27.11.11

वह आया, घर के भीतर, चुपके से...!



वह
चुपके से आया।

वैसे नहीं
जैसे बिल्ली आती है दबे पांव किचेन मे
पी कर चली जाती है
सारा दूध

वैसे भी नहीं
जैसे आता है मच्छर
दिन दहाड़े
दे जाता है डेंगू

न खटमल की तरह
गहरी नींद
धीरे-धीरे खून चूसते

न असलहे चमकाते
न दरवाजा पीटते

वह आया
बस
चुपके से।

न देखा किसी ने, न पहचाना
सिर्फ महसूस किया   
आ चुका है कोई
घर के भीतर
जो कर रहा है
घात पर घात।

तभी तो...

कलकिंत हो रहे हैं
सभी रिश्ते 

धरे रह जा रहे हैं
धार्मिक ग्रंथ 

धूल फांक रहे हैं
आलमारियों में सजे
उपदेश

खोखले हो रहे हैं
सदियों के 
संस्कार

नहीं
कोई तस्वीर नहीं है उसकी मेरे पास
नहीं दिखा सकता
उसका चेहरा
नहीं बता सकता
हुलिया भी

मैं
अक्षिसाक्षी नहीं
भुक्त भोगी हूँ
ह्रदयाघात से पीड़ित हूँ
यह भी नहीं बता सकता 
कब आया होगा वह
सिर्फ अनुमान लगा सकता हूँ 


तब आया होगा
जब हम
असावधान
सपरिवार बैठकर
हंसते हुए
देख रहे थे
टीवी।

हाँ, हाँ
मानता हूँ
इसमें टीवी का कोई दोष नहीं
था मेरे  पास
रिमोट कंट्रोल।

.......................
अक्षिसाक्षी=चश्मदीद गवाह।

23.11.11

डंड़ौकी


उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

बड़कू  क  बेटवा  चिल्लायल, निन्हकू चच्चा भाग जा
गरजत  हौ  छोटकी  क  माई,  भयल सबेरा  जाग जा

घर से  निकसल,  घूमे-टहरे,  चिन्ता धरल  कपार बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

घर  में  बिटिया  सयान  हौ,  बेटवा  बेरोजगार  हौ
सुरसा सरिस, बढ़ल  महंगाई, बेईमान सरकार हौ

काटत-काटत, कटल जिंदगी, कटत  न  ई जंजाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

हमके लागला दहेज में, बिक जाई सब आपन खेत
जिनगी फिसलत हौ मुठ्ठी से, जैसे गंगा जी कs रेत

मन ही मन ई सोंच रहल हौ, आयल समय अकाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

कल  कह  देहलन, बड़कू हमसे, का  देहला  तू हमका ?
खाली आपन सुख की खातिर, पइदा कइला तू हमका !

सुन  के  भी  ई  माहुर बतिया,  काहे  अटकल प्रान बा!
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

ठक-ठक, ठक-ठक, हंसल डंड़ौकी, अब त छोड़ा माया जाल
राम ही साथी, पूत न नाती, रूक के सुन लs, काल कs ताल

सिखा  के  उड़ना,  देखा  चिरई,  तोड़त  माया जाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

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कठिन शब्द..
डंड़ौकी = लकड़ी की छड़ी जिसे लेकर बुजुर्ग टहलने जाते हैं। बच्चों को नींद से जगाने के लिए सोटे के रूप में भी इसका इस्तेमाल कर लेते हैं।
माहुर बतिया = जहरीली बातें।

