30.8.11

ईद मुबारक



का मिर्जा का चाँद दिखा..?

हाँ पंडित जी चाँद दिखा।

बधाई हो..बधाई हो...ईद-उल-फितर की बधाई हो।

मिर्जा हंस कर बोले...आपको भी बधाई हो । वैसे आप की इतनी खुशी से लग रहा है कि आप ईद से कम कल की छुट्टी पक्की होने की खबर से अधिक खुश हैं। ईद-उल-फितर का मतलब भी समझते हैं ?

मैने कहा..क्या मिर्जा भाई..! इतने दिनो से बनारस की गंगा जमुनी संस्कृति में रह कर जीवन बिताया अभी इतना भी नहीं समझेंगे ! छुट्टी ससुरी कहां जाती कल नहीं तो परसों मिल ही जाती। फितर का मतलब दान होता है तो ईद-उल-फितर का सीधा मतलब तो यही हुआ कि वह खुशी जो हमे दान करने से प्राप्त होती है। रमजान का पवित्र महीना बीता, आपने रोजे रखे, नमाज पढ़ी, त्याग किया, खुदा ने खुश हो कर आपको ईनाम के तौर पर ईद का तोहफा दिया। क्यों मियाँ..ठीक कह रहा हूँ न ?

अरे वाह ! बिलकुल ठीक कह रहे हैं पंडित जी...अरबी कैलेंडर के हिसाब से रमजान के बाद माहे शवाल आता है। इसकी प्रथम तिथि को ही हम ईद मनाते हैं।

तब तो मिर्जा भाई कल खूब कटेगी...? बकरे हलाल होंगे..?

मिर्जा बोले...यहीं चूक कर गये पंडित जी। यह बकरीद नहीं है। ईद-उल-फितर है। इसे मीठी ईद भी कहते हैं। यह दूध और सूखे मेवे से बनी सेवइयों से मनाते हैं। आप जैसे बहुत से लोग समझते हैं कि यह मांसाहारी त्यौहार है लेकिन यह शाकाहारी है।

क्या कह रहे हैं मिर्जा भाई...! मुझे दावत भी मिल चुकी है।

अरे भाई...खाने वाले कुछ भी खायें, आनंद लें, अलग बात है लेकिन जब आपने पूछा तो आपको सही जानकारी देना हमारा फर्ज है। यह निरामिष त्यौहार है।

यह फितरा और जकात क्या होता है मिर्जा..? मैने सुना है कि ईद की नमाज पढ़ने से पहले इसे निकालना अनिवार्य होता है!

संक्षेप में आप यह समझ लो कि दोनो दान है। फितरा वयस्क रोजेदार के लिए अनिवार्य है। ईद की नमाज पढ़ने से पहले प्रत्येक वयस्क रोजेदार को 22.50 पैसे का दान करना अनिवार्य होता है। जकात साल भर की आय का चालीसवाँ भाग अर्थात एक रूपये में 2.5 पैसा दान करना होता है। दोनो ही निकाल कर पहले ही अलग कर दिया जाता है। दान की राशि निर्धन, अपंग या सबसे अधिक जरूरत मंदों को दी जाती है।

अच्छा.s..s..! तो इसी दान से जो खुशी मिलती है उसे ही ईद-उल-फितर कहते हैं ? वाह ! क्या बात है !! कितना अच्छा त्यौहार है !!!

अरे पंडित जी...इतना समझ लिये तो आप भी कुछ दान-पुन करेंगे..? छोड़िए, कल आइये हमारे यहाँ, मीठी सेवइयाँ आपका इंतजार कर रही हैं।

जरूर मिर्जा...क्यों नहीं। ईद का नाम आते ही मेरे मुँह में मीठी सेवइयों का स्वाद अभी से ताजा हो रहा है। वैसे भी कल हमारे यहां तीज का चाँद मेरी लम्बी उमर की सलामती के लिए भूखा-प्यासा रहने वाला है। बस आप ही का सहारा है। आज आपने ईद के बारे में बहुत कुछ समझा दिया। आपको ईद-उल-फितर की ढेर सारी बधाइयाँ।

