12.5.18

लोहे का घर-43

भारतीय रेल में सफ़र करते करते जिंदगी जीने के लिए जरूरी सभी गुण स्वतः विकसित होने लगते हैं। धैर्य, सहनशीलता, सामंजस्य आदि अगणित गुण हैं जो लोहे के घर में चंद्रकलाओं की तरह खिलते हैं। कष्ट में भी खुश रहने के नए नए तरीके ईजाद होते हैं। कोई तास खेलता है, कोई मोबाइल में लूडो या शतरंज। एक ही मिजाज के चार पांच लोग हैं तो पप्पू, पपलू भी खेल सकते हैं। लोहे का घर एक ऐसा विश्राम स्थल है जहां रहने वाले कोई काम नहीं करते बल्कि आराम से बैठकर काम करने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं।

ट्रेन बहुत देर से वीरापट्टी स्टेशन पर रुकी है। पास के गांव में अखंड रामायण चल रहा है। बड़े सुर में सुंदर कांड का पाठ हो रहा है। संपुट है..दीन दयाय बिरज संभारी, हरहूं नाथ मम संकट भारी।

कल शाम #ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर देर से रुकी थी और पास ही गांव में अखंड रामायण चल रहा था। संपुट अच्छा लग रहा था.. हरहूं नाथ मम संकट भारी।

आज जब सोने की तैयारी कर रहा हूं तो सामने घर में अखंड रामायण चल रहा है और लाउड स्पीकर का मुंह अपनी तरफ है। पाठ करने वाले इतनी जल्दी जल्दी पाठ कर रहे हैं कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा, सिर्फ कान फाड़ू शोर के बीच तबला अजीब ढंग से टन टन बज रहा है।  ऐसा लगता है पाठ करने वाले वाले ठेके पर बुलाए गए हैं जिन्हें रात भर में रामायण ख़तम करना है। बीच बीच में नया बेसुरा राग खूब खींच कर छेड़ते हैं और नए अंदाज में शोर करते हैं। सोच रहा हूं अगर सो नहीं पाया तो कल सुबह ट्रेन कैसे पकड़ाएगी?

अखंड रामायण का आज का संपुट है...

मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहूं सो दशरथ अजिर बिहारी।

और मैं मन ही मन जप रहा हूं...

हरहुं नाथ मम संकट भारी!
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नाल वाले डिब्बे नू बैठा है। हां हां चलने वाली है ट्रेन.. हां हां बैठ गई ठीक से, जगह मिल गई।

लोहे के घर की खिड़की पकड़े प्लेटफॉम पर खड़ी हैं दो औरतें और चार बच्चे। ट्रेन में चढ़ाने आया एक बन्दा खाला के हाथ में मोबाइल पकड़ा गया है। खाला कभी उठती है, कभी बैठ जाती है लेकिन खड़े/बैठे मोबाइल से बातें किए जा रही हैं। बीच बीच में छोड़ने आई महिलाओं और बच्चों को हाथ भी दिखा रही हैं .. हां हां ठीक हूं..चली जाऊंगी, अब रख मोबाइल। महिला अब मोबाइल वापस कर खिड़की पकड़े खड़ी महिलाओं और बच्चों से बातें करने लगीं। प्लेटफॉर्म पर धूप है। धूप में खड़ी महिलाओं के चेहरों को देख अब ऐसा लग रहा है कि उन्हें अब रेल पर क्रोध आ रहा है..चल क्यों नहीं रही यह ट्रेन? अभी कुछ देर पहले जितना समय बात करने मिल जाय कम है, कहने वाली महिलाएं ट्रेन के न चलने से व्यग्र हैं।

#ट्रेन चल दी! सभी के मुर्झाए चेहरे खिल उठे। लंबी गूंज सुनाई पड़ी... बा आ आ य, बा आ आ य।
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आज लौह पथ गामिनी के संचालक महोदय की कृपा से जल्दी घर आ गए। आ गए तो टी. वी. खोलने का समय मिल गया। शांति की तलाश में सबसे पहले दूर दर्शन समाचार लगाया। आदरणीय प्रधान मंत्री जी की नेपाल यात्रा विषयक जानकारी प्राप्त हुई। कूल कूल वातावरण में नेपाली विदेश मंत्री से साक्षात्कार और दूसरी अच्छी अच्छी बातें सुनकर कलेजे में ठंड पहुंची।