15.11.11

मध्यम वर्गीय चरित्र



पिछले सप्ताह वाराणसी में पुस्तक मेला लगा था। मैं उस दिन गया जब वहाँ ढेर सारे उल्लू जमा थे। मेरा मतलब उस दिन उलूक महोत्सव भी था। कार्तिक मास में बनारस में यह घटना भी होती है । दूर-दूर के बड़े-बड़े हास्य-व्यंग्य के कवि उल्लू कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। धूम धाम से उलूक महोत्सव मनाया जाता है। मंच पर वही कवि श्रेष्ठ माना जाता है जो अपने उल्लूपने से, शेष जमा हुए उल्लुओं को ठहाका लगाने पर मजबूर कर दे। मैने पुस्तकें भी खरीदी और कविताओं का आनंद भी लिया। कविताएँ उल्लुओं की जमात में बैठकर सुनते वक्त तो अच्छी लगी होंगी तभी मैं भी हंस रहा था लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं थीं कि अब तक याद रहें और टेप कर के आपको सुनायीं जायं। ऐसी कविताएं उल्लुओं की जमात में बैठकर सामूहिक रूप से सुनते वक्त ही अच्छी लगती हैं। आप हड़बड़ी में सरसरी तौर पर नज़र डालेंगे तो वाहियात लगेंगी सो मैने न तो टेप किया न उसे यहां लिखकर आपका कीमती वक्त जाया करना चाहता हूँ। यहाँ तो उस पुस्तक मेला से लाई हरिशंकर परसाई के एक व्यंग्य संग्रह प्रेमचंद्र के फटे जूते से एक छोटी सी व्यंग्य कथा पढ़ाना चाहता हूँ जिसे पढ़कर मैं सोचता हूँ कि परसाई जी जो लिख कर चले गये उसके सामने हम आज भी कितने बौने हैं ! न पढ़ी हो तो पढ़ ही लीजिए परसाई जी की यह छोटी सी व्यंग्य कथा जिसका शीर्षक है...एक मध्यम वर्गीय कुत्ता।

मध्यम वर्गीय कुत्ता

मेरे मित्र की कार बँगले में घुसी तो उतरते हुए मैने पूछा, इनके यहाँ कुत्ता तो नहीं है?”

मित्र ने कहा, तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!”

मैने कहा, आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हूँ। पर सच्चे कुत्तों से बहुत डरता हूँ।

कुत्तेवाले घर मुझे अच्छे नहीं लगते। वहाँ जाओ तो मेजबान के पहले कुत्ता भौंककर स्वागत करता है। अपने स्नेही से नमस्ते हुई ही नहीं कि कुत्ते ने गाली दे दी-क्यों आया बे ? तेरे बाप का घर है ? भाग यहाँ से !”

फिर कुत्ते के काटने का डर नहीं लगता-चार बार काट ले। डर लगता है उन चौदह बड़े-बड़े इंजेक्शनों का जो डाक्टर पेट में घुसेड़ता है। यूँ कुछ आदमी कुत्ते से अधिक जहरीले होते हैं। एक परिचित को कुत्ते ने काट लिया था। मैने कहा, इन्हें कुछ नहीं होगा। हालचाल उस कुत्ते के देखो और इंजेक्शन उसे लगाओ।

एक नये परिचित ने मुझे घर पर चाय के लिए बुलाया। मैं उनके बंगले पर पहुँचा तो फाटक पर एक तख्ती टँगी दिखी-कुत्ते से सावधान!’ मैं फौरन लौट गया। कुछ दिनो बाद वे मिले तो शिकायत की, आप उस दिन चाय पीने नहीं आये!” मैने कहा, माफ करें। मैं बंगले तक गया था। वहाँ तख्ती लटकी थी-कुत्ते से सावधान। मेरा खयाल था, उस बंगले में आदमी रहते हैं। पर नेमप्लेट कुत्ते की टँगी दीखी।

यूँ कोई-कोई आदमी कुत्ते से बदतर होता है। मार्क ट्वेन ने लिखा है-यदि आप भूखे मरते कुत्ते को रोटी खिला दें, तो वह आपको नहीं काटेगा। कुत्ते में और आदमी में यही मूल अंतर है।

बँगले मे हमारे स्नेही थे। हमें वहाँ तीन चार दिन ठहरना था। मेरे मित्र ने घंटी बजायी तो जाली के अंदर से वही भौं-भौं की आवाज आयी।  मैं दो कदम पीछे हट गया। हमारे मेजबान आये। कुत्तों को डाँटा-टाइगर, टाइगर ! उनका मतलब था-शेर, ये लोग कोई चोर डाकू नहीं हैं। तू इतना वफादार मत बन।

कुत्ता जंजीर से बंधा था। उसने देख भी लिया था कि हमें उसके मालिक खुद भीतर ले जा रहे हैं पर वह भौंके जा रहा था। मैं उससे काफी दूर से लगभग दौड़ता हुआ भीतर गया।

मैं समझा, यह उच्चवर्गीय कुत्ता है। लगता ऐसा ही है। मैं उच्चवर्गीय का बड़ा अदब करता हूँ। चाहे वह कुत्ता ही क्यों न हो। उस बंगले में मेरी अजब स्थिति थी। मैं हीन भावना से ग्रस्त था-इसी अहाते में एक उच्चवर्गीय कुत्ता और इसी में मैं ! वह मुझे हीकारत की नजर से देखता।