आपको भी ईद मुबारक।

(विशेषः सभी ब्लॉगर बंधुओं को ईद मुबारक। मैने सोचा अपने अल्प ज्ञान को इसी अंदाज में रखकर ईद मनायी जाय। कहीं कोई चूक हुई हो तो माफ करने के साथ-साथ सुधरवाने का भी कष्ट करें।)




28.8.11

बड़ा मजा आयल



जितलन अन्ना टूटल अनशन
बड़ा मजा आयल।
झूम झूम के नचलस जन जन
बड़ा मजा आयल।

जे अन्ना के आँख दिखउलस
कटलस खूब बवाल
जे अन्ना के गारी देहलस
चहलस फांसी जाल

रेती कs मछली जस झुलसल
बड़ा मजा आयल।
जितलन अन्ना टूटल अनशन
बड़ा मजा आयल।

 पहिले कहलन भ्रष्टाचारी
लुटले हौवन माल
करत करत कर देहलन उनके
अनशन पर सवाल

देहलन अन्ना जब जवाब तs
बड़ा मजा आयल।
जितलन अन्ना टूटल अनशन
बड़ा मजा आयल।

कल तs हमके लागल बतिया
हौ ई त्रेता कs
ऐसन जादू चलल कि भइलन
नेता जनता कs

संसद भयल अन्ना के साथे
बड़ा मजा आयल।
जितलन अन्ना टूटल अनशन
बड़ा मजा आयल।

 आधी जीत मिलल हौ अबहिन
बाकी पूरी बात
जन जन कs विश्वास जगल हौ
सूरज हमरे हाथ

सिमरन इकरा जूस पियउलिन
बड़ा मजा आयल।
जितलन अन्ना टूटल अनशन
बड़ा मजा आयल।
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24.8.11

जेहर देखा ओहर अन्ना



जिधर देखो उधर अन्ना की ही धूम मची है। टी0वी0 खोलो तो अन्ना...! चाय-पान की अड़ी में एक पल के लिए रूको तो अन्ना..! हर ओर उन्ही का हाल जानने की उत्सुकता, उन्हीं के बारे में बोलने..सुनने की होड़। दुर्भाग्य से कहीं आप कवि के रूप में जाने जाते हैं तो आपको बलात सुनना ही पड़ेगा...कवि जी ! फालतू कविता नहीं...!अन्ना पर क्या लिखे यह बताइये..? कुछ नहीं लिखे...! कवि के नाम पर कलंक मत लगाइये...! अरे ! कुछ तो सुनाइये। अब आप ही बताइये .. इस माहौल में कोई और कर भी क्या सकता है.. ? जो पढ़ा, जो सुना वही लिखे दे रहा हूँ...अपनी भाषा में। मेरा मतलब काशिका बोली में। सही है..? शीर्षक यही मान लीजिए.....

जेहर देखा ओहर अन्ना


का रे चंदन कइला अनशन ?
का गुरू का देहला धरना ? !
का रे रमुआँ चहवे बेचबे ?
सुनले नाहीं अन्ना अन्ना !

का मालिक केतना मिल जाई ?
होई का अब ढेर कमाई ?
बड़ लोगन कs बड़की बतिया
काहे आपन जान फसाई ?

भ्रष्टाचार मिटल अब जाना
संघर्ष अजादी कs तू माना
राजा बन जे राज करत हौ
सेवक बन नाची तू माना !

तोहरो लइका पढ़ी मुफत में
फोकट में अब मिली दवाई
राशन कार्ड मिली धड़ल्ले
केहू तोहके ना दौड़ाई !

का मालिक मजाक जिन करा
लइकन के बर्बाद जिन करा
सब शामिल हौ ई जलूस में
मन डोले, विश्वास जिन करा

ठोकत हउवन ताल भी चौचक
घोटत हउवन माल भी चौचक
निर्धन कs खून चूस के
हउवन लालम लाल भी चौचक

का गुरू ई उलटे भरमइबा !
सांची के भी तू झुठलइबा !
सब इज्जत से जीये चाहत
चोट्टन से एतना घबड़इबा !

