श्मशान में एक पीपल के पेड़ की डाल पर दो आत्माएँ गले में बाहें डाले बैठी हुई थीं पास ही एक गरीब और एक अमीर आदमी की चिताएँ जल रहीं थीं उनमें से एक ने दूसरे से कहा- "हमें बहोत दिनों तक अलग रहना पड़ा" दूसरे ने कहा- "हाँ यार, आदमी जो बन गये थे।"
devendra bhayee,swagat hai,kya yatharth kaha aap ne atma parmatma se milane ke liye bechain hai tabhi to bahut dinotak alaga rahane ki bat kar raha hai.
देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
ब्लाग की दुनिया में आप का स्वागत है।अब आप अपनी बात अपनी तरह से सब तक पहुँचा सकते हैं।रचना बडी़ अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई...
devendra bhayee,swagat hai,kya yatharth kaha aap ne atma parmatma se milane ke liye bechain hai tabhi to bahut dinotak alaga rahane ki bat kar raha hai.
ReplyDeleteblog jgat me aapka svagt hai .
ReplyDeleteblkul naya vishay lekar aaye hai aap .
achhi rachna .
abhar
वाह..कितनी सफ़ाई से और कितनी शालीनता से इतनी तीखी बात कह दी आपने..उम्मीद करता हूँ..काफ़ी पढ़ने को मिलेगा आपको अब..
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कम शब्दो मे
ReplyDeleteबहुत खूब
सरल शब्दों में गहरी बात ...
ReplyDeleteछू लिए मौजूदा हालात..
बधाई और स्वागत , तहे दिल से ....
पहली ही रचना इतनी सशक्त | वाह |
ReplyDeleteमानना पड़ेगा , आपसे मिलने से हुई देरी में नुकसान मेरा ही हुआ है , मैंने बहुत कुछ मिस कर दिया |
सादर
वाह!
ReplyDeleteहर पहली संतान बहुत प्यारी होती है!
ReplyDeleteविडम्बना!!
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