शाम को हम लोग लॉन में बैठे थे। नौकर कुत्ते को अहाते में घुमा रहा था। मैने देखा, फाटक पर आकर दो सड़किया आवारा कुत्ते खड़े हो गये। वे आते और इस कुत्ते को बड़े गौर से देखते। फिर यहाँ-वहाँ घूमकर लौट आते और इस कुत्ते को देखते रहते। पर यह बंगलेवाला उन पर भौंकता था। वे सहम जाते और यहाँ-वहाँ हो जाते। पर फिर आकर इस कुत्ते को देखने लगते।

मेजबान ने कहा, यह हमेशा का सिलसिला है। जब भी यह अपना कुत्ता बाहर जाता है, वे दोनो कुत्ते इसे देखते रहते हैं।

मैने कहा, पर इसे इन पर भौंकना नहीं चाहिए। यह पट्टे और जंजीरवाला है। सुविधाभोगी है। वे कुत्ते भुखमरे और आवारा हैं। इसकी और उनकी बराबरी नहीं है। फिर यह क्यों चुनौती देता है!”

रात को हम बाहर ही सोये। जंजीर से बंधा कुत्ता भी पास ही अपने तखत पर सो रहा था। अब हुआ यह कि आसपास जब भी वे कुत्ते भौंकते, यह कुत्ता भी भौंकता। आखिर यह उनके साथ क्यों भौंकता है ? यह तो उन पर भौंकता है। जब वे मुहल्ले में भौंकते हैं तो यह भी उनकी आवाज में आवाज मिलाने लगता है, जैसे उन्हें आश्वासन देता हो कि मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे साथ हूँ।

मुझे इसके वर्ग पर शक होने लगा है। यह उच्चवर्गीय नहीं है। मेरे पड़ोस में ही एक साहब के पास थे दो कुत्ते। उनका रोब ही निराला ! मैने उन्हें कभी भौंकते नहीं सुना। आसपास कुत्ते भौंकते रहते, पर वे ध्यान नहीं देते थे। लोग निकलते, पर वे झपटते नहीं थे। कभी मैने उनकी एक धीमी गुर्राहट ही सुनी होगी। वे बैठे रहते या घूमते रहते। फाटक खुला होता, तो भी बाहर नहीं निकलते थे। बड़े रोबीले, अहंकारी और आत्मतुष्ट।

यह कुत्ता उन सर्वहारा कुत्तों पर भौंकता भी है और उनकी आवाज में आवाज भी मिलाता है। कहता है-मैं तुममें शामिल हूँ। उच्चवर्गीय झूठा रोब भी और संकट के आभास पर सर्वहारा के साथ भी-यह चरित्र है इस कुत्ते का। यह मध्यम वर्गीय चरित्र है। यह मध्यम वर्गीय कुत्ता है। उच्चवर्गीय होने का ढोंग भी करता है और सर्वहारा के साथ मिलकर भौंकता भी है।

तीसरे दिन रात को हम लौटे तो देखा, कुत्ता त्रस्त पड़ा है। हमारी आहट पर वह भौंका नहीं. थोड़ा सा मरी आवाज में गुर्राया। आसपास वे आवारा कुत्ते भौंक रहे थे, पर यह उनके साथ भौंका नहीं। थोड़ा गुर्राया और फिर निढाल पड़ गया।

मैने मेजबान से कहा, आज तुम्हारा कुत्ता बहुत शान्त है।

मेजबान ने बताया, आज यह बुरी हालत में है। हुआ यह कि नौकर की गफलत के कारण यह फाटक के बाहर निकल गया। वे दोनो कुत्ते तो घात में थे ही। दोनो ने इसे घेर लिया। इसे रगेदा। दोनो इस पर चढ़ बैठे। इसे काटा। हालत खराब हो गयी। नौकर इसे बचाकर लाया। तभी से यह सुस्त पड़ा है और घाव सहला रहा है। डॉक्टर श्रीवास्तव से कल इसे इंजेक्शन दिलाउँगा।