नाहीं केहू देव तुल्य हौ
सब नाहीं हौ मन से गंदा
जब कुइयाँ में भांग पड़ल हो
हो जाला सबही अड़बंगा

के संगे हौ ई मत देखा
जन-जन के झुलसे दs पहिले
हो रहल हौ मंथन भीषण
अमृत के निकसे दs पहिले

ऐसन एक व्यवस्था होई
भ्रष्टाचारी जेल में रोई
ना होई बेमानी जरको
ना केहू अन्यायी होई

निर्बल कs बल हउवन अन्ना
निश्छल देखत हउअन सपना
कैसे चुप रह जइबा बोला
जेहर देखा ओहर अन्ना
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22.8.11

व्यवस्था परिवर्तन


कुछ लोग जगे रहते हैं। कुछ लोग सोए रहते हैं। कुछ ऐसे हैं जो न जगते हैं न सोते हैं सिर्फ बेचैन रहते हैं। सिर्फ चिंता करते हैं। चिंतित होते हैं बच्चों के भविष्य के प्रति। चिंतित होते हैं स्वास्थ के प्रति। चिंतित होते हैं भौतिक साधनो के प्रति। जो नहीं रहता उसी की कमी उन्हें अधिक खटकती है। समूह में हुए तो सभी दुःखों के लिए बढ़ रही महंगाई, बढ़ रहे भ्रष्टाचार और इन पर नियंत्रण न कर पाने वाली सरकार को ही जिम्मेदार मानते हैं। इस प्रक्रिया में कहीं खुद में दोष दिखा भी तो यह सोचकर कंधे झटक लेते हैं कि उहं.! ऐसा तो सभी करते हैं। इस तरह वे राष्ट्र के प्रति भी चिंतित होकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं। हल दिखता है तो हल की तरफ भागते हैं। नहीं दिखता तो कुंठित होते हैं, हताश होते हैं या नशा करते हैं। नशे में खुश रहते हैं। ख्वाब देखते हैं। सुनहरे ख्वाब ! सुखी जीवन के सुंदर ख्वाब। सुंदर प्रेयसी के ख्वाब। हैंडसम युवक के ख्वाब। सती सावित्री पत्नी के ख्वाब । पूर्ण पुरूष के ख्वाब। श्रवण कुमार जैसे पुत्र के ख्वाब। इतना देख कर तृप्त नहीं होते, नशा पूरी तरह नहीं उतरता तो आगे बढ़ती है उसके ख्वाबों की दुनियाँ। देखने लगते हैं भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र के ख्वाब !

इन सबके अलावा अधिसंख्य और भी हैं जो जीवित हैं । उन्हे पता ही नहीं चलता कि जगना या सोना किसे कहते हैं ! वे बेचैन भी नहीं रहते क्योंकि बेचैन होने के लिए उनके पास वक्त ही नहीं होता। उठने के साथ ही उनके आँखों के सामने दिन में तारे की तरह नाचने लगती है रोटी। वे भूखे हैं। नंगे हैं। रोगी हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक भूखे, नंगे, रोगी। जैसे थे वैसे के वैसे। एक बात मजे की है कि होता है उनके पास मतदाता पहचान पत्र या राशन कार्ड। थोड़े सशक्त हुए तो आ जाता है बीपील कार्ड भी। इन कार्डों से उनके आदमी होने और राष्ट्र के नागरिक होने का भान होता है। इन कार्डों से उनके धर्म और जाति का ज्ञान होता है। इन कार्डों से वे बांटे जा सकते हैं । यही वे कार्ड हैं जिसके आधार पर धर्मोपदेशक और नेता उन्हें पहचान पाते हैं। कौन मेरे हैं, कौन पराये ! इन्हीं कार्डों के बल पर वे भी जान पाते हैं कि वे भी आदमी हैं उनका भी महत्व है।

