पढ़ने के दिन बीत गए
आया बच्चों का बसंत !
पतझड़ ज्यों बीते इम्तहान
लौटी है विस्मृत मुस्कान
मनमर्जी की रातें आईं
अब मुठ्ठी में सूरज महान
झूमें खुशियों से दिगंत
आया बच्चों का बसंत !
गर्मी की छुट्टी वाले दिन
ये कट्टी-मिठ्ठी वाले दिन
ना जाने कल किस 'चाक' चढें
ये कच्ची मिट्टी वाले दिन
कलकंठ के कलरव अनंत
आया बच्चों का बसंत !
क्यों हम भी इतने पाप करें
कुछ तो आतप के ताप हरें
इस कंकरीट के जंगल में
कुछ पौधे भी चुपचाप धरें
नाग नथैया करो कंत
आया बच्चों का बसंत !
आया बच्चों का बसंत...एक सुंदर रचना..बढ़िया लगी...बधाई देवेन्द्र जी
ReplyDeleteगर्मी की छुट्टी वाले दिन
ReplyDeleteये कट्टी-मिठ्ठी वाले दिन
ना जाने कल किस 'चाक' चढें
ये कच्ची मिट्टी वाले दिन
वाह,बचपन याद आ गया,बढ़िया रचना,धन्यवाद.
काश हम भी बच्चे होते :(
ReplyDelete"कुछ तो आतप के ताप हरें"
ReplyDeleteबढ़िया !
गर्मियां आती हैं तो छुट्टियां भी yaad आती हैं - जाने कहाँ गए वो दिन...
ReplyDeleteछुट्टियाँ अच्छी तो लगती थी , लेकिन बोर भी होते थे ।
ReplyDeleteभई आजकल की तरह घूमने फिरने को नहीं मिलता था ।
बसन्त कहां जी, अब तो गर्मी आयी है। स्कूल वाले छुट्टियों में बच्चों को बसन्त का मजा ना देकर ढेर सारा होनवर्क देकर गर्मियों की खाज दे देते हैं।
ReplyDeletevery nice .....
ReplyDeletelekin aaj milne waala holiday home work in bachho ko thik se holidays enjoy bhi nahi karne deta .........
badhiya rachna school ke din yaad dila diye aapne..jab saal shuru hote hi garmiyo ki chuttiyo ka intzar shuru kar dete the...
ReplyDeleteबच्चों कि गर्मियों की छुट्टियाँ सच ही बसंत जैसी लगती हैं...बहुत प्यारा गीत है
ReplyDeleteबढ़िया लगी
ReplyDeletehttp://qsba.blogspot.com/
http://madhavrai.blogspot.com
वाह । पूरे वर्ष भर प्रतीक्षा रहती थी ।
ReplyDeleteजन्म दिन की शुभकामना के लिए आपको बहुत धन्यवाद,स्नेह बनाये रखें.
ReplyDeleteधमाचौकड़ी का वसंत है ये ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गर्मियो की छुट्टियो की कविता मै.काश हम भी छोटे छोटे बच्चे होते.
ReplyDeleteधन्यवाद
सुना है बच्चे तो छूट गये, मास्टर लोग अभी भी मिडडे मील बांटने में लगे हैं?
ReplyDeleteईर्ष्या हो रही है आपसे कि आप कविता में बचपना पुनः
ReplyDeleteजी ले रहे हैं , हियाँ हम हैं कि आपसे कम में ही 'बूढ़'
बनते जा रहे हैं !
फालतू ही आप अपने को बेचैन आत्मा लिखते हैं !
कुछ बच्चों को पढ़वाया की नहीं यह रचना ? इस रचना
के असली हकदार वे ही हैं !
आभार !
अच्छी कविता लेकिन थोड़ी देर से आयी।
ReplyDeleteअभी तो कुछ ऐसा कहना पड़ेगा-
आतप चहुँ ओर गहन बरसे
रवि अनल झोंकते ऊपर से
लो सूखे ताल तलैया अब
प्यासा फिरता यूँ दिग-दिगन्त
देखो बसन्त का हुआ अन्त
हां ! ! ! बच्चों के लिये तो यह बसन्त ही है !