मैने कुत्ते की तरफ देखा। दीन भाव से पड़ा था। मैने अन्दाज लगाया। हुआ यों होगा-

यह अकड़ से फाटक के बाहर निकला होगा। उन कुत्तों पर भौंका होगा। उन कुत्तों ने कहा होगा -‘अबे, अपना वर्ग नहीं पहचानता। ढोंग रचता है। यो पट्टा और जंजीर लगाये है। मुफ्त का खाता है। लॉन पर टहलता है। हमें ठसक दिखाता है। पर रात को जब किसी आसन्न संकट पर हम भौंकते हैं, तो तू भी हमारे साथ हो जाता है। संकट में हमारे साथ है, मगर यों हम पर भौंकेगा। हममें से है तो निकल बाहर। छोड़ यह पट्टा और जंजीर। छोड़ आराम। घूरे पर पड़ा अन्न खा या चुराकर रोटी खा। धूल में लोट।

यह फिर भौंका होगा। इस पर वे कुत्ते झपटे होंगे। यह कहकर – अच्छा ढोंगी, दगाबाज, अभी तेरे झूठे वर्ग का अंहकार नष्ट किये देते हैं।

इसे रगेदा, पटका, काटा और धूल खिलायी।

कुत्ता चुपचाप पड़ा अपने सही वर्ग के बारे में चिन्तन कर रहा है।

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11.11.11

देव दीपावली


पंचगंगा घाट से शुरू हुआ देव दीपावली का मेला आज बनारस की शान बन चुका है। अब कोई घाट इससे अछूते नहीं रहे। एक समय था जब केवल पंचगंगा घाट में ही देव दीपावली मनाई जाती थी और बगल के दुर्गाघाट में दुर्गाघाटी मुक्की। इधर दीप जलते उधर मुक्के बाजी शुरू। इसका विस्तार से वर्णन मैने आनंद की यादें में किया है। आज इस बालक को देखकर उसी नन्हे आनंद की याद हो आई जो कभी दुर्गाघाट की सीढ़ियों पर इसी तनमयता से कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप जलाता था।


लख्खा मेला में परिवर्तित हो चुके इस देव दीपावली महोत्सव को देखने की शुरूवात आज  मैने अस्सी घाट से की। घाट पर पहुंचा तो इतनी भीड़ थी कि पैदल  एक घाट से दूसरे घाट का नजारा लेना संभव ही न था। अस्सी घाट का नजारा देखिए....


मेरे साथ शुक्ला जी थे। श्रीमती जी और बच्चों ने तो पहले ही भीड़ से घबड़ा कर जाने से साफ इंकार कर दिया था। हमारा देखा हुआ है आप घूम आइये..हमें कौन ब्लॉगरी करनी है..! अब ससुरा जो करते हैं लगता है ब्लॉगरिये के लिए कर रहे हैं ! हमारा तो कुछ मन होता ही नहीं है !!  हद हो गई। खैर छोड़िए, शुक्ला जी को पकड़ा और पहुंच ही गये घाट पर। डा0 अरविंद मिश्र जी ने तो पहले ही अपने काम के चलते जाने में असमर्थता बताई थी। अस्सी घाट की भीड़ देखकर तो हम भी घबड़ा गये। शुक्ला जी ने कहा कि ऐसे तो हम इसी घाट में सिमट कर रह जायेंगे। चलिए एक नौका कर लेते हैं। नाव वाले मानों इसी दिन के इंतजार में रहते हैं। 1000 रूपये से मोल भाव शुरू हुआ। इतने में दो छात्र भी मिल गये। काफी मान मनौव्वल के बाद नाव वाला 800रू में हम सब को पंचगंगा घाट तक घुमाने को तैयार हो गया। जमकर घूमे... खूब फोटू हींची। ऐसा लगा मानो खजाना हाथ लग गया। लेकिन हाय री किस्मत ! एक तो अपना कैमरा बिलो क्वालिटी का ऊपर से हिलती नाव, अधिकांश फोटू नैय्या के हिलते रहने के कारण खराब ही आई। कुछ ठीक ठाक हैं जो लगा रहा हूँ।




दशाश्वमेध घाट आने ही वाला है...


नीचे सिंधिया घाट के बगल में काशी करवट.. जहाँ नीले झालर लगे हैं। बगल में मणिकर्णिका घाट है।



नीचे घाटों का एक विंहगम दृष्य ..दूर-दूर के सजे घाट दिखाई दे रहे हैं। आतिशबाजी भी हो रही है।


नीचे दशाश्वमेध घाट के सामने नावों द्वारा गंगा जाम का दृष्य....