सफ़र की थकान मिटी तो जिस्म में कीड़ा कुलबुलाने लगा। चैनल बदलना शुरू किया। एक चैनल में किम और ट्रंप की मुलाकात के साथ किम के जूते का राज खोला जा रहा था। सुनते ही फूट लिए।

एक चैनल में कुछ राजनैतिक विद्वानों को जुटा कर मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के माध्यम से कौआ कांव मचाया जा रहा था। हम गधे की तरह कितना सुनते!

आई पी एल लगा कर मैच देखने लगे। ऋषभ पंत ने धूम मचा रखी थी। पंत की बैटिंग देख मजा आ गया।

एन डी टी. वी. में रविश कुमार प्रधान मंत्री के भाषणों में जो कमी थी उसे ही हाईलाइट करते रहे। ऐतिहासिक झूठ न बोलने की सलाह दे रहे थे। कुल मिला कर हारे थके विपक्ष को अपनी बुद्धि से ऊर्जा दे रहे थे।

म्यूजिक चैनल लगाया तो चिकी बम बम वाला गाना एक्शन के साथ दिखाया जा रहा था। नई हीरोइनों के मटकते बम और हीरो का दम देख कर हम उलझन में पड़ गए। हम तो बम का कुछ और मतलब समझते थे, यहां कुछ और है! नए गानों के बोल याद नहीं रहते। हां, एक्शन जरूर कुछ दिन तक याद रहते हैं। कहने के अंदाज में फ़र्क होता है यह बात समझ में आ गई। वे बम में है दम.. कहते हैं, हम बनारसी इसी बात को सीधे तरीके से कहते हैं। हम कहते हैं तो गाली कहलाती है, फिलिम वाले कहते हैं तो गीत का मधुर अंतरा होता है!!!

अब इससे ज्यादा चैनल हम से देखा न गया। पचाने की भी एक सीमा होती है। शुभरात्रि।

6.5.18

अभागन की शादी

किशन लाल परेशान थे। हों भी क्यों न? बेटी जवान हो चुकी और अभी तक शादी के लिए योग्य तो क्या अयोग्य वर भी नहीं मिला! बेटी पढ़ी लिखी, खूबसूरत थी मगर हाय! दोनों पैरों से अपाहिज ही बड़ी हुई थी अभागन। लड़के की तलाश में रिश्तेदारों, परिचितों के दरवाजे-दरवाजे माथा टेकते कई दिन बीत चुके थे। आज का मोबाइल और नेट का जमाना होता तो शायद इतना व्यर्थ न दौड़ना पड़ता। सब इनकार ऑन लाइन ही मिल जाता। कोई सकारता तो चल जाते उसके घर।

सब ओर से निराश हो अपने गांव लौट जाने की सोच रहे थे किशन लाल। भोर का समय था और राधे चाय वाले ने पहली केतली धरी ही थी आंच पर। भट्टी से अभी धुंआ निकल रहा था। चाय देखी तो पीने की चाह में रुक गए। जय रम्मी के बाद राधे ने बेंच पर बैठने का इशारा क्या किया, थच्च से बैठ कर अपना दुखड़ा रोने लगे। चाय पीते-पीते जैसे ही उन्होंने अपना वाक्य पूरा किया…अब कौन करेगा अभागन से शादी? वहीं पास खड़ा हो, नीम के दातून से दांत रगड़ रहा एक युवक पास आया और झुक कर चरण छूने के बाद बोला.. बाऊजी! मैं करूंगा आपकी बेटी से शादी! मैं बहुत देर से आपकी बातें सुन रहा हूं। आप ही के जाति बिरादरी का हूं। आपको अपने गांव में कोई परेशानी नहीं होगी। सेना में सैनिक हूं। आज ही डयूटी ज्वाइन करने का आदेश है। इसलिए अभी तो नहीं लेकिन आज से 6 माह बाद इस तारीख को मैं अपने पूरे परिवार और मित्रों के साथ आपके घर आऊंगा। आप शादी की तैयारी शुरू कीजिए! इतना कह कर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लड़का मोटर सायकिल स्टार्ट कर वहां से चला गया।

