20.10.14

भूख बड़ी कुत्ती चीज है!

कुत्ते 
दौड़ते हैं 
बीच सड़क पर
इस पार से उस पार
उस पार से इस पार
कभी कोई
बाइक के सामने आ जाता है
कभी कोई
कार के सामने आ जाता है
बाइक के सामने
आदमी की टांग टूटती है
कार के सामने
कुत्ते की टांग टूटती है
कुत्ता 
किसी से टकराना नहीं चाहता
वह चाहता है
रोटी का एक टुकड़ा

भूख बड़ी कुत्ती चीज है!

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12.10.14

भय

अँधेरे से,
गली में भौंकते 
कुत्तों से,
छत पर कूदते 
बंदरों से,
खेत में भागते 
सर्पों से,
अब डर नहीं लगता।

दुश्मनों के वार से,
दोस्तों के प्यार से,
खेल में हार से,
दो मुहें इंसान से,
डर नहीं लगता।

जान चुका हूँ
मान/अपमान
सुख/दुःख
मिलता है
इस जीवन में ही,
भूत या भगवान से
अब डर नहीं लगता।

माँ और मसान
दोनों की गोद में
भूल जाता है प्राणी
अपना अभिमान
दोनों का होना भी तय
मगर दिल है
कि मानता नहीं
भयभीत होने के सौ बहाने 
ढूँढ ही लेता है!
न जाने मुझे
किस बात का भय रहता है!!!

3.10.14

कूड़ा

नदी पर पुल
पुल के किनारे कूड़े का ढेर
कूड़े के ढेर पर बच्चे
बच्चों के हाथों में प्लास्टिक के बोरॆ
बोरों में
शाम की रोटी का सपना

पुल के नीचे नदी
नदी में नाला
नाले में डुबकी लगाता आदमी
आदमी के एक हाथ में लोटा
दुसरे में नाक।

न कभी
जल की पवित्रता घटी
न कभी
किसी की नाक कटी
मगर
कुछ तो हुआ है
जो सभी ने
उठा लिये हैं
हाथों में झाड़ू!

2.10.14

बंदर प्रवृत्ति

बंदर
भूल चुके हैं
सुग्रीव,बाली या हनुमान की ताकत
छोड़ चुके हैं
पहाड़
नहीं भटक पाते
कंद मूल फल के लिए
वन वन।

सभी बंदर
नहीं जा पाते
संकट मोचन
सबको नहीं मिलते
भुने चने या
देसी घी के लड्डू!
अधिकांश तो
मारे-मारे भटकते फिरते हैं
छत-छत, सड़क-सड़क, टेसन-टेसन...
घुड़की देते हैं
भीख मागते हैं
छिनैती करते हैं
फंस गए तो
नाचते भी हैं
मदारी के इशारे पर।

बापू!
जन्म दिन पर ही नहीं
कभी-कभी
एक पंक्ति में बैठे
दिख जाते हैं
तीन बंदर
तो भी तुम्हारी
बहुत याद आती है।

हा..हा..हा...
तुम वाकई महान आत्मा थे!
तीन बंदरों के सहारे बदल देना चाहते थे
सम्पूर्ण मानव समाज की
बंदर प्रवृत्ति!
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