जो जगे हैं वे सबको जगाना चाहते हैं। जो सोए थे उनमें से कुछ जग भी जाते हैं, कुछ जगने की प्रकृया में बेचैन हो जाते हैं। जो बेचैन हैं उनकी स्थिति बड़ी विचित्र रहती है। वे मानते ही नहीं कि वे जगे नहीं हैं। लाख जगाओ जगते ही नहीं बस भीड़ में शामिल भर हो जाते हैं। वैसे ही जैसे चिंतित हो नशे में खो जाते हैं। जगे हुए लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या अधिसंख्य को जगाने की होती है। बिना अधिसंख्य के जगे वे क्रांति नहीं कर पाते। बिना क्रांति के सत्ता परिवर्तन की लड़ाई अधूरी रह जाती है। दुर्भाग्य यह होता है कि सत्ता उनके मतों पर राज करती है जिन्हें नहीं मालूम कि जगना और सोना किसे कहते हैं। वे बेचैन भी नहीं होते क्योंकि बेचैन होने के लिए उनके पास वक्त ही नहीं होता। उठने के साथ ही शुरू हो जाता है जीने के लिए संघर्ष। सत्ता जानती है कि बिना इनके जगे उन्हें कोई हटा नहीं सकता। सत्ता मानती है कि ये मेरे साथे हैं और बिना इनके कोई परिवर्तन संभव हो ही नहीं सकता। वे जो जीवित हैं, वे जो सिर्फ रोटी कपड़ा और मकान के लिए ही जीवन भर संघर्ष करते-करते मर जाते हैं, वे उन्हें ही अपना गॉड फादर मानते हैं जिन्होने उनके लिए मतदाता पहचान पत्र बनवाया, राशन कार्ड बनवाये, बीपीएल कार्ड बनावाये और तो और बच्चों को स्कूल भी भेज रहे हैं पढ़ने के लिए जहाँ मिलती है रोटियाँ.....!

कभी-कभी सत्ता से चूक हो जाती है। बढ़ जाती है जब हद से ज्यादा लूट तो बढ़ने लगती है महंगाई। महंगाई छीनने लगती है भूखों के मुँह से निवाले। मिल नहीं पाती जनता को रोटियाँ भी। विद्रोही हो जाती है अधिसंख्य जनता जिनके बल पर राज करती आई है सत्ता। भूख इंसान को पागल बना देती है। साथियों को मरते देख घबड़ा जाती है जनता। शामिल हो जाती उनकी भीड़ में जो लाना चाहते हैं क्रांति। बेसूध सत्ता जागती है मगर तब तक देर हो चुकी होती है। लटक चुका होता है फांसी का फंदा। हो चुकी होती है क्रांति।

अन्ना हजारे का संघर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं व्यवस्था परिवर्तन के लिए है। वह संघर्ष जिसमें सोते को जगाने की व्यवस्था है। वह संघर्ष जिसमें भ्रष्टाचारियों को जेल में भेजने की व्यवस्था है। फिर चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो। वह संघर्ष जिसमें बेचैन को सही दिशा दिखाने की व्यवस्था है। वह संघर्ष जिसमें अधिसंख्य जनता को यह एहसास कराने की व्यवस्था है कि तुम्हारे लिए भी खुले हैं स्कूल, कॉलेज, अस्पताल। तुम्हारे लिए भी हैं विज्ञान के चमत्कार। भूख मिटाना, जनसंख्या बढ़ाना और सो जाना सिर्फ यही नहीं है तुम्हारी दुनियाँ। तुम भी आदमी हो। तुम भी इस देश के नागरिक हो। तुम्हारे लिए भी आई थी आजादी। तुम भी हो आजादी के हिस्सेदार।

देखना यह है कि कितना गड़बड़ाया है व्यवस्था का संतुलन ! कितनी जगी है अधिसंख्य की भूख ! कब होता है व्यवस्था परिवर्तन ! चाहे जो हो, चाहे जब हो लेकिन एक बात तो आइने की तरह साफ होती जा रही है कि यह परिवर्तन होकर रहेगा। आगे चलकर राजनैतिक दलों में परिवर्तन का श्रेय लेने की होड़ लग जाय तो भी कोई आश्चर्य नहीं होगा। अभी तो जनता के हाथों में सत्ता के लिए सोसाइट नोट बनकर फड़फड़ा रहा है जन लोकपाल बिल।

