5.11.22

कच्छा बनियाइन

 
भोर के अजोर से पहले दौड़ रहे प्रातः भ्रमण करने वालों की भीड़ में एक 'कच्छा बनियाइन' वाला भी था। मैंने पूछा,"कौन हो? कहाँ रहते हो?"

वह बोला,"यही तो मैं जानना चाहता हूँ, ये मॉर्निंग वाकर्स कौन हैं? कहाँ रहते हैं? कब आते हैं? और कब वापस जाते हैं? अच्छा बताइए! आप कहाँ रहते हैं?|

मैं थोड़ा डर गया। कहीं सही में यह  कच्छा बनियाइन गिरोह का सदस्य तो नहीं! 

मैन हिम्मत करके पूछा,"जानकर क्या करोगे भाई? 

उसने हँसते हुए कहा, "आराम रहेगा, धंधा बढ़िया चलेगा।"
 
मैं और डर गया, "धंधा!!! करते क्या हो?"

उधर रेलवे क्रासिंग के पार रहता हूँ। वो सामने मकान है न? उसी के बगल में जाना है। घर में कोई पुरुष नहीं है। अकेली महिला है। सोचा, वहीं हाथ साफ़ करूँ! उनके टँकी में पानी नहीं चढ़ रहा। सुबह-सुबह पानी न मिले तो पखाना/नहाना भी रुक सकता है। क्या करूँ! अपना धंधा ही ऐसा है। घबराइए नहीं भाई साहेब! मैं प्लम्बर हूँ। 
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3.11.22

डेंगू 2

एक डेंगू मच्छर बहुत परेशान था। सार्वजनिक शौचालयों में साफ सफाई के लिए तेजाब का छिड़काव हो रहा था। अपनी जान बचाने के लिए उसे बगल की गली के किनारे धरे एक प्लास्टिक के डिब्बे के साफ पानी की शरण लेनी पड़ी। 


मनुष्यों का खून मिलने की संभावना यहाँ भी थी। सभी भद्र पुरुष मूत्र त्याग करने के लिए शौचालयों में जाना पसंद नहीं करते। उनका मानना है कि सार्वजनिक शौचालयों में बहुत गंदगी/मच्छर रहते हैं। वे गली के किनारे किसी ऐसे साफ जगह की तलाश करते हैं जो सार्वजनिक शौचालयों से साफ हो। डेंगू मच्छर ऐसे ही किसी भद्र पुरुष की तलाश में था लेकिन यहाँ अब तक जितने भी आए सब जीन्स का पैंट और मोजा-जूता पहने हुए आए। उनके मुँह खुले थे लेकिन डेंगू मच्छर, चेहरे की ऊँचाई तक नहीं पहुँच पा रहा था।


कैसे काटूँ? यह सोच ही रहा था, एक भद्रपुरुष दिख गया लेकिन यह भी मोटे जीन्स का पैंट, मोजा-जूता और तो और हाथों में दस्ताने भी पहने हुए था। इस बार मच्छर से सहन नहीं हुआ! भद्र पुरूष ने जैसे ही पेशाब करना शुरू किया उसने हिम्मत कर के, उसी स्थान को लक्ष्य बनाकर काट ही लिया! मनुष्य को थोड़ी चुभन हुई लेकिन बिना कुछ समझे, चेन बन्द कर, खुजाता हुआ आगे बढ़ गया। इस तरह डेंगू मच्छर की प्यास बुझी। 

...@देवेन्द्र पाण्डेय।

डेंगू

भोला को डेंगू हुआ। ठीक भी हो गया लेकिन यह पता नहीं चला कि आखिर डेंगू का मच्छर था तो कहाँ था? दफ्तर में खोज हुई, घर में खोज हुई लेकिन कहीं भी डेंगू मच्छर के संकेत नहीं मिले। कुछ दिन बाद उसके साथ, एक ही कमरे में काम करने वाले सहकर्मी की पत्नी को भी डेंगू हो गया! अब साथियों के मन में नई शंका ने जन्म लिया। मच्छर उसके घर में था तो भोला को डेंगू क्यों हो गया!!! ☺️