देखिए..कितने नावों में कितने लोग !


 जैन घाट 






घाटों पर और नावों पर लोगों की अपार भीड़

कई घाट घूम कर जब वापस तुलसी घाट आये तो पता चला यहाँ कृष्ण लीला जारी है। यहीं नाव से उतर गये। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कंस का वध होता है। यह लीला देव दीपावली के बहुत पहले से मनाई जा रही है। आपको मैने नाग नथैय्या मेले के बारे में बताया था। यह उसी के आगे की कड़ी है। नीचे के चित्र में ध्यान से देखेंगे तो कंस का पुतला दिखाई देगा। चाँद तो मेरे कैमरे में पानी की बूंद का छिट्टा पड़ जाने से बन गया होगा।



यह तो कंस का सैनिक है। मैने कहा आओ आर..फोटू खिंचा लें....



कृष्ण लीला का हाथी 


घाटों पर ही नहीं, घाटों के मंदिरों पर भी खूब सजावट थी और दिये जले थे।

ऐसा नहीं है कि इतने ही घाट अच्छे सजे हैं। यहाँ तश्वीरें उन्हीं की हैं जो मेरे कैमरे में कुछ ठीक-ठाक आ गई हैं। पंचगंगा घाट तो छूट ही गया। नाव के हिचकोलों से कैमरा इतना हिल गया कि तश्वीरें खराब हो गईं। अब आप ही बताइये है काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह उत्सव है न बेजोड़ ?
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6.11.11

माँ गंगे



कार्तिक मास में
बनारस के गंगा तट पर
देखा है जितनी बार
सुंदर
और भी सुंदर
दिखी हैं
माँ गंगे।

करवा चौथ के बाद से 
रोज ही
लगने लगते हैं मेले
तट पर
कभी नाग नथैया
कभी डाला छठ
कभी गंगा महोत्सव
तो कभी
देव दीपावली।

स्वच्छ होने लगते हैं
बनारस के घाट
उमड़ता है जन सैलाब
घाटों पर
कहीं तुलसी, पीपल के तले
तो कहीं  
घाटों के ऊपर भी
जलते हैं
मिट्टी के दिये
बनकर
आकाश दीप।

अद्भुत होती है
घाटों की छटा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन।

कहते हैं
मछली बनकर जन्मे थे कृष्ण,
त्रिपुरासुर का वध किया था महादेवजी ने,
जन्मे थे गुरू नानक,
कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन

तभी तो
उतरते हैं देव भी
स्वर्ग से
बनारस के घाटों पर
मनाते हैं दिवाली
जिसे कहते हैं सभी
देव दीपावली।

माँ की सुंदरता देख 
कभी कभी
सहम सा जाता है
मेरा अपराधी मन
यह सोचकर
कि कहीं
कार्तिक मास में
वैसे ही सुंदर तो नहीं दिखती माँ गंगे !
जैसे किसी त्योहार में
मेरे घर आने पर
मुझे आनंद में देख
खुश हो जाती थीं
और मैं समझता था
कि बहुत सुखी है
मेरी माँ।
..................................


2.11.11

छठ की छटा


छठ के महान पर्व पर वाराणसी के घाटों पर सूर्योदय के समय का नजारा बड़ा ही अद्भुत था। सूर्योदय के साथ ही हर हर महादेव के नारे की गूँज दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी। सूर्य को अर्घ्य देने के लिए उमड़े भक्तों का उत्साह देखते ही बनता था। आज मार्निंग वॉक पर न जा कर गंगा वॉक का आनंद लिया और नाव में बैठकर गंगा के घाटों की कुछ तश्वीरें  खीची। इन तश्वीरों के साथ आप भी सुबहे बनारस का आनंद लीजिये।



आइये सूर्य देव आपका स्वागत है।



घाटों पर आस्था और श्रद्धा का ज्वार





अपन तो मस्त हैं।




अस्सी घाट पर उमड़ा जन सैलाब



समझा रहा था कि सूर्य देव के साथ हींचो आर..


अर्घ्य देने के लिए आतुर महिलाएं...


श्रद्धालु भक्त

अस्सी घाट पर आसन जमाये साधू। बंदर ढेर मजा ले रहा था।

छठ पर्व के विषय में क्या लिखूं....मुझसे अधिक तो आप ही जानते हैं, धन्यवाद।