17.8.11

नदी में हलचल है


मेढक उछल रहे किनारे
मछली का मन चंचल है
नदी में हलचल है

मगरमच्छ लाचार पड़े हैं
संत समाधी पर अड़े हैं
आगे गहरा कुआँ खुदा है
पीछे चौड़ी खाई है

कल कल में अब दलदल है
नदी में हलचल है।

एक भगीरथ ने ललकारा
निर्मल होगी नदी की धारा
गंदे नाले सभी हटेंगे
कचरे साफ अभी करेंगे

निरूपाय खल का बल है
नदी में हलचल है।

हंसो से कह रहे शिकारी
नीर क्षीर विवेक छोड़ दे
पंछी चीख रहे मूर्ख तू
अब पिंजड़े के द्वार खोल दे

बढ़ रहा ज्वार पल पल है
नदी में हलचल है।

15.8.11

टूटा मौन


टूटा मौन
पसर गया सन्नाटा
वैसे ही जैसे
थमता है शोर
जब आते हैं गुरूजी
कक्षा में

लड़नी होगी
परिवर्तन की लड़ाई
सुधरेगी तभी
लोकशाही
कहीं लोग
खाने के लिए जी रहे हैं
कहीं लोग
जीने के लिए भी नहीं खा पा रहे हैं
कोई सोचता है
क्या-क्या खाऊँ
कोई सोचता है
क्या खाऊँ?
बढ़ा है भ्रष्टाचार
बढ़ी है मंहगाई
अभी तो है
अंगड़ाई
आगे और है
लड़ाई

दे कर
यक्ष प्रश्नों का बोझ
बता कर
समाधान का मार्ग
चले गये गुरूजी
कक्षा से

पसर गया सन्नाटा
छा गई खामोशी
कहीं यह
तूफान से पहले की तो नहीं ?

ऐसे मौके पर
गाते थे बापू
एक भजन
रघुपती राघव राजाराम
सबको सम्मति दे भगवान।

मौन की गूँज

आपने कभी सुनी है
मौन की गूँज?
सुनिए
मैं सुन रहा हूँ

राजघाट में
बापू की समाधी पर
गूँज रहा है
मौन
सुनाई दे रही है उसकी धमक
वहाँ से
यहाँ तक!

मौन जब चीखता है
सुनने लगते हैं
बहरे भी
डरने लगते हैं
अत्याचारी भी

क्या होगा आगे?
जानना चाहते हैं सभी
वे भी
जो मौन के साथ हैं
वे भी
जिनके कारण गूँजा है
मौन

अरे मरारे..!
चीख रहे हैं अधिकारी
हरे मुरारे
कह रही है जनता
बढ़ता जा रहा है
भीड़ का घेरा
मौन हैं
अण्णा हजारे।
..............