2.11.22

लोहेकाघर-63

हम भंडारी स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक 1 पर पीछे की तरफ एक बेंच में अकेले बैठकर दून की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ट्रेन बांयी ओर से दायीं ओर जाएगी। फिलवक्त एक मालगाड़ी बाएं से दाएं जा रही है। मालगाड़ी में कोयला नहीं, चूना लदा प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसके बाहर के डिब्बों में चूना लगा है। निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि मालगाड़ी के डिब्बों में चूना ही लदा है। हो सकता है यह किसी को चूना लगाकर भाग रही हो! अपने देश में मालगाड़ी व्यक्तिगत सम्पत्ति तो नहीं है, सरकारी है तो सरकार को ही चूना लगाकर भाग रही होगी, और किसी को चूना लगाना रेलवे के वश में नहीं है।


सामने प्लेटफॉर्म क्रमांक 2 और 3 के बीच भोले भंडारी का मन्दिर शांत है, कोई भीड़ नहीं दिख रही। मन्दिर के आगे-पीछे बरगद और पीपल का एक-एक घना वृक्ष है। शाम 8 बजे के आसपास यहाँ भक्त जुटते हैं और घण्टे-घड़ियाल के साथ भोलेनाथ की आरती भी करते हैं। यह वही समय है जब गोदिया के आने का समय होता है। जब ऑफिस में काम की वजह से देर हो जाती थी तो कई बार गोदिया से भी बनारस गए हैं। गोदिया शाम 10 बजे के आसपास बनारस पहुँचाती है, कभी-कभी तो रात के 12 भी बज जाते थे। कोरोना के बाद ट्रेन का सफर कम हो चुका है। मेरे भाग्य से दून के यात्रियों की किस्मत फूटी, लेट हुई तो शाम 5 और 6 के बीच मिल जाती है, वरना बनारस जाने/आने के लिए नियमित अपने समय पर मिलने वाली ट्रेन 49 अप/50डाउन बन्द हो चुकी है। अब बस का ही सहारा है। किसी की किस्मत जागती है तो उसी पल किसी की किस्मत फूट रही होती है। आज दून के यात्रियों की किस्मत फूटी है तो हमको मिलने की संभावना जगी है।


अब मेरी बगल में एक रोज के यात्री आकर बैठ चुके हैं और मुझे लिखने में बार-बार डिस्टर्ब कर रहे हैं। वही प्रश्न पूछ रहे हैं जिनके उत्तर उन्हें भी मालूम है। ऐसा अक्सर होता है। कोई आपको चाय पीते हुए देखता है तो झट से पूछने लगता है, "चाय पी रहे हैं?" आप नहाने जा रहे होते हैं तो कोई झट से पूछ बैठता है, "नहाने जा रहे हैं?" ऐसे ही खाना खाते समय...ऐसे ही मुझे मोबाइल में लिखता देख, मेरे मित्र मुझसे पूछ हैं, "लोहे का घर लिख रहे हैं?" इतने में रुक जाते तो गनीमत थी, पूछ रहे हैं, "क्या लिख रहे हैं?, बरगद/पीपल लिख रहे हैं?"


अभी दून खेतासराय में खड़ी है। भले इस स्टेशन का नाम 'भंडारी स्टेशन' हो, कब आएगी यह भोले भंडारी भी नहीं बता सकते। वही बताएगा जो घोषणा करता है, वह भी कब घोषणा करेगा, उसे भी नहीं पता। अब रोज के तीन यात्री और आ चुके हैं, अब यहाँ बैठकर लिखना संभव नहीं लग रहा। एक मालगाड़ी बाएं से दाएं जा रही है। मतलब अपनी दून को लेट करने में इसी का हाथ लगता है। मैने एक बार कितना सत्य लिखा था...हर लेट ट्रेन के आगे एक मालगाड़ी होती है! अब मालगाड़ी खड़ी हो गई है और दून के आने की घोषणा हो रही है। एक नाटा आदमी बड़े कान वाला बकरा लेकर अभी प्लेटफार्म पर आया है, आप भी देख लीजिए कितने बड़े-बड़े कान हैं। 😊ट्रेन आ गई अब चढ़ना पड़ेगा, अपने लिए शुभयात्रा बोलना पड़ेगा, जै भोले भंडारी की।

..@देवेन्द्र पाण्डेय।