14.4.17

माझी के पतवार

बच्चों की चाँद-चाँदनी 
लहर-लहर संसार 
हाथों के गट्टे सहलाते 
माझी के पतवार.

चाँद पी गया दूध!


घने वृक्ष की छाँव क्या करे?
मन बैसाखी धूप!
सूखी रोटी कैसे खायें?
चाँद पी गया दूध!


4.4.17

श्री दिगम्बर जैन मंदिर-सारनाथ



मंदिर के दरवाजों में लिखे दोहे भावनाएं हैं जिन्हें पढ़ना और समझना आनन्द दायक है.


अनित्य भावना 

राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असबार.
मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार.. 

अनित्य यानि अस्थिर, चंचल, छणिक, परिवर्तनशील, विनाशी, संसार की हर वस्तु, हर नाता रिश्ता, हमारा शरीर, आयु, रूप-लावण्य, वैभव, परिग्रह, सत्ता-अधिकार सबकुछ एक न एक दिन जाने वाला है. जन्म के साथ मरण, यौवन के साथ बुढ़ापा, सुख के साथ दुःख, लक्ष्मी के साथ दारिद्रय लगा हुआ है. कोई अपने को कितना ही बचाने का प्रयास करे, विनाश से, क्षीणता से, बच नहीं सकता. सबको एक दिन जाना ही है.

अशरण भावना 

दल-बल देवी देवता, मात पिता परिवार 
मरती बिरियाँ जीव को, कोई न राखनहार 

अशरण अर्थात असुरक्षा, असहायता, निरीहता. मनुष्य समझता है कि उसका ज्ञान, उसकी विद्याएँ, उसका वैभव, उसकी प्रतिष्ठा, ये सब उसके रक्षक-पोषक हैं. इसलिए वह इन चीजों के प्रति मोहित होता है, संचय करता है. किन्तु वास्तविकता यह है कि अंतिम समय आने पर कोई रक्षा नहीं कर सकता. आज तक कोई किसी को बचा नहीं सका. जो मरणधर्मा है, वह बच नहीं सकता. 

धर्म भावना  
जाचै सुरतरु देय सुख, चिंतत चिंता रैन
बिना जाचै बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन  

कल्पवृक्ष तो याचना करने पर सुख की सामग्री देते हैं, लेकिन धर्म तो ऐसा कल्पवृक्ष है कि बिना याचना के ही परमसुख प्राप्त होता है.