किशन लाल को लगा किसी ने उसके साथ बड़ा भद्दा मजाक किया है! मैं ही पागल हूं जो हर जगह अपना दुखड़ा सुनाता रहता हूं। राधे चाय वाले ने किशन लाल को समझाने का खूब प्रयास किया कि मैं लड़के को जानता हूं। पास ही के गांव का है। सेना में मेजर है, कहा है तो आएगा लेकिन किशन लाल को यकीन नहीं हुआ। बिना लड़की देखे, मेरे बारे में जाने, दहेज की बात किए कैसे कोई अपाहिज लड़की से शादी करने को तैयार हो जाएगा? लड़के ने मेरे साथ बड़ा भद्दा मजाक किया है। रोते कोसते किशन लाल चाय की दुकान से भारी मन लिए बड़बड़ाते लौट गए.. लड़के ने मेरे साथ...।

अपने गांव/घर आ कर भी किशन लाल कई दिनों तक बेसूध से घूमते नजर आते। अब इत्ती बेइज्जती की बात किससे कहें? क्या विश्वास करें और क्या तैयारी करें? बिटिया तो पहले से ही कहती है कि उसे किसी से शादी नहीं करनी। मास्टरनी बन जाऊंगी और ढेर सारे बच्चों को पढ़ाऊंगी।

कहे भी तो किससे कहे? अंत में कई दिनों बात उनके मन का लावा शर्मा नाऊ के पीढ़े पर बैठे दाढ़ी बनाते समय निकल ही गया! सब बात बता कर किशन लाल बोले... यह यकीन करने की बात है? छोरे ने मेरे साथ बड़ा भद्दा मज़ाक किया है। शर्मा नाऊ ने हंसते हुए कहा.. क्या जाने तुम पर भगवान को दया आ गई हो और भेज दिया हो किसी को तुम्हारी भलाई करने! तारीख याद रखियो, कहीं सच में आ गया तो का करोगे? वैसे लड़का देखने में कैसा था? किशन लाल को लगा शर्मा भी मेरा मजाक उड़ा रहा है। है ही ऐसी बात कि सभी मजाक उड़ाएंगे। इत्ते दिनों से दिल में जब्त था, नाहक मुख से फिसल गया।

इधर शर्मा नाऊ को अपने ग्राहकों को सुनाने के लिए नया मसाला मिल गया! धीरे धीरे कुछ ही दिनों में किशन लाल की छोड़, पूरा गांव जान गया कि किशन लाल के घर फलां दिवस बारात आने वाली है।

निर्धारित तिथि पर सच में आ गई बारात! गांव में हल्ला मच गया..बारात आ गई, किशन लाल के घर बारात आ गई। पगला सो चुका होगा खा पी कर। उसे जगाओ। बिटिया को सजाओ। शादी का मंडप तैयार करो। आग लगाओ, भट्टी सुलगाओ और देखते ही देखते पूरे गांव ने बारात को हाथों हाथ ले लिया। मंडप सजा, पण्डित आए.. बारात किशन लाल के घर तक तभी पहुंच पाई जब सारी तैयारी पूरी हो गई।

वर्षों बाद लड़के के गांव के पास राधे चाय की दुकान पर चर्चा होती है...

इस गांव में जब पहली बार आईं, वैशाखी पर आईं । अब तो आप देख ही रहे थे, कैसे आराम से कार चला कर जा रही थीं प्रिंसिपल मैडम? पीछे वाली सीट पर उनके दो बेटे थे और बगल में मेजर साहब। कित्ते सुंदर बच्चे थे न?