11.8.11

जाम झाम और बनारस की एक शाम ।


दफ्तर से घर जा रहा था। सावन की टिप-टिप और व्यस्त सड़क दोनो का मजा ले रहा था। सड़क जाम तो नहीं थी मगर सड़क पर हमेशा की तरह झाम अधिक था । सभी सवारी गाड़ियाँ एक समान रफ्तार से एक के पीछे एक चल रही थीं। बगली काट कर आगे निकलने की होड़ में दो दो रिक्शे अगल बगल आपस में सटकर चल रहे थे। सवारी गाड़ियाँ आगे निकलने की फिराक में चपाचपा रही थीं । न जाने वाले समझते थे कि आने वाले को आने देना चाहिए न आने वाले समझ रहे थे कि ये नहीं जायेंगे तो हम कैसे जा पायेंगे। एक साइकिल वाला जब मेरी बाइक को ओवरटेक कर आगे बढ़ा तो मुझे होश आया कि मैं भी सड़कर पर बाइक चला रहा हूँ। मेरे बाइक के अहम को गहरा धक्का लगा । मैंने भी एक्सलेटर तेज कर दिया। बनारस की सड़कों में सभी सवारियाँ सम भाव से चलती हैं। कोई किसी के भी पीछे चल सकता है, कोई किसी के भी आगे निकल सकता है। सभी प्रकार की वाहन पाये जाते हैं। साइकिल, बाइक, टैंपो, रिक्शा, इक्का, टांगा, कार, बस, ट्रक, ट्रैक्टर और बैलगाड़ी भी। सभी एक साथ चलते हैं। कुछ सड़कें तो ऐसी होती हैं जहाँ आप चलती बस से उतर कर, सब्जी खरीद कर, फिर वापस उसी में चढ़कर जा सकते हैं। सांड़, भैंस, गैये, आवारा कुत्ते और सड़क पर चलने वाले पद यात्रियों के लिए कोई पद मार्ग मेरा मतलब फुट पाथ नहीं बना है। कहीं है भी तो आसपास के दुकानदारों ने अतिक्रमण करके उसे अपना बना लिया है। बाइक के अहम को चोट लगते देख मैं जैसे ही ताव खा कर आगे बढ़ा तो सहसा ठहर सा गया । सामने एक बस खड़ी थी। जिसके पीछे नीचे की ओर लिखा था...कृपया उचित दूर बनाये रखिए। बाद में ऊपर देखा तो लिखा पाया....पुलिस ! मैने दोनो को मिलाकर पढ़ा...कृपया पुलिस से उचित दूरी बनाये रखिए। वह पुलिस की बस थी और अंदर ढेर सारे एक साथ बैठे थे । सहसा एहसास हुआ कि पुलिस लिखावट में कितनी विनम्रता बरतती है ! ट्रक वालों की तरह असभ्य होती तो लिख देती...सटला त गइला बेटा। वैसे मैने विनम्रता पूर्वक लिखे संदेश को भी गंभीरता से ही लिया। यह मेरे मन का आतंक हो सकता है। मुझे किसी ने बरगलाया हो सकता है। यह हो सकता है कि मैने समाचार पत्र पढ़-पढ़ कर या टी0वी0 की सनसनी देख देख कर पुलिस के बारे में नकारात्मक ग्रंथी पाल ली हो। वास्तविक अनुभव तो कभी बुरा नहीं रहा। पुलिस हमेशा मेरे साथ वैसे ही मिली जैसे एक सभ्य आदमी दूसरे सभ्य आदमी से मिलता है। वे खुद ही गलत होंगे जो पुलिस को गलत कहते हैं। गलत व्यक्ति से पुलिस अच्छा व्यवहार कैसे कर सकती है ! आप कह सकते हैं कि तुम मूर्ख हो तुम्हें मालूम नहीं कि कभी उसी बनारस में एक साधारण से सिपाही ने एक बड़े नेता को पीटा था। हो सकता है आप सही ही कह रहे हों मगर इससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि हर बड़ा नेता अच्छा आदमी ही होता है। बड़ा नेता बनना और अच्छा आदमी बनना अलग भी हो सकता है। पुलिस की तुलना खुद अपने द्वारा चुने गये नेता जी से करिए तब आपको भी एहसास हो जायेगा कि पुलिस कितनी अच्छी है! नेता अच्छे लगे तो समझिये आप खुशकिस्मत हैं। मैं बस के पीछे-पीछे चल रहा था। बस को ओवरटेक कर सकता था पर पुलिस को ओवरटेक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। कृपया उचित दूरी बनाये रखिये की चेतावनी सर पर हथोड़े की तरह बज रही थी। दरवाजे से एक पुलिस वाले ने अपना सर निकाला ही था कि बायें से तेजी से ओवर टेक करता एक युवा बाइक सवार उससे भिड़ते-भिड़ते बचा। किसी को कुछ नहीं हुआ मगर मैने पुलिस वाले को डंडा लहराते और मुंह चलाते जरूर देखा। क्या कहा सुन नहीं पाया। जरूरी नहीं कि गाली ही दे रहा हो। कानून भी समझा सकता है। सड़क पर कानून पुलिस से बढ़िया कोई नहीं समझा सकता। वकील भी नहीं।

