26.11.14

गंगा के तट पर...


मंदिर दिखता
पुजारी दिखते
पंडे दिखते हैं
मंदिर के ऊपर फहराते
झंडे दिखते हैं
भक्तों की लाइन लगती है
गंगा के तट पर
लोटे में गंगा
काँधे पर
डंडे दिखते हैँ।

कहीं गंजेड़ी
कहीं भंगेड़ी
कहीं भिखारी
कहीं शराबी
लोभी, भूखे, भोगी दिखते
बगुले भी योगी
गंगा तट पर भाँति-भाँति के
चित्तर दिखते हैं
सभी चरित्तर मार के डुबकी
पवित्तर दिखते हैं।

कोई पूरब से आता है
कोई पश्चिम से
कोई उत्तर से आता है
कोई दक्खिन से
सब आते हैं पुन्य लूटने
कुछ आते मस्ती में
कुछ सीढ़ी पर उड़ते दिखते
कुछ डूबे कश्ती में
देसी और विदेशी
जोड़े दिखते हैं
धोबी के गदहे भी आकर
घोड़े दिखते हैं।

मिर्जा भाई दाने देते
रोज़ कबूतर को
और रामजी के दाने
कौए खाते हैं
पुन्नू साव खिला रहे हैं
आंटे की गोली
मछली उछल-उछल कर खाती
है कितनी भोली!
उसी घाट पर एक मछेरा
जाल बिछाये है
पाप पुण्य की लहरें लड़तीं
गंगा के तट पर
रोज़ चिताएँ जलती रहतीं
गंगा के तट पर।

8.11.14

संस्मरण

पैसिंजर ट्रेन में बैठने भर की जगह थी। जाड़े के दिनों में मैं तजबीज कर इंजन की तरफ पीठ करके बैठता हूँ ताकि खराब हो चुकी खिड़कियों से होकर हवा का तेज़ झोंका मेरी सेहत न खराब कर दे।

युसुफपुर स्टेशन से मिर्जा चढ़ा और मेरे सामने आकर बैठ गया। मेरे बगल में उसने अपनी वृद्ध अम्मी को बिठाया जो कुछ देर बाद बैठे-बैठे, टेढ़ी-मेढ़ी हो कर सोने का उपक्रम करने लगीं। मोबाइल से फेसबुक चलाते-चलाते मैंने महसूस किया कि वह मुझसे कुछ कहना चाहता है। हिचकते हुए उसने कहा-'आप मेरी जगह बैठ जाते तो मैं अम्मी का सर गोदी में रखकर सुला देता।' उसका प्रस्ताव सुनते ही एक झटके से मैंने मना कर दिया-'नहीं-नहीं, मैं यहीं ठीक हूँ। वहाँ बैठा तो मुझे ठंडी लग जायेगी।' मिर्जा बोला-'ठीक है, कोई बात नहीं। अम्मी सो रहीं थीं इसलिए मैंने ....

नहीं, मैं मिर्जा को नहीं जानता। जो अजनबी मुझे प्यारा लगता है मैं उसके धर्म के अनुसार उसका नाम अपने दोस्तों, भाइयों के नाम से रख लेता हूँ और अपनी बात कहता हूँ। 

मेरा ध्यान फेसबुक से भंग हो चूका था। मुझे लगा मैंने कुछ गलत बोल दिया। विचार किया तो लगा गलत नहीं, बहुत गलत बोल गया! मैं उस लड़के को ध्यान से देखने लगा। कितना प्यारा लड़का है! अपने मिर्जा भाई के लड़के जैसा। अम्मी से कितनी मोहब्बत करता है! मैं उठकर खड़ा हो गया-अम्मी को ठीक से सुला दो! माँ को सुला कर वह उनके पैर उठाकर बैठने लगा तो मैंने दुसरे यात्रियों से थोड़ी जगह बनाने का अनुरोध कर उसे भी अपने पास ही बिठा लिया। अम्मी को चैन से सोने दो, तुम यहीं बैठो।

रास्ते भर मिर्जा मुझे धन्यवाद देता रहा और मैं ईश्वर को जिसने समय रहते मेरा विवेक जगा दिया। मुझे महसूस हुआ कि इंसान को इंसान बनने से सबसे पहले उसका स्वार्थ रोकता है। विवेक ने साथ दिया तो आत्मा चीखने लगाती है और वह फिर हैवान से इंसान बन जाता है।