ReplyDeleteकविता अच्छी है !
wahwa...achhi kavita..
ReplyDeleteआया बच्चों का बसंत...सुंदर रचना.बधाई देवेन्द्र जी .
ReplyDeletevaah, sachmuch, bachcho ke liye to yahi basant he..magar idhar mahanagreey jeevan me bachcho ke is basant ko abhibhavak atirikt pratibha ke naam par khaa daalte he..
ReplyDeletebasant-aagman aapke liye bhi manoranjan-bharaa ho.
ReplyDeleteisi shubh kaamnaa ke saath thanks.
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खूबसूरत सी कविता हमें भी अपने उस स्मृतिशेष वसंत की याद दिला गयी..जो कुछ समय पहले हमारा भी हमराह हुआ करता था..यह वो वसंत नही था जो मौसम के बदलाव के साथ खुद चला आता था...साल भर की कड़ी तपस्या और तमाम प्रार्थनाओं के साथ परीक्षा-रूपी ’आग के दरिया’ से सकुशल गुजर पाने के बाद ही इस वसंत का हरापन नसीब होता था..और किन साधना से प्राप्त यह गर्म दिन चुटकियों मे कपूर की भांति उड़ जाते थे..और फिर एक साल भर लम्बा इंतजार भारी बस्ते मे भर कर थमा दिया जाता था...मगर उन चंद गर्म और आम से रसीले और क्रिकेट से खिलंदड़े दिनों की कशिश वोह वक्त ही जानता है...नौकरीशुदा होने के बाद तो जिंदगी मे बस पतझड़ ही बाकी रही..हर मौसम बेमौसम :-)
ReplyDeleteबड़ी प्यारी कविता जो बहुत हल्के और शरारती मूड मे शुरु होती है..मगर आगे बढ़ने के साथ ही गंभीर और बेहद सार्थक बातों को बस्ते से निकाल कर पेश कर देती है..और एक संदेश भी छोड़ जाती है जाते-जाते...
सबसे बेहतरीन तो यह लगी...
ना जाने कल किस 'चाक' चढें
ये कच्ची मिट्टी वाले दिन
सच....कच्ची मिट्टी वाले वो ’चाक’ पर चढ़े दिन याद रहते हैं..हमेशा....बहुत खूबसूरत!!
गर्मी की छुट्टी वाले दिन
ReplyDeleteये कट्टी-मिठ्ठी वाले दिन
ना जाने कल किस 'चाक' चढें
ये कच्ची मिट्टी वाले दिन
आह....मन मोह लिया इन पंक्तियों ने...कितना सच कहा है आपने....हृदयस्पर्शी,मुग्धकारी,अतिसुन्दर रचना....वाह !!!
चलिए बच्चों के इस बसंत में हम भी शामिल हो लें, बहुत मन भावन प्रस्तुति
ReplyDeleteप्यारी सी बालकविता.. लग रहा है गर्मी की छुट्टिया हो गयी है :) मुझे घर की याद आ रही है.. बचपन की याद भी..
ReplyDeleteछुट्टियों की याद ताज़ा करा दी आपने तो ... बचपन में लौटा ले गये ... मन भावन प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसशक्त रचना !
ReplyDeleteइस रचना का सौन्दर्य लुभा गया । क्या कहने इन पंक्तियों के -
"गर्मी की छुट्टी वाले दिन
ये कट्टी-मिठ्ठी वाले दिन
ना जाने कल किस 'चाक' चढें
ये कच्ची मिट्टी वाले दिन "
कविता की शुरुआत से अंत तक प्रभाव निरख रहा हूँ ! बहलाती..फुसलाती..समझाती..संदेश देती कविता ! सामर्थ्य की पहचान है यह आपकी ।
बढ़िया रचना ....
ReplyDeleteबहुत खूब! पहले पढ़ चुके थे यह कविता। आज दुबारा बांचे तो सोचा बता भी दें कि सुन्दर है।
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