गिरजा घर चौराहे के आगे गोदौलिया चौराहा है। बनारस का व्यस्ततम चौराहा। यहां जाम लगना बनारस वालों के लिए आम बात है। ट्रैफिक पुलिस डंडा भाज रही थी। उन्हें देख सुबह-सुबह घर से निकलते वक्त वास्तव जी के घर आई भांड़ मंडली जेहन में सहसा कौंध गई। वास्तव जी दुहाई दे रहे थे और वे जोर जोर से हाथ हिला कर भद्दे इशारे कर रहे थे। वास्तव जी को दूसरा पोता हुआ था । एक तो सभी को हो सकते हैं। वे दोहरी खुशी मना रहे थे। भांड़ सांड़ न हों तो रस नहीं बनता । बनारस बनारस नहीं लगता। अचानक बारिश तेज हो गई। एक रिक्शे पर एक अंग्रेज ( सभी गोरी चमड़ी वाले को हमारे जैसे आम बनारसी अंग्रेज ही समझते हैं फिर चाहे वह अमेरिकन ही क्यों न हो !) अपनी अंग्रेजन से बातें कर रहा था। अभी कुछ देर पहले उसने दुकान के भीतर बैठे गाय की तश्वीर उछल-उछल कर खींची थी। शायद उसी के बारे में दोनो आश्चर्य चकित हो बातें कर रहे थे। बीच सड़क पर बैठा एक विशालकाय सांड़ अचानक से खड़ा हो गया। कुछ तो तेज बारिश कुछ सांड़ का भय कि भीड़ अपने आप इधर उधर छितरा गई। मैने देखा कि अंग्रेज दंपत्ति रिक्शे से उतर कर गली में घुस रहे थे और गली के कुत्ते जोर जोर से उनको भौंक रहे थे। अंग्रेज बहादुर था इसमें कोई संदेह नहीं। यह मैं इस आधार पर कह सकता हूँ कि कुत्तों के भौंकने के बाद भी वह उनकी और हमारी तश्वीर खींचना नहीं छोड़ रहा था। आगे जा कर वह घाट पर बैठे भिखारियों की तश्वीर भी खींचेगा यह मैं जानता था। बारिश और तेज हो चुकी थी। रास्ता पूरी तरह साफ हो चुका था। मुझे भींगने के भय से अधिक घर पहुंचने की जल्दी थी। बारिश में रुक कर समय बर्बाद करना मुझे अच्छा नहीं लगता। शाम के समय घर लौटते वक्त सावन में बाइक चलाते हुए भींगने का अवसर कभी-कभी मिलता है। इसे मैं हाथ से जाने नहीं देता। भींगने के बाद घर पर पत्नी की सहानुभूति और गर्म चाय दोनो एक साथ मिल जाती है। घर आकर चाय पीते वक्त रास्ते के सफर के बारे में सोचते हुए एक बात का मलाल था कि हम जैसे हैं, हैं । अपना जीवन अपनी तरह से जी रहे हैं मगर वो अंग्रेज हमारी तश्वीर खींच कर ले गया । न जाने हमारे बारे में क्या-क्या उल्टा-पुल्टा लिखेगा ! जबकि दुनियाँ जानती है कि हम कितने सभ्य, सुशील, अनुशासन प्रिय और विद्वान हैं!

5.8.11

सावन में......



मुझे याद है
घनी बरसात में
तुम चाहती थी
भींगना
और मैं
भींड़ की दुहाई दे
कोने में अड़ा था।

मुझे याद है
रिमझिम फुहार में
जिस पल
वृक्ष की सबसे ऊँची फुनगी पर बैठी चिड़िया
सुखा रही थी पंख
सज रहे थे
तुम्हारी बंद पलकों में
इंद्रधनुष
जग रही थी
उड़ने की चाह
और मैं
उड़न खटोले की जगह
छाता लिये
खड़ा था !

तपती धूप में
चलते-चलते
भूल जाता हूँ
सब कुछ
याद रहती है
मंजिल की दूरी
या जिस्म की थकान
मगर सावन में
याद आता है
बहुत कुछ
जैसे कि याद है
चोरी छुपे ही सही
जिंदगी के कुछ पल
जी लिया करता था
इतनी बुरी भी नहीं कटी
अपनी जिंदगी।
.............................................