचा अभी ये मेधावी छात्र होंगे।


मैंने कहा-बोलो! आजादी। छीन के लेंगे आजादी!!! भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह।


तोते इस बार गुस्से से चीखते हुए उड़ गए- टें.. टें..टें.. टें..

मुझे एक बात समझ में आ गई. तोते यदि वास्तव में आजाद हों तो बस अपनी ही जुबान बोलते हैं। जय श्री राम, जय भीम या आजादी-आजादी बोलने वाले तोते तो वे होते हैं जिन्हें पढ़ाया/रटाया जाता है।

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नींद से जगाने का अपराध

एक गाँव था। गाँव का मुखिया बड़ा जालिम था। रोज की तरह एक दिन मुर्गे ने बांग दी। बांग सुनकर एक कवि की नींद खुल गई। नींद खुली तो कवि ने लिखी कविता। कवि की कविता सुनकर पूरा गाँव नींद से जागने लगा। गाँव को जागता देखकर मुखिया की नींद उड़ गई। भोले भाले लोगों को नींद से जगाने के अपराध में गाँव मे पंचायत बुलाई गई। कवि, एक तो आदमी, ऊपर से समझदार! झट से पाला बदला। मुखिया की तारीफ में भक्ति के गीत गाए। मुर्गे ने अपना स्वभाव नहीं बदला, मारा गया।

आज भी, स्वभाव न बदलने के कारण, नींद से जगाने के अपराध में, मारे जाते हैं मुर्गे, सम्मानित होते हैं कवि।

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